पोस्को परियोजना को मिली हरी झंडी
लगभग आठ वर्षो की हीला-हवाली के बाद दक्षिण कोरियाई कंपनी पोस्को की उड़ीसा में लगने वाली परियोजना को भारत सरकार की तरफ से पर्यावरण संबंधी मंजूरी दे दी गई है। माना जा रहा है कि दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति पार्क ग्यूेन हे की अगले हफ्ते होने वाली राजकीय यात्रा को ध्यान में रखते हुए हरी झंडी दी गई है।
By Edited By: Updated: Fri, 10 Jan 2014 08:45 PM (IST)
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। लगभग आठ वर्षो की हीला-हवाली के बाद दक्षिण कोरियाई कंपनी पोस्को की उड़ीसा में लगने वाली परियोजना को भारत सरकार की तरफ से पर्यावरण संबंधी मंजूरी दे दी गई है। माना जा रहा है कि दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति पार्क ग्यूेन हे की अगले हफ्ते होने वाली राजकीय यात्रा को ध्यान में रखते हुए हरी झंडी दी गई है। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालने के बाद वीरप्पा मोइली का यह पहला अहम फैसला है।
पोस्को को पर्यावरण मंत्रालय ने पिछले हफ्ते ही मंजूरी दी है। वैसे, मंजूरी कुछ शर्तो के साथ दी गई है जिससे परियोजना की लागत में खासा इजाफा हो जाएगा। लेकिन कंपनी की तरफ से बताया गया है कि अब जल्द ही स्टील परियोजना पर तेजी से अमल शुरू होगा। 12.5 अरब डॉलर से ज्यादा लागत वाली यह परियोजना भारत में अभी तक का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआइ] प्रस्ताव है। कभी पर्यावरण मुद्दों तो कभी स्थानीय विरोध की वजह से यह परियोजना अभी तक मुकाम पर नहीं पहुंच पाई है। वर्ष 2011 में पर्यावरण मंत्रालय ने इसे अंतिम मंजूरी प्रदान कर दी थी, लेकिन फिर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस पर रोक लगा दी थी। पिछले आठ वर्ष में कंपनी कई बार भारत छोड़ने की धमकी भी दे चुकी है। कई तरह की दिक्कतों की वजह से ही पोस्को पहले ही कर्नाटक की अपनी प्रस्तावित परियोजना से हाथ खींच चुकी है। नहीं होगा आइओसी में विनिवेश: मोइली जानकारों का कहना है कि केंद्र सरकार की मंजूरी के बावजूद परियोजना के रास्ते में अभी कुछ अड़चनें हैं। एक प्रमुख अड़चन राज्य सरकार की तरफ से कंपनी द्वारा चिन्हित सारी जमीन हस्तांतरित करना है। वर्ष 2005 में उड़ीसा सरकार और पोस्को के बीच हुई सहमति के मुताबिक कुल 4,004 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया जाना था। पहले चरण के लिए 2,700 एकड़ राज्य सरकार की तरफ से कंपनी को सौंपी जानी थी। लेकिन अभी तक 1,700 एकड़ ही जमीन सौंपी गई है। कंपनी ने इस पर काफी काम शुरू कर दिया है, लेकिन वह वादे के मुताबिक जमीन की मांग कर रही है। अभी अगले कुछ महीनों में आम चुनाव के साथ राज्य में विधान सभा चुनाव भी होने है। ऐसे में नवीन पटनायक सरकार के लिए जमीन अधिग्रहण की खातिर सख्ती दिखा पाना खासा मुश्किल होगा।