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फिर मात खाएंगे आडवाणी, मोदी के नाम पर कल लगेगी मुहर

भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की नरेंद्र मोदी को लेकर आपत्ति एक बार फिर से दरकिनार होने जा रही है। दिल्ली में गोवा की कहानी दोहराने का मंच तैयार हो गया है। नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने के सामूहिक फैसले पर आडवाणी ने हामी न देकर पार्टी को खिन्न कर दिया है। लिहाजा पार्टी ने तय कर लिया है कि अगर वह नहीं माने तो उन्हें भूलकर शुक्रवार को मोदी के नाम का एलान हो सकता है। हालांकि उन्हें मनाने की कोशिशें भी जोरों पर हैं।

By Edited By: Updated: Thu, 12 Sep 2013 08:23 AM (IST)
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आशुतोष झा, नई दिल्ली। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की नरेंद्र मोदी को लेकर आपत्ति एक बार फिर से दरकिनार होने जा रही है। दिल्ली में गोवा की कहानी दोहराने का मंच तैयार हो गया है। नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने के सामूहिक फैसले पर आडवाणी ने हामी न देकर पार्टी को खिन्न कर दिया है। लिहाजा पार्टी ने तय कर लिया है कि अगर वह नहीं माने तो उन्हें भूलकर शुक्रवार को मोदी के नाम का एलान हो सकता है। हालांकि उन्हें मनाने की कोशिशें भी जोरों पर हैं।

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भाजपा में मोदी के बाबत लिए गए फैसले को अमलीजामा पहनाने का खाका तैयार किया जाने लगा है। यूं तो पार्टी नेतृत्व संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाकर इसका औपचारिक एलान करना चाहता है। लेकिन सूत्रों की मानें तो विरोध पर अड़े आडवाणी के ही दिखाए गए रास्तों से आगे की राह तैयार की जा सकती है। 1995 में आडवाणी ने संसदीय बोर्ड की बैठक से पहले ही अटल बिहारी वाजपेयी को चुनावी चेहरा बनाने की घोषणा कर दी थी। बाद में बैठक बुलाकर उस पर मुहर लगाई गई थी। यानी औपचारिक बैठक न हुई तो भी कोई परंपरा नहीं टूटेगी। हालांकि अटल बिहारी वाजपेयी पार्टी के सर्वमान्य नेता थे, जिनकी छवि और दावेदारी को लेकर कहीं कोई विवाद नहीं था।

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पिछले दिनों में भाजपा नेतृत्व ही नहीं, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर से भी आडवाणी को पूरी तवज्जो देकर सामूहिक फैसले के साथ जोड़ने की कोशिशें की गई। बुधवार को पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह एक बार फिर से उन्हें मनाने के लिए उनके घर तक गए। बताते हैं कि लगभग 30 मिनट तक चली बैठक के बावजूद आडवाणी अडिग हैं। हालांकि राजनाथ ने भी हार नहीं मानी है। अलग-अलग स्तर से कुछ और कोशिशें हो रही हैं। इसी के तहत देर रात संसदीय बोर्ड के सचिव अनंत कुमार दिल्ली पहुंचे। उन्होंने राजनाथ और सुषमा स्वराज के बाद आडवाणी से मुलाकात की। ध्यान रहे कि आडवाणी मुखर रूप से तो सुषमा मौन के जरिये नरेंद्र मोदी के नाम पर अपनी आपत्ति का इजहार करते रहे हैं।

गौरतलब है कि आडवाणी प्रधानमंत्री उम्मीदवार पर निर्णय विधानसभा चुनावों के बाद तक टालना चाहते हैं। लेकिन वह शायद यह याद करना नहीं चाहते हैं कि पिछले लोकसभा चुनाव के लिए अपनी उम्मीदवारी घोषित कराने के वक्त उन्होंने ऐसे ही तर्क को खारिज कर दिया था। 2007 में गुजरात विधानसभा चुनाव को देखते हुए नरेंद्र मोदी और गुजरात के तत्कालीन प्रभारी अरुण जेटली की ओर से सुझाव दिया गया था कि चुनाव तक घोषणा टाल दी जाए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ था।

इस बार कार्यकर्ता ही नहीं, संसदीय बोर्ड में भी अधिकांश सदस्य मोदी को चुनावी चेहरा बनाए जाने के पक्ष में हैं। साथ ही, भाजपा के तीन मुख्यमंत्रियों शिवराज सिंह, रमन सिंह और मनोहर पार्रिकर ने भी मोदी के नाम पर सहमति दे दी है। इसे देखते हुए अब पार्टी भी फैसले पर अड़ गई है। दरअसल पिछले दो तीन दिनों में यह संकेत जा चुका है कि मोदी के नाम का एलान किया जाएगा। अब फैसले से पीछे हटना पार्टी के लिए आत्मघाती हो सकता है। लिहाजा आडवाणी के विरोध को नजरअंदाज और खारिज करते हुए मोदी के नाम का एलान लगभग तय हो गया है।

''आडवाणीजी देश का मूड नहीं समझ सके। पीएम उम्मीदवार के रूप में अटलजी के नाम की घोषणा उन्होंने ही की थी, नमो के लिए भी उन्हें यही करना चाहिए था।''

- सुशील कुमार मोदी

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