न्यायपालिका में न हो अतिक्रमण : सीजेआइ
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति में खत्म होने जा रही कोलेजियम व्यवस्था का क्षोभ न्यायपालिका से अभी खत्म नहीं हो पाया है। संसद से दोनों सदनों से इस आशय का विधेयक पारित होने के दूसरे दिन मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा ने सलाह दी कि न्यायापालिका, विधायिका और कार्यपालिका को एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए।
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति में खत्म होने जा रही कोलेजियम व्यवस्था का क्षोभ न्यायपालिका से अभी खत्म नहीं हो पाया है। संसद से दोनों सदनों से इस आशय का विधेयक पारित होने के दूसरे दिन मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा ने सलाह दी कि न्यायापालिका, विधायिका और कार्यपालिका को एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए। उनके कामकाज में बाहरी दखल नहीं होना चाहिए। वैसे, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने तत्काल सरकार की ओर न्यायापालिका की पवित्रता और आजादी को बनाए रखने का भरोसा देने में देर नहीं की।
गौरतलब है कि कोलेजियम व्यवस्था को लेकर न्यायपालिका का रुख विधायिका और कार्यपालिका से अलग रहा है। कुछ दिन पहले ही लोढ़ा ने परोक्ष रूप से कोलेजियम खत्म करने की कोशिशों पर क्षोभ जताया था, लेकिन सरकार संविधान विशेषज्ञों और राजनीतिज्ञों के बीच सहमति बनाने के बाद सरकार ने न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक लोकसभा में पेश कर दिया था। तीन दिन के अंदर विधेयक दोनों सदनों से पारित हो गया जिसके बाद जजों की नियुक्ति और स्थानांतरण में न्यायपालिका का एकाधिकार नहीं रहेगा। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट परिसर में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद जस्टिस आरएम लोढ़ा ने विधेयक का नाम लिए बगैर कहा कि संविधान निर्माताओं ने यह सुनिश्चित किया है कि सरकार के सभी अंग एक-दूसरे में हस्तक्षेप किए बिना अपना-अपना काम स्वतंत्र रूप से कर सकें। इसके लिए न्यायापालिका, विधायिका और कार्यपालिका में काम करने वाले लोग पर्याप्त परिपक्व हैं। उन्होंने कहा कि पिछले दो दशक के दौरान कोलेजियम प्रणाली से हाईकोर्ट के 906 और सुप्रीम कोर्ट के 31 न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई है। न्याय देने में होने वाली देरी की आलोचना का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि न्यायापालिका सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के एक हजार से कम न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए जिम्मेदार है, जबकि निचली अदालतों में 19,000 से अधिक जजों की नियुक्ति कार्यपालिका करती है। जस्टिस लोढ़ा ने अपराध न्याय प्रणाली की विफलता पर भी दुख जताया। उन्होंने कहा कि केंद्रीय जेलों में 50 और जिला जेलों में 72 फीसदी से अधिक कैदी ऐसे हैं, जिन्हें अदालत ने दोषी नहीं ठहराया है। उन्होंने कहा कि अपराध न्याय प्रणाली के कारण होने वाला मानवाधिकारों और आम आदमी की आजादी का यह उल्लंघन पीड़ादायक है।