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जीएसएलवी की खासियत पढ़कर आप भी कहेंगे वाह भई वाह

जियोस्टेशनरी सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल [जीएसएलवी] अंतरिक्ष में उपग्रह के प्रक्षेपण में सहायक यान है। ये यान उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने में मदद करता है। जीएसएलवी ऐसा मल्टी स्टेज रॉकेट होता है जो दो टन से अधिक भार के उपग्रह को पृथ्वी से 36,000 कि.मी. की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित करता है। यह रॉ

By Edited By: Updated: Mon, 19 Aug 2013 02:09 PM (IST)

नई दिल्ली। जियोस्टेशनरी सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल [जीएसएलवी] अंतरिक्ष में उपग्रह के प्रक्षेपण में सहायक यान है। ये यान उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने में मदद करता है। जीएसएलवी ऐसा मल्टी स्टेज रॉकेट होता है जो दो टन से अधिक भार के उपग्रह को पृथ्वी से 36,000 कि.मी. की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित करता है। यह रॉकेट अपना कार्य तीन चरण में पूरा करते हैं। इनके तीसरे यानी अंतिम चरण में सबसे अधिक बल की आवश्यकता होती है। रॉकेट की यह आवश्यकता केवल क्रायोजेनिक इंजन ही पूरा कर सकते हैं। लिहाजा बिना क्रायोजेनिक इंजन के जीएसएलवी रॉकेट का निर्माण मुश्किल होता है।

अधिकतर काम के उपग्रह दो टन से अधिक के ही होते हैं। इसलिए विश्व भर में छोड़े जाने वाले 50 प्रतिशत उपग्रह इसी वर्ग में आते हैं। जीएसएलवी रॉकेट इस भार वर्ग के दो तीन उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में ले जाकर निश्चित कि.मी. की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है। यही इसकी की प्रमुख विशेषता है

क्रायोजेनिक का पहला प्रयास रहा असफल:-

15 अप्रैल, 2010 को भारत ने पहली बार जीएसएलवी की सहायता से अपना पहला उपग्रह छोड़ा जो असफल रहा था। जीएसएलवी के द्वारा से पांच हजार किलोग्राम का उपग्रह पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जा सकता है।

कौन से होते हैं क्रायोजेनिक इंजन :-

जीएसएलवी रॉकेट में प्रयुक्त होने वाली द्रव्य ईंधन चालित इंजन में ईंधन बहुत कम तापमान पर भरा जाता है, इसलिए ऐसे इंजन क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन कहलाते हैं। इस तरह के रॉकेट इंजन में अत्यधिक ठंडी और लिक्विफाइड गैसों को ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। सॉलिड ईंधन की अपेक्षा यह कई गुना शक्तिशाली सिद्ध होते हैं और रॉकेट को बूस्ट करने में मददगार साबित होते हैं। विशेषकर लंबी दूरी और भारी रॉकेटों के लिए यह तकनीक आवश्यक होती है।

तीन चरणों में काम करता है क्रायोजेनिक इंजन :-

गत कुछ वर्षो से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान [पीएसएलवी] के बाद भारत ने उपग्रह भेजने में काफी सफलता प्राप्त की थी। जीएसएलवी अपने डिजाइन और सुविधाओं में पीएसएलवी से बेहतर होता है। यह तीन श्रेणी वाला प्रक्षेपण यान होता है जिसमें पहला सॉलिड और लिक्विड प्रापेल्ड तथा तीसरा क्रायोजेनिक आधारित होता है। पहली और दूसरी श्रेणी पीएसएलवी से ली गई है। आरंभिक जीएसएलवी यानों में रूस निर्मित क्रायोजेनिक तृतीय स्टेज का प्रयोग हो रहा था। लेकिन अब इसरो ने स्वदेशी तकनीक से निर्मित क्रायोजेनिक इंजन का आविष्कार किया है।

क्या होते हैं जीसेट सैटेलाइट:-

जियोसिंक्रोनस या जियोस्टेशनरी उपग्रह वे होते हैं जो पृथ्वी की भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर स्थित होते हैं और वह पृथ्वी की गति के अनुसार ही उसके साथ-साथ घूमते हैं। इस तरह जहां एक ओर ध्रुवीय उपग्रह पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता है, वहीं भूस्थिर उपग्रह अपने नाम के अनुसार पृथ्वी की कक्षा में एक ही स्थान पर स्थित रहता है। यह कक्षा पृथ्वी की सतह से 35,786 किलोमीटर ऊपर होती है।

जीएसएलवी की उपलब्धियां :-

जीएसएलवी-एफ 06 ने 25 दिसंबर, 2010 को जीसैट-5पी का प्रक्षेपण किया जो असफल रहा।

जीएसएलवी-डी 3 ने 15 अप्रैल, 2010 को जीसैट-4 का प्रक्षेपण किया जो असफल रहा।

जीएसएलवी-एफ 04 ने 2 सितंबर, 2007 को इन्सेट-4 सीआर का सफल प्रक्षेपण किया गया।

जीएसएलवी-एफ02 ने 10 जुलाई, 2006 को इन्सेट-4 सी का प्रक्षेपण किया गया लेकिन यह असफल रहा।

जीएसएलवी-एफ 01 ने 20 सितंबर, 2004 को एडुसैट (जीसैट-3) का सफल प्रक्षेपण किया गया।

जीएसएलवी-डी 2 ने 8 मई, 2003 को जीसैट-2 का सफल प्रक्षेपण किया गया।

जीएसएलवी-डी 1 ने 18 अप्रैल, 2001 को जीसैट-1 का सफल प्रक्षेपण किया गया।

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