अहम है जनजातियों का खगोलीय ज्ञान
आधुनिक खगोल वैज्ञानिक विश्लेषणों की तरह ही ये जनजातियां भी आकाश में तारामंडलों के किसी जानवर विशेष की तरह दिखने और फिर उसकी विभिन्न बनती-बिगड़ती स्थितियों के आधार पर भविष्यवाणियां करती हैं।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Tue, 24 Oct 2017 02:11 PM (IST)
वास्को द गामा (गोवा), आइएसडब्ल्यू : भारत की जनजातियों का खगोल-विज्ञान संबंधी पारंपरिक ज्ञान अनूठा है। मुंबई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के वैज्ञानिकों ने मध्य भारत की चार जनजातियों के पारंपरिक ज्ञान पर किए गए गहन अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है।
इन चार जनजातियों पर चार वर्ष किया शोध : करंट साइंस जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, महाराष्ट्र के नागपुर क्षेत्र की गोंड, बंजारा, कोलम और कोरकू जनजातियों के पारंपरिक खगोलीय ज्ञान पर चार सालों के विस्तृत शोध में शोधकर्ताओं ने पाया है कि मुख्यधारा से कटी रहने वाली ये जनजातियां खगोल-विज्ञान के बारे में आम लोगों से अधिक व महत्वपूर्ण जानकारियां रखती हैं। यह ज्ञान उनमें अनुवांशिक रूप से परंपराओं के जरिये पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है। उन्होंने यह भी पाया गया है कि गोंड जनजाति के लोगों का खगोल संबंधी ज्ञान अन्य जनजातियों से काफी अधिक है।तारामंडल में बुलाकर किया परीक्षण : अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने गांवों में जाकर जनजातियों से उनकी परंपरागत खगोलीय जानकारियों को प्राप्त किया। साथ ही गोंड जनजाति के लोगों को नागपुर के तारामंडल में बुलाकर उनके खगोलीय ज्ञान का परीक्षण भी किया गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इन जनजातियों के खगोलीय ज्ञान भले ही आध्यात्मिक मान्यताओं और किंवदंतियों से जुड़ा हो, पर उसमें सार्थक वैज्ञानिकता समाहित है और देश के अन्य भागों में रहने वाली जनजातियों के खगोलीय ज्ञान पर भी शोध करने की आवश्यकता है। जनजातियों का पारंपरिक ज्ञान खगोल-वैज्ञानिक अध्ययन के विकास में एक प्रमुख घटक साबित हो सकता है।
आकाशगंगा के बारे में भी अच्छी जानकारी : शोधकर्ताओं के मुताबिक, आकाशगंगा के बारे में भी जनजातीय लोग अच्छी जानकारी रखते हैं। हालांकि, रात में सभी तारों में से सबसे ज्यादा चमकीले नजर आने वाले व्याध तारा और अभिजित तारा के बारे में उनको कोई ज्ञान नहीं है। सभी आकाशीय पिंडों को लेकर प्रत्येक जनजाति की अलग-अलग लेकिन सटीक अवधारणाएं हैं और ये जनजातियां अपनी खगोल-वैज्ञानिक सांस्कृतिक जड़ों के बारे में बहुत ही रूढ़िवादी पाई गई हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, बंजारा, कोलम और कोरकू जनजातियों में विभिन्न देवी-देवताओं को लेकर खगोलीय पिंडों के साथ अनेक कथाएं भी जुड़ी हैं। मंगल और शुक्र ग्रह की अच्छी जानकारी : आधुनिक खगोल वैज्ञानिक विश्लेषणों की तरह ही ये जनजातियां भी आकाश में तारामंडलों के किसी जानवर विशेष की तरह दिखने और फिर उसकी विभिन्न बनती-बिगड़ती स्थितियों के आधार पर भविष्यवाणियां करती हैं। भोर के तारे और सांध्यतारा के नाम से मंगल और शुक्र ग्रहों की भी उनको अच्छी जानकारी है। उनका मानना है कि ये दोनों ग्रह हर 18 महीने के अंतराल पर एक-दूसरे के निकट आते हैं।