जिस समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की न्यूयॉर्क में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से होने वाली मुलाकात के कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया जा रहा था। उस समय भारतीय सीमा में घुसे पाकिस्तानी सेना के विशेष दस्ते के जवान और आतंकी खाली पड़े एक गांव और कुछ बंकरों पर कब्जा किए बैठे थे। ऐसा भी नहीं कि देश के सत्ता प्रतिष्ठान को इसका इलहाम नहीं था। 24 सितंबर से ही सेना ने इस इलाके को खाली कराने का अभियान छेड़ रखा है। इस अभियान में पांच भारतीय जवान घायल भी हुए हैं। हां, सेना ने इस घुसपैठ की हवा कुछ शीर्ष लोगों को छोड़कर किसी को नहीं लगने दी। शायद इससे न्यूयॉर्क में होने वाली शिखर वार्ता पर असर पड़ सकता था।
By Edited By: Updated: Thu, 03 Oct 2013 05:52 AM (IST)
नवीन नवाज, श्रीनगर। जिस समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की न्यूयॉर्क में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से होने वाली मुलाकात के कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया जा रहा था। उस समय भारतीय सीमा में घुसे पाकिस्तानी सेना के विशेष दस्ते के जवान और आतंकी खाली पड़े एक गांव और कुछ बंकरों पर कब्जा किए बैठे थे। ऐसा भी नहीं कि देश के सत्ता प्रतिष्ठान को इसका इलहाम नहीं था। 24 सितंबर से ही सेना ने इस इलाके को खाली कराने का अभियान छेड़ रखा है। इस अभियान में पांच भारतीय जवान घायल भी हुए हैं। हां, सेना ने इस घुसपैठ की हवा कुछ शीर्ष लोगों को छोड़कर किसी को नहीं लगने दी। शायद इससे न्यूयॉर्क में होने वाली शिखर वार्ता पर असर पड़ सकता था।
कारगिल की तर्ज पर यह घुसपैठ पाकिस्तान से लगे केरन सेक्टर में हुई और इसमें घुसपैठियों ने 14 साल से खाली पडे़ भारत के सीमावर्ती गांव शालबट्टू और तीन बंकरों में अपना ठिकाना बना लिया। सूचना मिलने पर सेना की 268 माउंटेन ब्रिगेड के जवानों ने बंकरों और गांव को खाली करवाने के लिए अभियान छेड़ा। कार्रवाई में अभी तक 15 घुसपैठिये मारे गए जबकि भारतीय सेना के पांच जवान घायल हुए हैं। घुसपैठियों पर नजर रखने के लिए सेना द्वारा हेलीकॉप्टर का भी इस्तेमाल किया जा रहा है।
22 सितंबर को मिला सुराग सूत्रों के अनुसार जिन बंकरों पर कब्जा हुआ, वे दुर्गम स्थानों पर स्थित हैं। कुपवाड़ा जिले में त्रेहगाम पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आने वाले ये तीनों बंकर केरन सेक्टर में 'नो मेन लैंड' इलाके से एक किलोमीटर की दूरी पर हैं। इनके साथ लशदत, जमगुढ़ और शालबट्टू जंगल और गांव भी लगते हैं। भारतीय सेना को आतंकियों द्वारा इस इलाके में घुसपैठ की पहली जानकारी 22 सितंबर की रात मिली, जब लशदत जंगल में गश्त कर रहे जवानों ने खाली पड़े बंकरों के आसपास लगभग 30 लोगों को देखा। सेना के उच्चाधिकारियों ने उसी समय हालात का जायजा लेते हुए इन बंकरों व गांव को तत्काल खाली कराने के लिए विशेष अभियान चलाने का फैसला किया। मीडिया या अन्य सुरक्षा एजेंसियों को इस चूक का पता न चले, इसके लिए संबंधित सैन्य अधिकारियों व जवानों को अपनी जुबान बंद रखने और जन व्यवस्थाओं से जुड़े अधिकारियों से बात न करने की हिदायत दी गई।
बाकायदा थाने में मुकदमा दर्ज हुआ 24 सितंबर को केरन में सेना ने घुसपैठियों के खिलाफ अभियान शुरू किया। अगले दिन 25 सितंबर को 268 माउंटेन ब्रिगेड ने त्रेहगाम पुलिस थाने में धारा 241 के तहत एफआइआर दर्ज कराते हुए कहा कि केरन सेक्टर में घुसपैठियों की गतिविधियां देखी गई हैं, उनके खिलाफ तलाशी अभियान चलाया जा रहा है। भारतीय जवानों ने घुसपैठियों को चारों तरफ से घेरने का प्रयास करते हुए जवाबी हमला किया। इस दौरान भीषण मुठभेड़ हुई।
26 को दी गई सीमित जानकारी 26 सितंबर को सेना की 15 कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने श्रीनगर में पत्रकारों को बताया कि केरन में घुसपैठ के एक बडे़ प्रयास को नाकाम बनाते हुए 12 से 15 आतंकियों को मारा गया है। उन्होंने कहा कि मारे गए घुसपैठियों के शव बरामद नहीं किए जा सके हैं, क्योंकि शव पाकिस्तानी सैनिकों की सीधी फायरिंग रेंज में आते हैं। सूत्रों ने बताया कि यह दावा इसलिए किया गया था ताकि किसी को संदेह न हो कि नियंत्रण रेखा पर क्या चल रहा है, लेकिन ग्राउंड जीरो पर अभियान जारी रहा। घुसपैठ की बड़ी घटना : कोर कमांडर सेना की 15 कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने स्वीकार किया है कि कश्मीर के केरन सेक्टर में बड़े पैमाने पर घुसपैठ हुई है। उन्होंने कहा कि यह कोई साधारण घुसपैठ नहीं है। नौ दिनों से जारी इस अभियान में हमारे पांच जवान जख्मी हो चुके हैं। कार्रवाई अभी जारी है और घुसपैठियों में पाकिस्तानी जवानों के शामिल होने के साफ संकेत हैं। इसका तरीका हाल के दिनों में हुई घुसपैठ से अलग है। कोर कमांडर ने रणनीति के तहत कार्रवाई की इससे अधिक जानकारी देने से इन्कार किया है। लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने घुसपैठियों द्वारा केरन में किसी गांव या चौकी पर कब्जा होने से इन्कार किया है। वीरान पड़ा है शालबट्टू गांव शालबट्टू गांव किशनगंगा नदी के किनारे घने जंगल और पहाड़ों के बीच स्थित है। लगभग 25 साल पहले तक इस गांव में करीब तीन दर्जन परिवार रहते थे। 1990 में आतंकी हिंसा शुरू होने के बाद इस गांव के 21 परिवार एक रात अचानक नियंत्रण रेखा पार कर गुलाम कश्मीर चले गए। वह इसी गांव के सामने नियंत्रण रेखा के पार बसे हुए हैं और उस इलाके को शालबाटा कहा जाता है। शेष परिवार इस गांव में कारगिल युद्ध तक रहे। कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों की गोलाबारी से ग्रामीणों को बचाने के लिए उन्हें यहां से हटाकर वादी के अन्य इलाकों में बसाया गया। उसके बाद से यह गांव पूरी तरह वीरान है। नवाज के समय में ही कारगिल में हुई थी घुसपैठ पाकिस्तान ने यह कारनामा सन 1999 में कारगिल की घुसपैठ की तर्ज पर किया था। उस समय भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ थे। उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी दोस्ती का पैगाम लेकर बस से लाहौर गए थे। लेकिन उसके बदले देश को कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ की जानकारी मिली। इसके बाद दोनों देशों के बीच भीषण संघर्ष में भारतीय सेना ने हजारों आतंकी और पाकिस्तानी सैनिकों को मारकर अपनी जमीन को वापस लिया। इस संघर्ष में सैकड़ों भारतीय जवानों को भी जान गंवानी पड़ी थी। मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर