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भाजपा को मंजूर नहीं छोटी पार्टी बनकर रहना

ऐतिहासिक जीत के साथ केंद्र में पहुंची भाजपा अब दूसरे दलों के लिए सीढ़ी नहीं बनेगी। इस कड़ी में महाराष्ट्र के बाद पंजाब भी आ सकता है। माना जा रहा है कि आने वाले समय में पंजाब के सहयोगी अकाली दल ने अपने रुख में बदलाव नहीं किया तो स्थितियां बिगड़ सकती हैं। पंजाब में भाजपा को बराबर का दर्जा देने की मांग उठ सकत

By Edited By: Updated: Fri, 26 Sep 2014 10:23 PM (IST)
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नई दिल्ली [आशुतोष झा]। ऐतिहासिक जीत के साथ केंद्र में पहुंची भाजपा अब दूसरे दलों के लिए सीढ़ी नहीं बनेगी। इस कड़ी में महाराष्ट्र के बाद पंजाब भी आ सकता है। माना जा रहा है कि आने वाले समय में पंजाब के सहयोगी अकाली दल ने अपने रुख में बदलाव नहीं किया तो स्थितियां बिगड़ सकती हैं। पंजाब में भाजपा को बराबर का दर्जा देने की मांग उठ सकती है।

भाजपा के लिए यह पीड़ा का विषय रहा है कि राज्यों में राजग सहयोगी पार्टियां भाजपा का कद घटा कर रखना चाहती है। बिहार में जदयू नेता नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करने से लेकर संसाधन मुहैया कराने तक और उसके बाद चुनावी प्रदर्शन तक में भाजपा अव्वल रही, लेकिन उसे छोटी पार्टी बनाकर रखा गया।

हरियाणा में हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) जैसी छोटी पार्टी भाजपा के कंधे पर सवार होकर नेतृत्व करना चाहती थी। महाराष्ट्र में अनुपातिक तौर से बेहतर प्रदर्शन करने के बावजूद शिवसेना भाजपा को बराबरी का दर्जा देने के लिए तैयार नहीं थी। अब आत्मविश्वास से लबरेज भाजपा इस परंपरा को तोड़ना चाहती है। माना जा रहा है कि पंजाब में भी इसका असर दिख सकता है।

गौरतलब है कि 117 सीटों के पंजाब विधानसभा में भाजपा को एक चौथाई से भी कम हिस्सा मिलता रहा है। हालांकि, जीत की स्ट्राइक रेट पचास फीसद से ज्यादा रही है। पिछली बार 23 सीटें लड़कर भाजपा ने 12 सीटों पर जीत हासिल की थी। बात सिर्फ इतनी नहीं है भाजपा को यह खटकने लगा है कि प्रदेश में राजग का नेतृत्व कर रहे अकाली दल के रुख का खमियाजा भाजपा को भुगतना पड़ रहा है। लोकसभा चुनाव में यह स्पष्ट तौर पर दिखा था। यह नुकसान तब कम हो सकता है जब भाजपा की हिस्सेदारी बढ़े। सूत्रों के अनुसार, अभी इस बाबत कोई औपचारिक चर्चा या फैसला तो नहीं हुआ है लेकिन सुगबुगाहट शुरू हो गई है। स्थानीय स्तर पर ड्रग्स के खिलाफ सरकार की मुहिम से असंतोष भी जाहिर कर दिया गया है। इसके अलावा प्रॉपर्टी टैक्स का सरकारी फैसला भी संभवत: भाजपा को बहुत नहीं पच रहा है। दरअसल भाजपा का मतदाता शहरी है। संभव है कि आने वाले समय में अकाली दल को यह संकेत दिया जा सकता है कि पंजाब में शक्ति के अनुसार भाजपा को हिस्सेदारी मिलनी चाहिए। केंद्र सरकार पंजाब का हर स्तर पर विकास करना चाहती है लेकिन इसका श्रेय और पुरस्कार भाजपा को मिलना चाहिए। विधानसभा चुनाव में यूं तो अभी काफी लंबा वक्त है। पंजाब विधानसभा का अगला चुनाव थोड़ा बदला दिखे। ध्यान रहे कि भाजपा राज्य में कम से कम 50 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। उससे पहले निर्णयों में हिस्सेदारी की मांग उठ सकती है।

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