मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। एकटा टाइगर [यानी एक ही शेर]। शिवसेना द्वारा अक्सर अपने समर्थकों का मनोबल बढ़ाने एवं विरोधियों को चेतावनी देने के लिए इन दो शब्दों के साथ अपने नेता बाल ठाकरे की तर्जनी दिखाती तस्वीर वाले होर्डिग्स का इस्तेमाल किया जाता रहा है। मुंबई पर पिछले 45 साल से राज करते आ रहे इस शेर की दहाड़ अब नहीं सुनाई देगी। पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे ठाकरे ने शनिवार दोपहर करीब 3:30 बजे शरीर छोड़ दिया। इसके साथ ही क्षेत्रीय राजनीति को पहचान देने वाले वाले एक युग का भी अंत हो गया। ठाकरे का दाह संस्कार रविवार की शाम शिवाजी पार्क में ही किया जाएगा। शिवसेना प्रवक्ता और सांसद संजय राउत ने बताया कि इसके लिए प्रशासन से अनुमति ले ली गई है।
By Edited By: Updated: Sun, 18 Nov 2012 03:33 PM (IST)
मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। एकटा टाइगर [यानी एक ही शेर]। शिवसेना द्वारा अक्सर अपने समर्थकों का मनोबल बढ़ाने एवं विरोधियों को चेतावनी देने के लिए इन दो शब्दों के साथ अपने नेता बाल ठाकरे की तर्जनी दिखाती तस्वीर वाले होर्डिग्स का इस्तेमाल किया जाता रहा है। मुंबई पर पिछले 45 साल से राज करते आ रहे इस शेर की दहाड़ अब नहीं सुनाई देगी। पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे ठाकरे ने शनिवार दोपहर करीब 3:30 बजे शरीर छोड़ दिया। इसके साथ ही क्षेत्रीय राजनीति को पहचान देने वाले वाले एक युग का भी अंत हो गया। ठाकरे का दाह संस्कार रविवार की शाम शिवाजी पार्क में ही किया जाएगा। शिवसेना प्रवक्ता और सांसद संजय राउत ने बताया कि इसके लिए प्रशासन से अनुमति ले ली गई है।
86 वर्षीय शिवसेना प्रमुख का इलाज करने वाले डॉक्टर जलील पारकर ने मातोश्री से बाहर निकलकर जैसे ही उनके निधन की घोषणा की, पूरे महाराष्ट्र में शोक की लहर दौड़ गई। पारकर ने बताया कि बाल ठाकरे को दिल का दौरा पड़ा था। अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद हम उन्हें नहीं बचा सके। शिवसेना नेता संजय राउत ने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उनकी मौत पर गहरा शोक जताया है। प्रधानमंत्री ने भाजपा नेताओं को रात्रिभोज का न्योता दिया था, जिसे सुषमा स्वराज के आग्रह पर रद कर दिया गया। पार्टी नेताओं ने बताया कि बाल ठाकरे के पार्थिव शरीर को आम लोगों के दर्शन के लिए शिवाजी पार्क में रखा जाएगा। रविवार सुबह 7:00 बजे से लोग अंतिम दर्शन कर सकेंगे। शाम तक अंतिम संस्कार होने की संभावना है।
ठाकरे के न रहने की खबर ने जहां उनके समर्थक शिवसैनिकों को भाव विह्वल कर दिया है, वहीं उस उत्तर भारतीय, दक्षिण भारतीय एवं गुजराती समूह का भी गला रुंधा दिखाई दे रहा है, जो कभी न कभी उनकी क्षेत्रीयतावादी राजनीति का शिकार हो चुका है। संभवत: ऐसा इसलिए क्योंकि इन सभी वर्गो को मीठा बोलकर अपना हित साधने वाले नेताओं की तुलना में सीधा-सपाट बोलने वाले एवं एक बार कोई वक्तव्य देकर उससे पीछे न हटने वाले ठाकरे ज्यादा ईमानदार नजर आते थे। ठाकरे ने शिवसेना का प्रतीक चिह्न बाघ रखा था। आज उनके न रहने पर आंसू बहा रहे प्रतिबद्ध शिवसैनिकों के इतने बड़े संगठन को अपने इशारे पर पूरे अनुशासन के साथ नचाना किसी बाघ की सवारी से कम भी नहीं था। ठाकरे ऐसा करने में पूरी तरह सफल रहे। दाऊद इब्राहिम, छोटा राजन, अरुण गवली जैसे अनेकानेक माफिया सरगनाओं के प्रभावशाली मुंबई में अक्सर लोगों को यह कहते सुना जाता रहा कि इन सबसे बड़े दबंग ठाकरे हैं। शायद यही कारण है कि आज उनके न रहने पर मुंबई महानगर का एक बड़ा वर्ग चाक-चौबंद सरकारी व्यवस्थाओं के बावजूद खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है। राष्ट्रीय मुद्दों को नहीं छोड़ा
ठाकरे ने क्षेत्रीय राजनीति करने के बावजूद राष्ट्रीय मुद्दों से कभी अपने आप को अलग नहीं रखा। बांग्लादेशी घुसपैठ सहित देश की सुरक्षा से जुड़े अनेक मुद्दों पर उनकी स्पष्टबयानी ने ही उन्हें राष्ट्रीय पहचान दी। यह पहचान भी ऐसी कि बीती सदी के आखिरी दशक में तो कश्मीर से कटक तक ऐसे-ऐसे स्थानों पर शिवसेना का बोर्ड लगा दिख जाता था, जहां तक शिवसेना को पहुंचाने का सपना स्वयं ठाकरे ने भी कभी नहीं देखा था। चर्चित रामजन्मभूमि आंदोलन को भाजपा और विहिप द्वारा अपना पेटेंट समझने के बावजूद उस दौरान देश के कोने-कोने से उग्र राष्ट्रवाद के समर्थक नौजवान सिर्फ ठाकरे के दर्शन करने के लिए मुंबई चले आते थे। अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाए जाने के तुरंत बाद जब भाजपा का शीर्ष नेतृत्व बगलें झांकते दिखाई दे रहा था, तब भी ठाकरे सीना ठोंक कर यह दावा करने से नहीं कतराए कि हां, हमारे शिवसैनिकों ने ढांचा गिराया।
साम्यवादी पार्टियों का सफाया 1960 से 1975 के बीच कपड़ा मिलों के शहर मुंबई में समाजवाद-साम्यवाद को जड़ से उखाड़ने का श्रेय भी ठाकरे को ही जाता है। श्रीपाद अमृत डांगे, कृष्णा देसाई और जार्ज फर्नाडिस जैसे चोटी के साम्यवादी-समाजवादी नेताओं के नेतृत्व में चल रही यूनियनों के लाल झंडे की जगह शिवसेना का भगवा फहराकर ही ठाकरे ने मिल मजदूरों को शिवसेना से जोड़ा। अंतत: यही यूनियनें शिवसेना की असली ताकत बनकर उभरीं और मुंबई से साम्यवादी पार्टियों का सफाया हो गया। आज बिहार, कश्मीर सहित केंद्र में भी गठबंधन की राजनीति प्रौढ़ होती दिखाई दे रही है। लेकिन सफलतापूर्वक गठबंधन सरकार चलाने का पहला मॉडल भी ठाकरे के ही नेतृत्व में 1995 में महाराष्ट्र की शिवसेना-भाजपा सरकार में देखा गया। सेना-भाजपा की सरकार जाने के बाद पिछले 13 साल से महाराष्ट्र में चल रही कांग्रेस-राकांपा सरकार ने भी इसी मॉडल को अपना रखा है। महाराष्ट्र में बढ़ाई सुरक्षा मुंबई। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के निधन के बाद मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। अकेले मुंबई में कड़ी चौकसी के लिए 20 हजार पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है। महाराष्ट्र पुलिस मुख्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि राज्य भर में पुलिस बल को सतर्क कर दिया गया है। खबर मिलने के बाद सिनेमाघर मालिकों ने शनिवार रात और सोमवार को थियेटर बंद रखने की घोषणा कर दी है। वहीं, बेलगाम में रविवार को बंद रहेगा। उम्मीद की जा रही है कि ठाकरे के अंतिम दर्शन के लिए लाखों लोग मायानगरी पहुंचेंगे। इसके मद्देनजर अकेले मुंबई में 20 हजार पुलिसकर्मी, 15 कंपनी स्टेट रिजर्व पुलिस बल और तीन दस्ते आरपीएफ तैनात किए जा रहे हैं। अंतिम संस्कार की गतिविधियां रविवार सुबह 7 बजे से शुरू हो जाएंगी। पुलिस आयुक्त सत्यपाल सिंह ने बताया कि दादर के शिवसेना भवन, बांद्रा स्थित मातोश्री और शिवाजी पार्क में पर्याप्त जवानों को भेज दिया गया है। उन्होंने लोगों से शांत रहने और कानून व्यवस्था बनाए रखने की अपील की है। आम नागरिकों को बहुत जरूरी होने पर ही घर से निकलने की सलाह दी गई है। दादर और बांद्रा क्षेत्र में यातायात पर कई तरह की पाबंदियां होंगी। पुलिस ने वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे से नहीं जाने की अपील की है। मायानगरी में ठाकरे की मौत के बाद सन्नाटा पसर गया। दुकानें, होटल, रेस्टोरेंट और अन्य वाणिज्यक प्रतिष्ठान बंद हो गए। मुंबई के सिनेमाघर मालिकों ने बाल ठाकरे के निधन के बाद सुरक्षा के लिहाज से फैसला किया कि शनिवार शाम के बाद सभी शो और रविवार के सभी शो बंद रखे जाएंगे। पीवीआर सिनेमा के एक अधिकारी ने कहा कि रविवार को हालात का जायजा लेने के बाद आगे का फैसला लिया जाएगा। महाराष्ट्र एकीकरण समिति, शिवसेना और हिंदू संगठनों ने बाल ठाकरे को श्रद्धांजलि देने के लिए रविवार को बेलगाम बंद का फैसला किया है। इलाज में जुटे थे मुस्लिम डॉक्टर जागरण न्यूज नेटवर्क, नई दिल्ली। हिंदूवादी नेता माने जाने वाले शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे का इलाज करने वाली टीम में दो मुस्लिम डॉक्टर भी थे। लीलावती अस्पताल के डॉक्टर जलील पारकर और अब्दुल समद अंसारी विगत कई सालों से बाल ठाकरे से जुड़े थे। जलील पारकर के मुताबिक मातोश्री में उन्हें परिवार का एक सदस्य माना जाता है। 2009 में जब बाल ठाकरे बीमार पड़े थे तो उन्हें लीलावती अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उस समय पारकर और अंसारी उनका इलाज कर रहे थे। अंतिम समय में भी ये दोनों डॉक्टर उनके साथ थे। इनके अलावा लीलावती अस्पताल के ही डॉक्टर प्रकाश जिंदानी टीम में शामिल थे। जलील पारकर और बाल ठाकरे के बीच भावनात्मक लगाव भी था। शनिवार को जब पारकर ठाकरे के निधन की सूचना मीडिया को दे रहे थे तो उनके चेहरे पर भावुकता भी साफ झलक रही थी। पिछले पांच छह दिनों से डॉक्टरों की टीम मातोश्री में ही उनका इलाज कर रही थी। इस दौरान कोई मेडिकल बुलेटिन जारी नहीं किया गया। उनसे मिलने-जुलने वाले नेता ही बाहर आकर मीडिया को उनके स्वास्थ्य की जानकारी दे रहे थे। पारकर ने जागरण समूह के अखबार 'मिड-डे' को साल 2009 में दिए गए एक साक्षात्कार में बताया था कि बाल ठाकरे डॉक्टरी सलाह पर काफी अनुशासित थे। लेकिन, अगर आप उनसे कुछ चीजों से दूर रहने के लिए कहते हैं तो आपको उसके लिए जायज वजह बतानी होगी। उन्होंने बताया था कि मातोश्री में उनका आना-जाना रहता है। पूरा ठाकरे परिवार उन्हें घर का एक सदस्य मानता है। केंद्र पर भी दिखेगा बाला साहेब के जाने का असर जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। शिवसेना भले ही एक क्षेत्रीय दल हो लेकिन उसका प्रभाव राष्ट्रीय है। आंकड़ों से इतर शिवसेना ने राजनीतिक और सांस्कृतिक सोच के धरातल पर अगर अपनी छाप छोड़ी तो यह सिर्फ बाला साहेब ठाकरे के व्यक्तित्व का कमाल था। लाजिमी है कि राजनीतिक सहयोगी के रूप में उनका जाना भाजपा को तो अखरेगा ही, महाराष्ट्र के रास्ते केंद्र पर भी इसका असर दिखेगा। बाला साहेब की कंट्टर हिंदूवादी छवि और अक्सर क्षेत्रीय संवेदनशीलता विवादों का विषय भले ही रहा हो, इससे शायद ही कोई असहमत हो कि वह विश्वसनीय थे। एक अक्खड़ राजनीतिज्ञ, जो धारा के विपरीत बहने से न डरे। और उस मायने में यह माना जा सकता है कि भारतीय राजनीति में एक युग का अंत हो गया। महाराष्ट्र में जहां इसका सीधा असर दिखेगा वहीं राष्ट्रीय स्तर पर भी भाजपा और राजग को भी इसका एहसास होगा। लालकृष्ण आडवाणी से लेकर राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, नितिन गडकरी समेत दूसरे कई नेताओं ने इसे स्वीकार भी किया कि राजनीति में उनकी कमी खलेगी। राष्ट्रीय स्तर पर मिसाल ढूंढे़ तो बहुत पीछे नहीं जाना होगा। अभी कुछ ही महीने पहले राष्ट्रपति चुनाव में प्रणब मुखर्जी को समर्थन देने की बात आई तो उन्होंने राजग से परे हटते हुए फैसला ले लिया। राजग में प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर विवाद छिड़ा तो उन्होंने बिना संकोच अपनी राय जताने से परहेज नहीं किया। दरअसल, उनकी यही बेबाकी उन्हें दूसरों से अलग करती थी। आधे शतक से ज्यादा समय तक मुंबई और महाराष्ट्र की राजनीति में धूमकेतु की तरह रहने वाले ठाकरे की सोच और बयानों पर अक्सर विवाद रहा है। राष्ट्रवाद का उनका तौर तरीका अति राष्ट्रवाद कहा जाता रहा। फिर भी इसमें कोई शक नहीं वह एक देशभक्त थे और महाराष्ट्र में उनकी पकड़ मजबूत थी। ऐसे में समय पूर्व लोकसभा चुनाव की अटकलों के बीच उनका जाना केंद्र की राजनीति पर असर डाल सकता है। राजनीतिक हस्तियों की प्रतिक्रियाएं बाला साहेब महाराष्ट्र में तूफान की तरह आए थे और अपने अंदाज में लोगों की सेवा की। - सुशील कुमार शिंदे [केंद्रीय गृह मंत्री] ------ बाला साहेब में गजब की नेतृत्व क्षमता थी। वह दिग्गज नेता थे। बाला साहेब के निधन से जो जगह खाली हुई है, उसे भरा नहीं जा सकता। - लालकृष्ण आडवाणी ------- बाला साहेब का निधन मेरे और भाजपा के लिए बड़ी क्षति है। उनसे हमें प्रेरणा मिलती थी। वह अपनी बात बेबाकी से रखते थे। - नितिन गडकरी --------- बाला साहेब का जाना एक युग की विदाई है। वह जिंदादिल इंसान थे। उन्होंने अपने बूते पर पार्टी खड़ी की। उनके जाने का हमें गहरा दुख है। नरेंद्र मोदी [गुजरात के मुख्यमंत्री] ------- बाला साहेब महाराष्ट्र का गौरव थे। मराठी भाषा और मराठियों के हित के लिए वह कोई भी कीमत चुकाने को तैयार रहते थे। - शरद पवार [राकांपा प्रमुख] -------- बाला साहेब की कमी हमेशा खलेगी। वह अपने फैसले पर हमेशा अडिग रहते थे। - संजय निरुपम [कांग्रेस सांसद] ------ बॉलीवुड भी गम में डूबा वह धैर्यवान और दृढ़ विश्वासी थे, आखिरी दिनों में भेंट के दौरान मैंने उन्हें उखड़ती सांसों से लड़ते देखा। यह यकीन करना मुश्किल है कि वह हमें छोड़कर चले गए। - अमिताभ बच्चन ------------ हम बालासाहेब ठाकरे की मृत्यु पर गहरी संवेदना प्रकट करते हैं। मेरा हमेशा से मानना रहा है कि वह बाघ नहीं एक शेर थे। - दिलीप कुमार ----------- हिंदू हृदय सम्राट परम आदरणीय बालासाहेब ठाकरे हम लोगों को छोड़कर अनंत में विलीन हो गए। यह सच है कि ठाकरे की मौत से महाराष्ट्र अनाथ हो गया है। - लता मंगेशकर ----------- दृढ़ निश्चयी और दूरदृष्टि वाले महान नेता बाला साहेब अब हमारे बीच नहीं हैं। - अजय देवगन ------------ फिल्मी पर्दे की सरकार देखने के बाद रियल 'सरकार' ने जब मुझे गले लगाया था, उस क्षण को मैं कभी भूल नहीं सकता। लफ्जों के हर मायने में वह शक्ति के सच्चे प्रतीक थे। - राम गोपाल वर्मा ----------------- संघर्ष खत्म हुआ और अनंत यात्रा शुरू हुई। ठाकरे परिवार को हुई इस अपूरणीय क्षति को देखकर मैं दुखी हूं। - हेमा मालिनी ---------- बाल ठाकरे की यादें मुंबईकरों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगी। - महेश भंट्ट ----------- बाला साहेब हीरो थे। लोग उन्हें प्यार करते थे, उनकी नकल करते थे, उनका अनुसरण करते थे। - रितेश देशमुख ---------- बालासाहेब की मृत्यु से भारतीय राजनीति में एक शून्य पैदा हो गया है। उनके साहस के लिए हमेशा उनकी प्रशंसा की जाएगी। - अक्षय कुमार ---------मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर