बाल विवाह पर रोक मुस्लिम पर्सनल लॉ के खिलाफ नहीं
मद्रास हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर कहा कि बाल विवाह रोक अधिनियम मुस्लिम पर्सनल लॉ के खिलाफ नहीं है। यह कानून लड़कियों के कल्याण के लिए बनाया गया है। इसी के साथ कोर्ट ने जनहित याचिका को खारिज कर दिया।
मदुरै। मद्रास हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर कहा कि बाल विवाह रोक अधिनियम मुस्लिम पर्सनल लॉ के खिलाफ नहीं है। यह कानून लड़कियों के कल्याण के लिए बनाया गया है। इसी के साथ कोर्ट ने जनहित याचिका को खारिज कर दिया।
मामला तमिलनाडु के विरुधुनगर जिले के रहने वाले सैयद अबुताहिर नाम के एक शख्स की 16 वर्षीय नाबालिग बेटी की शादी से जुड़ा है। बाल विवाह के चलते समाज कल्याण महकमें के जिला अधिकारियों ने शादी रुकवा दी थी। इसके बाद सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया के पदाधिकारी मुहम्मद अब्बास ने इस कार्रवाई को चुनौती देते हुए कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
अपनी याचिका में अब्बास ने कोर्ट से मांग की कि वो अधिकारियों निर्देश दें कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत की जा रही शादियों में वह रुकावट पैदा न करें। उन्होंने दावा किया था कि 15 से 18 वर्ष की लड़कियों की शादी जायज है और मुस्लिम पर्सनल लॉ इसकी इजाजत देता है। जबकि प्रोबेशन ऑफ चाइल्ड मैरिज एक्ट, 2006 के तहत 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों की शादी को कानून मंजूरी नहीं देता है। यह अपराध की श्रेणी में आता है।
जस्टिस एस तमिलवनन और वीएस रवि की पीठ ने अब्बास की याचिका को खारिज कर कहा कि बाल विवाह अधिनियम पर्सनल लॉ के खिलाफ नहीं है। इसका मकसद कम उम्र में होने वाली शादियों पर रोकथाम लगाना है, जिससे लड़कियों के शारीरिक और मानसिक विकास के साथ वे अच्छी शिक्षा हासिल कर सकें। यह दूसरा मौका है जब हाई कोर्ट ने कम उम्र की मुस्लिम लड़की की शादी को लेकर इस तरह का आदेश जारी किया है।