शीतकालीन सत्र बाधित होने पर बीजद सांसद ने आंशिक वेतन लौटाया
बाइजयंत 'जय' पांडा ट्वीट करते हुए कहा है कि संसद ना चलने से जो समय का नुकसान उसके मद्देनजर मैं हमेशा की तरह अपने वेतन को लौटाने की पेशकश करता हूं।
नई दिल्ली, प्रेट्र। बीजू जनता दल (बीजद) के सांसद बाइजयंत जय पांडा ने कहा कि वह हंगामे के चलते लोकसभा के बर्बाद हुए समय के अनुपात में अपना वेतन और दैनिक भत्ते वापस करेंगे। पांडा पिछले कुछ सालों से संसद की बाधित कार्यवाही के हिसाब से अपना वेतन वापस करते आ रहे हैं।
पांडा ने रविवार को कहा कि वह ऐसा संसद का कामकाज बाधित होने के सांकेतिक विरोध के तौर पर करते हैं। हालांकि वह यह भी स्वीकार करते हैं कि जितनी बड़ी तादाद में संसद की कार्यवाही में लगने वाली रकम जाया हो रही है, उनकी लौटाई यह रकम उसके हिसाब से कुछ भी नहीं है। उन्होंने कहा, 'संसद में हंगामे के चलते देश बहुत बड़ी तादाद में अपनी रकम गंवाता जा रहा है।
मैं ऐसा इसलिए करता हूं क्योंकि मुझे मेरा जमीर धिक्कारता है। हमें जो काम करना है हम उसके लिए इतने लाभ लेते हैं लेकिन हम उसी काम को नहीं कर रहे हैं।' पांडा ने जोर देकर कहा कि उन्होंने कभी भी संसद को बाधित नहीं किया है। मैंने पिछले 16 सालों में ऐसा नहीं किया है। ऐसा मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है।
इस पर बीजेपी सांसद प्रहलाद सिंह पटेल ने कहा, 'अगर जय पांडा लगता है कि उन्होंने काम नहीं किया है तो वह सांसद के रूप में प्राप्त करने वाले अपने वेतन का एक हिस्सा लौटा सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि कहा कि पांडा के विचार का नैतिक स्टैंड हो सकता है लेकिन यहां आदर्शवाद के लिए कोई निर्धारित नियम नहीं है। जय पांडा एक समृद्ध पृष्ठभूमि से आते हैं इसका मतलब ये नहीं है कि उनका ये विचार नैतिक हो गया। अन्य लोगों को वेतन की आवश्यकता है क्योंकि वह अमीर नहीं है।'
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एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और वकील विवेक तन्खा ने कहा कि पांडा ने जो ट्वीट किया है ये एक विचार हैं।ज्यादातर सांसद ऐसे हैं कि अगर वो अपना वेतन दे देंगे तो वह जीवित कैसे रहेंगे? उन्होंने कहा कि मैं अपना वेतन दे सकता हूं, क्योंकि मैंने कानूनी अभ्यास कर रखा है। लेकिन मैं आज पांडा के प्रस्ताव का पालन नहीं करुंगा। मैं इस स्थिति की बाद में समीक्षा करुंगा।
तन्खा ने तर्क दिया कि संसद सत्र के धुल जाने के लिए सांसद व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार नहीं थे। उन्होंने कहा कि मैं संसद के कामकाज का समर्थक हूँ। मुझे बहस में विश्वास है। संसद में विरोध प्रदर्शन करने पर निर्णय सांसदों द्वारा नहीं लिया जाता, दरअसल यह फैसला नेतृत्व द्वारा लिया जाता है।
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