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असम में हिंसा जारी, जज पर हमला

असम में सांप्रदायिक हिंसा का दौर जारी है। गुरुवार को पुलिस गोलीबारी में एक व्यक्ति की मौत हो गई और चार अन्य घायल हो गए। तीन शव और मिलने से हिंसा में मरने वालों की संख्या बढ़कर 44 हो गई है। कोकराझाड़ में विशेष न्यायाधीश पर हमला हुआ, वह घायल हो गए हैं। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने कोकराझाड़ के हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा करके हालात का जायजा लिया। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह शनिवार को असम जाएंगे।

By Edited By: Updated: Thu, 26 Jul 2012 09:57 PM (IST)
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कोकराझाड़ [जागरण न्यूज नेटवर्क]। असम में सांप्रदायिक हिंसा का दौर जारी है। गुरुवार को पुलिस गोलीबारी में एक व्यक्ति की मौत हो गई और चार अन्य घायल हो गए। तीन शव और मिलने से हिंसा में मरने वालों की संख्या बढ़कर 44 हो गई है। कोकराझाड़ में विशेष न्यायाधीश पर हमला हुआ, वह घायल हो गए हैं। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने कोकराझाड़ के हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा करके हालात का जायजा लिया। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह शनिवार को असम जाएंगे।

कोकराझाड़ जिले में विशेष न्यायाधीश बिपुल सैकिया गुरुवार को अज्ञात लोगों के हमले में घायल हो गए। उनका वाहन भी क्षतिग्रस्त हो गया। भोतगांव कांचीपारा इलाके में जब वह एक राहत शिविर का निरीक्षण करने गए तभी उन पर हमला हुआ। धुबड़ी जिले में एक व्यक्ति की मौत पुलिस की गोली लगने से हुई। विरोध कर रही भीड़ को नियंत्रित करने के लिए यहां पर पुलिस ने गोली चलाई थी। बक्सा में भी गोलीबारी की सूचना है। कोकराझाड़ के साथ चिरांग, धुबड़ी और बक्सा जिलों में बुधवार रात को हिंसा की छिटपुट वारदात हुईं। सेना और सुरक्षा बलों की गश्त से हिंसा और आगजनी की घटनाओं में कमी आई है।

हिंसा प्रभावित इलाकों के करीब दो लाख लोग 150 राहत शिविरों में रह रहे हैं। हिंसाग्रस्त इलाकों के 11 लोग लापता हैं। गुरुवार को तीन विशेष ट्रेन प्रभावित इलाकों में फंसे लोगों को लेकर रवाना हुईं। रेल सेवा गुरुवार को भी सामान्य नहीं हो पाई। परिणामस्वरूप किल्लतों से जूझ रहे हजारों लोग अभी भी जहां-तहां फंसे हुए हैं।

केंद्र को पहले मिल गई थी हिंसा की जानकारी

स्थानीय प्रशासन सतर्क होता, तो कोकराझार में फैली हिंसा पर शुरू में ही काबू पाया जा सकता था। हालत यह है कि पिछले हफ्ते जिस घटना से हिंसा की चिंगारी निकली उसकी सूचना राज्य सरकार से पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय के अफसरों को मिल गई थी। चार बोडो नागरिकों की हत्या के तत्काल बाद एक स्थानीय नागरिक ने दिल्ली स्थित अपने दोस्त को इसकी जानकारी दी। यह भी बताया कि हत्याओं के पीछे अल्पसंख्यक समुदाय का हाथ होने की आशंका है। दिल्ली स्थित उस दोस्त का परिचय गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी से है। उसने पूरी जानकारी उस अधिकारी को दे दी।

गृह मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, घटना की गंभीरता समझते हुए तत्काल राज्य के आला अफसरों को सचेत किया गया। इसके बाद ही असम सरकार हरकत में आई, जबकि कोकराझार प्रशासन इस घटना को सामान्य रूप से देख रहा था। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, स्थानीय अधिकारी समय रहते घटना की गंभीरता समझ लेते तो स्थिति कुछ और होती।

ताजा हिंसा से खतरे में पड़ सकती है शांति वार्ता

नई दिल्ली। असम में फैली हिंसा से बोडो अलगाववादियों के साथ जारी शांति प्रक्रिया मुश्किल में फंस सकती है। वैसे अभी तक चार जिलों में बोडो व अल्पसंख्यक समुदायों के बीच फैली हिंसा में किसी बोडो अलगाववादी संगठन की सीधी भागीदारी के सबूत नहीं मिले हैं, लेकिन सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार इसमें बोडो लिबरेशन टाइगर्स के लड़ाकों ने अहम भूमिका निभाई है।

ध्यान देने की बात है कि बोडो इलाकों के लिए स्वायत्तशासी क्षेत्रीय परिषद के गठन के बाद अलगाववादी गतिविधियों पर विराम लग गया था। इस बीच विभिन्न बोडो अलगाववादी गुट राज्य व केंद्र सरकार से बातचीत भी कर रहे थे। गृह मंत्रालय के अधिकारियों को भरोसा था कि उल्फा व दूसरे अलगाववादी संगठनों की तरह बोडो अलगाववादी भी शांति समझौते पर जल्द ही हस्ताक्षर कर देंगे।

सुरक्षा एजेंसी से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ताजा हिंसक घटनाओं के बाद आम बोडो नागरिकों में फैली असुरक्षा की भावना नए सिरे से उन्हें संगठित अलगाववादियों से जुड़ने के लिए प्रेरित कर सकती है। इससे हाशिए पर चले गए अलगाववादियों को नया जनाधार मिल सकता है।

वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ऐसे में अलगाववादी अपनी नई मांगों के साथ सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर सकते हैं। गौरतलब है कि 1986 के बाद लगभग 20 साल तक असम बोडो अलगाववादियों की हिंसा से बूरी तरह ग्रस्त रहा। अलग देश से शुरू हुई उनकी मांग अलग राज्य व अंतत अलग स्वायत्तशासी परिषद तक जाकर खत्म हुई। इस बीच पिछले साल असम के सबसे बड़े अलगाववादी संगठन उल्फा के एक गुट ने भी केंद्र सरकार के साथ युद्धविराम पर हस्ताक्षर कर दिया। दो बड़े अलगाववादी गुटों के युद्धविराम से असम में स्थायी शांति की उम्मीदें बढ़ गई थीं।

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