महाराष्ट्र: उदाहरण बना यह गांव, हर साल तय होता है 'पानी का बजट'
सूखा प्रभावित राज्य महाराष्ट्र के अधिकांश जिले में भीषण जल संकट है वहीं एक गांव के लोगों ने अपने सूझ-बूझ से इलाके को जलसंकट का सामना नहीं करने दिया है
By Monika minalEdited By: Updated: Tue, 26 Apr 2016 01:38 PM (IST)
हिवारे बाजार (अहमदनगर): महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित हिस्से में गहराते जलसंकट से पूरा देश वाकिफ है। यहां का का एक जिला है लातूर जहां 25 लाख लीटर पानी को ट्रेन के जरिए पहुंचाया गया वहीं अहमदनगर का एक गांव है जहां पिछले 21 सालों से अब तक एक भी वाटर टैंक की जरूरत नहीं पड़ी। इसका श्रेय जाता है यहां के ग्रामीणों को। इन्होंने अपने सूझ-बूझ से पानी का बजट बनाया है और इस बहुमूल्य धन का इस्तेमाल काफी सोच-समझ कर करते हैं।
अहमदनगर के अन्य गावों में 400 फीट की गहराई तक बोरवेल खोदे जा रहे हैं, वहीं हिवारे बाजार में भूमिगत पानी इतना अच्छा है कि 20 से 40 फीट की गहराई पर ही अपनी मौजूदगी बता देता है। हालांकि गांव में अधिक पानी लगने वाले खेती जैसे गन्ने या केले की खेती प्रतिबंधित है पर यहां के किसान अन्य क्षेत्रों के किसानों की तुलना में काफी धनी है। रिकार्ड के लिए यहां गरीबी रेखा से नीचे कोई परिवार नहीं है।पांच लाख लीटर पानी लेकर लातूर पहुंची ट्रेन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम में भी इस गांव विशेष तौर पर जिक्र आया था। मोदी ने कहा, ‘इस गांव के लोगों ने काफी अच्छा काम किया है।‘ इस बात की खुशी जाहिर करते हुए गांव के सरपंच पोपटराव पवार कहा, ‘हमें खुशी है कि हमारी मेहनत को सराहना मिली।‘ इन्हें विशेष तौर पर चाय के लिए मोदी ने आमंत्रित किया था।
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, क्षेत्र के अन्य इलाकों की तरह यहां भी जलसंकट था क्योंकि 200 से 300 मिमी रेनफॉल होता था। पवार ने कहा, ‘ हमने 1994-95 में जल संरक्षण को बढ़ावा दिया। पर फिर अहसास हुआ कि केवल इस एक कदम से मदद नहीं मिलेगी इसलिए खेती के तरीके को बदलने का निर्णय लिया। ग्रामीणों ने पानी के अधिक खपत वाले खेती को बंद कर सब्जियों, फलों, फूलों व दालों की खेती करने का निर्णय लिया। डेयरी को विकसित किया गया। पवार ने आगे बताया कि हर साल 31 दिसंबर को ग्रामीणों की एक मीटिंग होती है जिसमें बारिश की समीक्षा की जाती है और मौजूदा जल स्रोत के बारे में बताया जाता है इसके बाद हम अगले मौसम में कौन से फसल की खेती होगी इस बात का निर्णय लेते हैं। इसके अलावा गांव में बोरवेल नहीं खोदने की समस्या हल कर लेते हैं। हमारे पास पानी के लिए बजट होता है। और तो और हम बारिश नहीं होने पर उस वर्ष खेती नहीं करने का निर्णय लेते हैं। ग्रामीण अंतिम खरीफ फसल को ही काटते हैं और चार या पांच माह तक खेती नहीं करते।‘
इन प्रदेशों में भी मंडरा रहा लातूर जैसा खतरा एक ग्रामीण मोहन चट्टार ने कहा, खेती बंद करने से कमाई पर असर नहीं होता। गांव में प्रतिदिन 4,000 लीटर दूध आ जाता है। डेयर फार्मिंग कमाई का स्रोत होता है। यहां चारा बहुतायत मात्रा में है।‘ इस गांव में एक नियम है कि यहां का कोई निवासी बाहरी को अपना जमीन नहीं बेचेगा। पवार ने मॉनसून या जलसंकट का दोष नहीं दिया। उन्होंने कहा कि प्रकृति पर आरोप लगाने के बजाए सूखा और जल संकट से निपटने के लिए हमें रास्ता निकालना होगा। इसके अलावा एक ग्रामीण ने कहा, ‘हिवारे बाजार में न राजनीति है और न ही कोई शराब की दुकान ये दोनों ही वातावरण दूषित करते हैं।‘