हमें तैयार रहना है, वो संकट फिर लौट कर आ सकता है..
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के गवर्नर रघुराम राजन ने भले ही बाजार और उद्योग जगत को निराश किया हो। बाजारों की उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया हो, लेकिन राजन ने अपने बेबाक अंदाज में बताया कि हमने इस कठोर कदम को क्यों उठाया है। उन्होंने कहा कि रेपो रेट में कटौती को इतनी जल्दी नेगटिव ग्रोथ के
By Edited By: Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)
नई दिल्ली। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के गवर्नर रघुराम राजन ने भले ही बाजार और उद्योग जगत को निराश किया हो। बाजारों की उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया हो, लेकिन राजन ने अपने बेबाक अंदाज में बताया कि हमने इस कठोर कदम को क्यों उठाया है। उन्होंने कहा कि रेपो रेट में कटौती को इतनी जल्दी नेगटिव ग्रोथ के साथ नहीं जोड़ना चाहिए। गवर्नर ने कहा कि भारत उस वक्त की तैयारी कर रहा है जब अमेरिका का फेडरल रिजर्व राहत पैकेज को वापस करने की घोषणा करेगा।
पढ़ें : इस त्योहार कम होंगे गृह प्रवेश ऐसे विकट समय में भी रघुराम चुटकी लेने में पीछे नहीं है। अपने हिंदी में दिये जाने वाले साक्षात्कार पर उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए मुझे अपनी हिंदी पर अभी विश्वास नहीं है। आइये देखें रघुराम का बेबाक अंदाजे बयान। पढ़ें : रघुराम का झटका, लोन चुकाने के लिए देनी होगी ज्यादा ईएमआई!
- हमने जो चेतावनी दी है उसे भुलना नहीं है और इतनी जल्दी खुशियां भी नहीं मनानी। क्योंकि ये वापस लौट कर (आर्थिक संकट) आएगा। इसके आने से पहले हमें पुरी तैयारी करनी होगी। - विकासशील देश बार-बार कर रहे हैं : हमें कितनी बार तंगी के लिए तैयार होना पड़ेगा? क्या एक बार की कोशिश पर्याप्त नहीं है? बेशक, हमें एक बार फिर तैयार होना है। इस बार मैं उम्मीद करता हूं कि हमारी स्थिति पहले से बेहतर और मजबूत होगी।
- हमें नहीं पता कि रेपो रेट को लेकर हमारा अगला कदम क्या होगा। यह अर्थव्यवस्था की स्थित पर निर्भर करता है। - हमें इस वक्त का इस्तेमाल राष्ट्र की बैलेंस शीट को बुलेट प्रूफ बनाने के लिए करना चाहिए ताकि जनता और निवेशकों में विश्वास पैदा किया जा सके। - आरबीआई सदैव खुदरा महंगाई और थोक महंगाई के आंकड़ों को देखकर फैसला लेती है। - डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट पर उन्होंने कहा कि हमें जब भी और कोई भी रास्ता अपनाना होगा हम अपनाएंगे। - सभी केंद्रीय बैंकों को महंगाई और विकास की चिंता सताती है। हालात के हिसाब से मापदंड बदलते हैं। मुझे लगता है कि हमें दोनों की चिंता है। हम फंड की लागत को कम करने पर काम करेंगे। - संपूर्ण नीति के संदर्भ में सीआरआर की दैनिक प्रक्रिया का मामला नाम मात्र का है। - मैंने आज से साल भर पहले वादा किया था कि मैं एक पुरा साक्षात्कार हिंदी में दूंगा। लेकिन वर्तमान बाजार की स्थितियों को देखकर मुझे अपनी हिंदी पर विश्वास नहीं है।