जानवरों से फैलती हैा दुनिया की 70 फीसद खतरनाक बीमारियां, इन्हें खाकर इंसान करता है बेड़ा गर्क
दुनिया में अब तक जितनी भी महामारी आई हैं उनमें से 70 फीसद की वजह जानवर और इनको खाने वाले रहे हैं।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Mon, 20 Apr 2020 06:56 AM (IST)
नई दिल्ली (जेएनएन)। प्रकृति स्वस्थ कोरोना पस्त कोरोना काल में एक बार फिर से आसमान में ध्रुव तारे समेत तमाम ग्रह आसानी से देखे जा रहे हैं। दशकों से नदियों को साफ करने की विफल मुहिम बिना किसी प्रयास के रंग लाती दिख रही है। धरती पर यह सुखद बदलाव दुखद परिस्थितियों के चलते हुआ है। पर्यावरणविद् मानते हैं कि कोरोना वायरस के संक्रमण ने पूरी दुनिया को ठहरा दिया है। सारी गतिविधियां ठप हैं तो प्रदूषण से लगातार राहत मिलती दिख रही है। ये हालात कोरोना से लड़ने के अनुकूल बन रहे हैं। उनके इस भरोसे का आधुनिक विज्ञान भी समर्थन करता दिखता है।
अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी का शोध बताता है कि अगर कोई गंभीर रूप से वायु प्रदूषित इलाके में रहता है और वह कोरोना से संक्रमित होता है तो उसके मौत की आशंका में 15 फीसद इजाफा हो जाता है। प्रकृतिविदों का मानना है कि प्रकृति अपना स्वयं इलाज कर रही है। जब ये अपने को स्वस्थ कर लेगी तो इंसानों को भी स्वस्थ रखने में सक्षम होगी। हालांकि वे आशंका भी जताते हैं कि जैसे कोरोना का प्रकोप कम हुआ, फिर से हम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करके उसे दिसंबर 2019 से पहले वाली दशा में पहुंचा देंगे। कोरोना भी कहीं न कहीं हमारी विलासी जीवनशैली का ही साइड इफेक्ट है। हमने जैव विविधता को मिटाने के क्रम में खाद्य-अखाद्य के बीच का फर्क मिटा दिया।
चमगादड़ और पैंगोंलिन से जीवों के भक्षण वाली तामसी प्रवृत्ति ने कोरोना के रूप में पृथ्वी के साथ इंसानी सभ्यता का भी बेड़ा गर्क करने का काम किया है। आलम यह हो चुका है कि इबोला, निपाह जैसी 70 फीसद महामारियों का स्नोत वन्यजीव बन रहे हैं। हमने उनकी सीमा में दखलंदाजी की और नतीजा सामने आया। आगामी 22 अप्रैल को हम 50वां धरती दिवस मनाने जा रहे हैं। ऐसे में इस दिवस को मनाने की सार्थकता इसी में है कि हम सब संकल्प लें कि कुदरत के कोरोना रूपी कहर को रोकने के लिए प्रकृति को उसके असली रूप में संवारने का हर जतन करेंगे। धरती के श्रृंगार उसकी जैव विविधता को बरकरार रखेंगे।
जैव विविधता से खिलवाडजर्नल प्रोसेडिंग ऑफ रॉयल सोसायटी में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक इंसानों से बढ़ती जंगली जानवरों की निकटता बड़ा खतरा बनती जा रही है। यूसी डेविस स्कूल ऑफ वेटनरी साइंस के वन हेल्थ इंस्टीट्यूट के प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ क्रिश्चियन क्रूयडर के मुताबिक कोरोना की तरह की बीमारियों जानवरों के प्राकृतिक निवास और रहन-सहन में इंसान के सीधे हस्तक्षेप का नतीजा है।
हैं खतरनाक चमगादड़ पिछले तीन दशक से काफी परेशान कर रहे हैं। सार्स हो या निपाह वायरस या फिर इबोला और मारबर्ग, सभी ने बड़े पैमाने पर इंसानों की जान ली। इबोला के कारण दो वर्ष तक पूरा अफ्रीका महाद्वीप खतरे में रहा।
रोकनी होगी घुसपैठ फॉरेन वायरस (जो घरेलू और जंगली जानवरों से इंसानों में आए) के कारण हर साल दुनियाभर में दो अरब लोग बीमार पड़ते हैं, जिनमें से दो करोड़ लोग मारे जाते हैं। ये वायरस इंसानों को एचआइवी से लेकर इबोला तक से मार रहे हैं। वजह सिर्फ एक है-इंसानों का जानवरों के प्राकृतिक जीवनशैली में हस्तक्षेप।
जंगली जानवरों से आए 142 वायरस 1940 के बाद से इंसानों में 142 वायरस आ चुके हैं। कई के तोड़ हमने खोज निकाले लेकिन, अब भी कई बहुत जानलेवा हैं। चाहे वो कोरोना हो या एचआइवी। चूहे, बंदर और चमगादड़ इंसानों में फैलने वाले 75 फीसद वायरस के लिए जिम्मेदार हैं।
वायरसों का कहर इबोला, मर्स, एचआइवी, बोविन टीबी, रैबीज, लेप्टोसिरोसिस, स्वाइन फ्लू, हंटा वायरस, पीजन फ्लू, साइट्रोडोमाईकोसिस, वेस्ट नाइल इंसेफेलाइटिस, वाइट नोस सिंड्रोम, एंथ्रेक्स, डेविल फेस, कैनिन डिस्टेंपर, क्लेमेंडिया, सारकोप्टिक मेग्ने, प्लेग, ई-कोलाई
चूहे या कुत्ते, मौत के फरिश्ते अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं ने 1940 को आधार वर्ष मानते हुए किए शोध में बताया कि कुत्ते, बिल्लियों, भेड़ों जैसे घरेलू जानवरों के साथ ही बंदरों-चूहों ने भी इंसान को काफी क्षति पहुंचाई है। जंगली जानवर इंसानों से दूर थे लेकिन, इंसान ने ही कभी विकास, कभी जानवरों के व्यापार और कभी उन्हें बचाने के नाम पर उनके व खुद के बीच की मौजूद दूरी को खत्म कर दिया। प्लेग जैसी महामारी ने तो दुनिया का अस्तित्व ही खतरे में डाल दिया।
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