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हड़ताली कर्मियों के सामने नहीं झुकेगी केंद्र सरकार

ज्यादा पेंशन व वेतन को लेकर सरकारी बैंकों के कर्मचारियों की हड़ताल से देश भर में लाखों लोग परेशान हैं, लेकिन केंद्र सरकार इनकी मांगें मानने के मूड में नहीं है। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने सोमवार को तंज भरे लहजे में हड़ताली कर्मचारियों से कहा कि बैंकों का सारा मुनाफा वेतन में नहीं बांटा जा सकता।

By Edited By: Updated: Mon, 10 Feb 2014 10:54 PM (IST)
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नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। ज्यादा पेंशन व वेतन को लेकर सरकारी बैंकों के कर्मचारियों की हड़ताल से देश भर में लाखों लोग परेशान हैं, लेकिन केंद्र सरकार इनकी मांगें मानने के मूड में नहीं है। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने सोमवार को तंज भरे लहजे में हड़ताली कर्मचारियों से कहा कि बैंकों का सारा मुनाफा वेतन में नहीं बांटा जा सकता। यूनियनों ने वित्त मंत्री के इस बयान का विरोध किया है। उन्होंने कहा है कि सरकार 10,000 करोड़ रुपये का लाभांश ले सकती है, मगर बैंककर्मियों के वेतन भत्ते में संयुक्त तौर पर 3,000 करोड़ रुपये की वृद्धि को बहुत ज्यादा मान रही है।

देश के 26 सरकारी बैंकों, 12 निजी और 57 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के लगभग 10 लाख कर्मचारी सोमवार से दो दिनों की हड़ताल पर हैं। 26 सरकारी बैंकों में लगभग 8.5 लाख कर्मचारी हैं, जबकि 57 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के कर्मचारियों की संख्या 70 हजार के करीब है। यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स (यूएफबीयू) के तत्वाधान में पिछले एक महीने के भीतर श्रम मंत्रालय और वित्त मंत्रालय के साथ हड़ताल को लेकर कई स्तर पर बातचीत हुई थी, लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकल पाया।

बैंक यूनियनों की मांग के मुताबिक वेतन और पेंशन में वृद्धि करने से 26 सरकारी बैंकों पर तीन हजार करोड़ का सालाना का बोझ पड़ेगा। ऐसे समय जब हर वर्ष इन बैंकों को पूंजी आधार बढ़ाने के लिए केंद्र की तरफ से 15 हजार करोड़ रुपये दिए जा रहे हैं। वित्त मंत्रालय इस अतिरिक्त बोझ के पक्ष में नहीं। इसी संदर्भ में सोमवार को वित्त मंत्री ने कहा कि बैंकों के मुनाफे पर दूसरे हिस्सेदारों का हक ज्यादा है और उससे पूंजी की जरूरत पूरी करनी होती है। चिदंबरम ने कर्मचारी यूनियनों के इस आरोप को भी निराधार बताया कि सरकार सारा मुनाफा बतौर लाभांश ले लेती है।

इस पूरे प्रकरण का दूसरा पहलू यह है कि पिछले वित्त वर्ष 2012-13 में सरकारी बैंकों का संयुक्त तौर पर संचालन मुनाफा 1,21,000 करोड़ रुपये था। बैंक कर्मचारी यूनियनों का कहना है कि 70 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान तो फंसे कर्जे वगैरह की वजह से करने पड़े हैं। सरकार ने 10 हजार करोड़ रुपये का लाभांश ले लिया। इसके बावजूद शुद्ध मुनाफे के तौर पर 50 हजार करोड़ रुपये की राशि बचती है। ऐसे में तीन हजार करोड़ रुपये का बोझ बहुत ज्यादा नहीं है।

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