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'आप' के नौसिखियों ने दिल्‍ली में रोका मोदी का विजय रथ

दिल्‍ली विधानसभा चुनाव में एक बार‍ फिर से आम आदमी पार्टी अन्‍य पार्टियों पर भारी पड़ी है। दिग्‍गजों पर नौसिखियों के भारी पड़ने से दिल्‍ली की राजनीति में जो भूकंप आया है उसमें वर्षों से जमी कांग्रेस की इमारत को पूरी तरह से ढहा कर रख दिया है। वहीं भाजपा

By Kamal VermaEdited By: Updated: Tue, 10 Feb 2015 11:19 AM (IST)
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नई दिल्ली (कमल कान्त वर्मा)। दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से आम आदमी पार्टी अन्य पार्टियों पर भारी पड़ी है। दिग्गजों पर नौसिखियों के भारी पड़ने से दिल्ली की राजनीति में जो भूकंप आया है उसमें वर्षों से जमी कांग्रेस की इमारत को पूरी तरह से ढहा कर रख दिया है। वहीं भाजपा की मजबूत नींव को भी काफी हद तक हिलाकर रख दिया है। पीएम बनने के बाद प्रधानमंत्री बनने के बाद यह उनकी पहली बड़ी हार है। दिल्ली में भाजपा के विजयी रथ को रोककर आप ने बड़ा मैसेज भी दे दिया है। इसके अलावा केजरीवाल बनाम मोदी की इस लड़ाई का अब असर दूर तक देखने को मिल सकता है। इस वर्ष बिहार चुनाव में भी दिल्ली के परिणाम असर डाल सकते हैं। दिल्ली चुनाव से पहले आप को मिले लेफ्ट, टीएमसी, जदयू के समर्थन का असर भले ही इस चुनाव में कुछ खास न हुआ हो लेकिन इससे देश में बदलते राजनीतिक समीकरणों की राह जरूर खुल गई है।

आप को मिली इस जीत का श्रेय उसके नेता अरविंद केजरीवाल के साथ साथ उनकी पूरी टीम को जाता है। उन्होंने जिस तरह से अपनी कमियों को जनता के सामने रखा और जिस तर्ज पर अपनी की गई गलतियों के लिए जनता से बार बार माफी मांगी, वह कहीं न कहीं लोगों के जहन में घर कर गई और आप अपनी खोई हुई जमीन पाने में कामयाब हो सकी। वहीं इस चुनाव के बाद अब भाजपा को अपनी रणनीति पर दोबारा विचार करना होगा। लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा, महाराष्ट्र, जम्मू कश्मीर और झारखंड में भाजपा का भगवा परचम लहराने में कामयाब रहे मोदी और शाह की रणनीति का दिल्ली में पूरी तरह से विफल होना अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया है। इसके नतीजे काफी समय तक भाजपा को परेशानी में डाल सकते हैं। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि भाजपा पहले ही यह मानती थी कि दिल्ली का चुनावी नतीजों की गूंज बिहार तक सुनाई दे सकती है। इतना ही नहीं आने वाले समय में भाजपा को उत्तर प्रदेश में चुनाव की तैयारी करनी है, जिसके लिए कुछ नई रणनीति बनाना उसके लिए जरूरी होगा।

अन्ना आंदोलन के गर्भ से निकली आम आदमी पार्टी ने इस चुनाव कई मायनों में बड़े उलटफेर को अंजाम दिया। पिछले विधानसभा चुनाव में दूसरे नंबर की पार्टी बनने के बाद जब केजरीवाल ने दिल्ली की गद्दी संभाली थी तब भी उनकी राह कोई आसान नहीं थी। इसके बाद भ्रष्टाचार के मुद्दे पर इस्तीफा देने के बाद उनकी राहें और कठिन हो गई थीं। इसके बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में उन्हें आप विरोधी पार्टियों ने धोखेबाज, भगोड़ा तक कहने में कोई संकोच नहीं किया। यही वजह थी कि उनकी छवि को काफी नुकसान भी हुआ था। पिछले वर्ष नवंबर तक केजरीवाल दिल्ली के सबसे पसंदीदा मुख्यमंत्री के तौर पर दूसरे नंबर पर पहुंच चुके थे। लेकिन दिल्ली विधानसभा के चुनाव तय होने से पहले दो माह में तस्वीर काफी बदल चुकी थी। यही दो माह उसकी जीत के लिए निर्णायक साबित हुए और आप अपनी छवि को सुधारने में कामयाब हुई। न सिर्फ कामयाब हुई बल्कि उसने दिग्गजों के मुंह भी अपनी जीत के शोर से बंद कर दिए। केजरीवाल और बेदी दोनों ही अन्ना अांदोलन के जरिए लाइम-लाइट में आए थे। लेकिन केजरीवाल के पार्टी बनाने पर बेदी ने उनकी जमकर आलोचना की थी। लेकिन बाद में भाजपा का दामन थाम कर उन्होंने वही राह पकड़ ली जिससे वह गुरेज करती थीं। यह अवसरवाद था या कुछ और। यह वो सवाल था जिसका जवाब किरण बेदी जनता को अंत तक नहीं दे सकी।

आप की जीत के पीछे कांग्रेस का लड़ाई से पूरी तरह बाहर होना और दिल्ली के चुनाव में पीएम का उतरना सीधे तौर पर जिम्मेदार रहा। दिल्ली के चुनाव प्रचार में सबसे पहले आप ने ही ताल ठोंकी थी। इसके बाद भाजपा और कांग्रेस मैदान में प्रचार के लिए कूदी। लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। भाजपा ने इस चुनाव में काफी समय गुजर जाने के बाद अपना सीएम उम्मीदवार घोषित किया। लेकिन किरण बेदी को सीएम उम्मीदवार बनाते समय भाजपा यह भूल गई कि इससे पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं में नकारात्मक संकेत जाएगा। जोकि हुआ भी। बाहरी तौर पर देखी जाने वाली किरण बेदी को आखिर तक भाजपा के कई नेता सीएम प्रत्याशी मानने को दिली तौर पर तैयार नहीं दिखाई दिए। न ही बेदी अपनी छवि को दबंग पुलिसवाली से हटाकर पेश कर सकीं। जिस बेदी की छवि को देखते हुए भाजपा ने उन्हें सीएम प्रत्याशी बनाया था उसमें ही बाद में गिरावट देखते हुए मोदी को इस चुनाव में कूदना पड़ा।

जानें दिल्ली चुनाव में मतगणना का हाल

इससे यह साबित हुआ कि भाजपा के पास न तो कोई और चेहरा था और न ही कोई अन्य विकल्प। मोदी और बेदी के सामने भाजपा के सभी अन्य दिग्गज बौने साबित हुए। इसके अलावा भाजपा के आडवाणी सरीखे वरिष्ठ नेता दिल्ली चुनाव में पूरी तरह से नदारद रहे। यह भाजपा को लेकर मतदाताओं को गलत मैसेज देने में सहायक साबित हुआ। दिल्ली चुनाव में सीधे तौर पर कूदे पीएम मोदी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अरविंद केजरीवाल को जिस तर्ज पर आड़े हाथों लिया, उसको जनता से मतदान के दौरान सिरे से खारिज कर दिया। इसके पीछे वजह साफ थी कि जनता को भारत के पीएम का इस तरह से दिल्ली प्रचार कूदना और इस तरह से आरोप लगाना रास नहीं आया। जिस भाषा का भाजपा ने अपने विज्ञापनों में उपयोग किया उससे पार्टी ने अनजाने में दिल्ली के मतदाताओं को अपने खिलाफ कर लिया। इसकी वजह थी दिल्ली का जातिगत समीकरण बिगड़ना। वादों और मुद़दों पर लड़ा गया यह चुनाव इससे पहले कभी ही शायद इतना रोचक रहा हो। भाजपा का दिल्ली को वर्ल्ड क्लास सिटी बनाने का वादेा पर आप का आम आदमी के लिए फ्री पानी और बिजली देने का वादा ज्यादा भारी साबित हुआ और लोगों के दिलों तक उतरने में भी कामयाब रहा।