विजय माल्या को लेकर आमने-सामने कांग्रेस और भाजपा
फरार शराब कारोबारी विजय माल्या और पूर्व आइपीएल कमिश्नर ललित मोदी को 'कांग्रेस का बेबी' करार देते हुए भाजपा ने पलटवार किया है।
नई दिल्ली। फरार शराब कारोबारी विजय माल्या और पूर्व आइपीएल कमिश्नर ललित मोदी को 'कांग्रेस का बेबी' करार देते हुए भाजपा ने पलटवार किया है।
भाजपा के राष्ट्रीय सचिव श्रीकांत शर्मा ने आरोप लगाया कि पुराना ऋण चुकाने में असमर्थ रहे माल्या की मदद के लिए संप्रग सरकार ने बैंको पर दबाव डाला था और उसके सील बैंक खातों को दोबारा चालू भी करवाया था। कांग्रेस माल्या के बहाने यह साबित करने में जुटी है कि भाजपा सरकार कारपोरेट के साथ है। लिहाजा हर स्तर पर यह सवाल उठाया जा रहा है कि सरकार ने माल्या को भागने में मदद की। ऐसे में श्रीकांत ने कहा कि मोदी सरकार के काल में तो माल्या के खिलाफ 25 मामले शुरू किए गए हैं। जबकि कांग्रेस काल में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के स्तर से मदद पहुंचाया गया था। उस वक्त माल्या को 3100 करोड़ रुपये की ऋण दिया गया था। बैंकों पर दबाव बनाया गया था। उसी तरह ललित मोदी पर भी कांग्रेस काल में कोई कार्रवाई नहीं हुई और वह फरार भी कांग्रेस काल में हुए थे।
श्रीकांत ने कहा कि कांग्रेस नेतृत्व को यह बताना चाहिए कि माल्या और ललित के साथ उनकी क्या डील थी।
माल्या पर आंख में धूल झोंकते रहे बैंक
विजय माल्या से कर्ज वसूलने के लिए सरकारी बैंक और तमाम एजेंसियां अभी जितनी चुस्ती दिखा रही हैं अगर दो वर्ष पहले इससे आधी भी चुस्ती दिखाई होती तो आज बैंकों को हजारों करोड़ रुपये इस तरह से डूबने के कगार पर नहीं पहुंच गये होते। जांच एजेंसियां भले ही अभी किंगफिशर को कर्ज देने के प्रस्ताव पर फैसला लेने वाले अधिकारियों की भूमिका की जांच शुरु कर रही हो लेकिन सीबीआइ और प्रवर्तन निदेशालय के पास ये मामले काफी पहले से थे। यहां तक कि रिजर्व बैंक ने किस तरह से वर्ष 2010 में नियमों में ढिलाई कर कर्ज में डूबे किंगफिशर को नए बैंकिंग कर्ज लेने के योग्य बनाया था, इस पर भी जांच एजेंसियों की नजर है।जांच एजेंसियों के सूत्रों के मुताबिक किंगफिशर को जब पहली बार कर्ज दिया गया उसको लेकर भी अब संदेह उठने लगे है। सबसे पहला सवाल तो यह है कि किंगफिशर को महज दो निजी बैंकों ने कर्ज दिया जबकि सरकारी क्षेत्र के 17 बैंकों ने कंसोर्टियम बना कर कर्ज दिया। निजी क्षेत्र के आइसीआइसीआइ और जेएंडके बैंक ने क्रमश: 82.60 करोड़ रुपये और 428.40 करोड़ रुपये का कर्ज दिया जबकि सरकारी बैंकों ने संयुक्त तौर पर 4560.34 करोड़ रुपये का कर्ज दिया। यह कर्ज जब दिया गया तब किंगफिशर ने सिर्फ पांच विमान किराये पर लेकर कारोबार शुरु करने का आवेदन किया था। सरकारी बैंकों ने कंपनी का जो मूल्यांकन किया उसमें किंगफिशर एयरलाइन ब्रांड को एक अहम संपत्ति माना गया। ग्रांड थ्रॉनटन नाम की कंपनी की तरफ से वैल्यूएशन किया गया और किंगफिशर ब्रांड की कीमत 4,111 करोड़ रुपये लगाया गया। हिसाब किताब की दुनिया में तो सरकारी बैंकों ने कुल 5238.59 करोड़ रुपये की प्रतिभूतियां (सिक्यूरिटी) के बदले 4560.34 करोड़ रुपये का कर्ज दिया था। लेकिन इसमें से 4,111 करोड़ रुपये सिर्फ किंगफिशर एयरलाइन के ब्रांड का लगाया था।
भारत लौटने को तैयार नहीं विजय माल्या, सभी संपत्तियां होंगी जब्त
माल्या को देना होगा 6 कंपनियों के बोर्ड से इस्तीफा
बाजार नियामक सेबी के जानबूझकर कर्ज न लौटाने वालों को सूचीबद्ध कंपनियों के बोर्ड से बाहर रखने के फैसले का पहला खामियाजा विजय माल्या को उठाना होगा। सेबी का नया नियम लागू होने के बाद माल्या को बेयर क्रॉपसाइंसेज और सनोफी इंडिया के बोर्ड से तुरंत इस्तीफा देना होगा। माल्या युनाइटेड स्पि्रट्स के चेयरमैन और निदेशक पद से तो इस्तीफा दे चुके हैं। लेकिन यूबी समूह की कई कंपनियों और बेयर क्रॉपसाइंसेज और सनोफी इंडिया जैसी कंपनियों के बोर्ड के माल्या अभी भी सदस्य हैं। जिन कंपनियों के बोर्ड के अभी माल्या सदस्य हैं उनमें बेयर क्रॉपसाइंसेज और सनोफी इंडिया के अलावा मैंगलोर कैमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स, युनाइटेड ब्रुअरीज, युनाइटेड ब्रुअरीज होल्डिंग्स और किंगफिशर एयरलाइंस शामिल हैं। सेबी का नया नियम लागू हो जाने के बाद माल्या को इन सभी कंपनियों के निदेशक बोर्ड से इस्तीफा देना होगा।
कानूनी पचड़े में उलझी माल्या के जहाजों की जब्ती
विजय माल्या ने किंगफिशर एयरलाइन के बंद होने से पहले इसके कर्मचारियों को संबोधित करते हुए एक बार कहा था कि बैंकों के बकाये राशि को लेकर वह चिंता नहीं करें, क्योंकि बैंक 10-12 फीसद से ज्यादा की राशि नहीं वसूल सकेंगे। माल्या ने यह बात क्यों कही थी अब साफ होता जा रहा है। माल्या को शायद यह बात अच्छी तरह से मालूम था कि वह देश के कानून का फायदा उठा कर न सिर्फ कर्ज वापस करने से बच सकता है बल्कि उसकी परिसंपत्तियों की बिक्री करना भी बैंकों व अन्य एजेंसियों के लिए आसान नहीं होगा। किंगफिशर एयरलाइंस की संपत्तियों को जब्त करने का मामला पेचीदे कानूनी रस्सा-कस्सी में उलझ कर रह गई है। इस कंपनी से से कर्ज वसूलने में 17 बैंकों के अलावा कम से कम आधी दर्जन अन्य सरकारी एजेंसियां पीछे पड़ी हुई हैं। इसमें एयरपोर्ट अथॉरिटिी (एएआइ) सेवा कर विभाग, सीमा शुल्क विभाग, आय कर विभाग भी शामिल हैं। इसकी वजह से कर्ज वसूली तो दूर की बात है पूरा मामला ही दिन ब दिन कानूनी पचड़े में फंसता जा रहा है।