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उनमें है देश सेवा का जज्बा, याद ही नहीं, कब ली थी छुटी

नई दिल्ली जिले के संसद मार्ग थाने में डिप्लॉयमेंट ऑफिसर व कंसल्टेंट के तौर पर तैनात बलजीत सिंह राणा को ठीक से याद नहीं कि आखिरी बार उन्होंने छुट्टी कब ली थी। बहुत पूछने पर वह अपनी याददाश्त पर जोर देकर बताते हैं कि साल 1

By Edited By: Updated: Sun, 02 Mar 2014 10:52 AM (IST)

नई दिल्ली [ममता सिंह]। नई दिल्ली जिले के संसद मार्ग थाने में डिप्लॉयमेंट ऑफिसर व कंसल्टेंट के तौर पर तैनात बलजीत सिंह राणा को ठीक से याद नहीं कि आखिरी बार उन्होंने छुट्टी कब ली थी। बहुत पूछने पर वह अपनी याददाश्त पर जोर देकर बताते हैं कि साल 1998 में उन्होंने आखिरी बार छुट्टी ली थी। इसके बाद दिसंबर 2002 में उनकी बेटी की शादी हुई, लेकिन शादी में जाने के लिए भी वह अपनी ड्यूटी करके निकले। तब से लेकर आज तक वह बिना कैजुअल लीव, मेडिकल लीव यहां तक साप्ताहिक अवकाश लिए बगैर लगातार काम किए जा रहे हैं।

बलजीत 1976 से इंडिया गेट, जंतर मंतर, राजघाट व रामलीला मैदान में होने वाले धरने और विरोध प्रदर्शन का कार्यभार संभाल रहे हैं। ऐसा नहीं है कि राणा किसी दबाव में आकर ऐसा कर रहे हैं, बल्कि उन्हें अपने काम और देश से इतना प्यार है कि कभी छुट्टी लेने की जरूरत महसूस ही नहीं होती। इसका अंदाजा पुलिस विभाग को भी है। यही कारण है कि 2012 में बतौर सब इंस्पेक्टर सेवानिवृत होने के बावजूद उन्हें जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं किया और फिलहाल वह बतौर डिप्लॉयमेंट ऑफिसर व कंसल्टेंट, दिल्ली पुलिस में कार्यरत हैं।

हरियाणा के सोनीपत के ताल्लुक रखने वाले राणा को बचपन से पुलिस सेवा में जाने का शौक था। उनका यह सपना तब सच हुआ जब बतौर कांस्टेबल 1973 में दिल्ली पुलिस में उनकी नियुक्ति हुई। शुरुआत में उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति भवन में हुई। इस दौरान 1976 में उन्हें संसद मार्ग थाने में भेज दिया गया जिसके बाद राणा ने पूरी निष्ठा के साथ अपनी जिम्मेदारियों को निभाया कि उसके बाद उन्हें किसी और जगह स्थानांतरित नहीं किया गया।

संसद मार्ग थाने में कंट्रोल रूम की जिम्मेदारी उठाने के दौरान पिछले करीब तीस सालों में राणा ने राजनीति के युग को करवट बदलते देखा है। वह बताते हैं कि धरने और विरोध प्रदर्शन तो 70 और 80 के दशक में हुआ करते थे। उस दौर के नेता इतने प्रभावशाली थे कि रैली व धरने में चार से पांच लाख लोग तो सामान्य तौर पर आ जाते थे। आजकल धरना, रैली व विरोध प्रदर्शन तो बहुत होते हैं, लेकिन उनमें आने वाले लोगों की संख्या काफी घट गई है।

साथ ही पहले के नेताओं में इतना आकर्षण था कि लोगों की संख्या चाहे जितनी भी हो लेकिन जनता अनुशासन में रहती थी। आजकल होने वाले प्रदर्शनों में अक्सर ही लोग नेता की बातों को नजरंदाज करके उग्र हो जाते हैं। ऐसे में हमेशा ही अप्रत्याशित घटना की आशंका बनी रहती है। ऐसा नहीं है कि कभी राणा की पत्नी और बच्चे उन्हें छुट्टी लेने के लिए नहीं कहते, लेकिन वह राणा के अपने काम और देश के प्रति जज्बे का सम्मान भी करते हैं।

यही वजह है कि राणा को अपने परिवार से और अच्छा काम करने की प्रेरणा मिलती है। वह चाहते हैं कि उनके जीवन में कभी ऐसा कोई दिन न आए जब उन्हें एक दिन की भी छुट्टी लेनी पड़े। उनकी बस एक ही तमन्ना है कि आखिरी सांस तक वह अपने देश और जनता के लिए काम करते रहें।