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हजारों के सामने चूल्हा जलाने का संकट

आपदा पीड़ितों को राहत पहुंचाने के क्रम में शासन-प्रशासन में से ज्यादातर का ध्यान दाल-चावल, कपड़े-लत्तों, दवाओं आदि की ओर है। इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा कि बिना ईधन चूल्हा कैसे जलेगा? सड़क संपर्क पूरी तरह खत्म होने से अगले छह माह तक प्रभावित इलाकों में रसोई गैस पहुंचाने के आसार क

By Edited By: Updated: Wed, 03 Jul 2013 03:24 AM (IST)

देहरादून [दिनेश कुकरेती]। आपदा पीड़ितों को राहत पहुंचाने के क्रम में शासन-प्रशासन में से ज्यादातर का ध्यान दाल-चावल, कपड़े-लत्तों, दवाओं आदि की ओर है। इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा कि बिना ईधन चूल्हा कैसे जलेगा? सड़क संपर्क पूरी तरह खत्म होने से अगले छह माह तक प्रभावित इलाकों में रसोई गैस पहुंचाने के आसार कम ही हैं। ऐसे में आपदा पीड़ितों की सारी उम्मीद केरोसिन पर टिकी हुई हैं। वह भी न पहुंचा तो राहत पास होने के बावजूद भूखों मरने की नौबत आ जाएगी।

आपदा के कारण रुद्रप्रयाग, चमोली और उत्तरकाशी की करीब सवा चार लाख की आबादी सीधे-सीधे प्रभावित हुई है। तबाही में सड़कें, संपर्क मार्ग, पगडंडियां भी खत्म हो गई हैं। पुलों का भी नामोनिशान नहीं बचा। इसके चलते अधिकांश गांव देश-दुनिया से ही कट गए हैं। इन गांवों तक पांच किलो आटा पहुंचाना भी किसी चुनौती से कम। गैस सिलेंडर की तो खैर बात ही छोड़ दीजिए।

फाटा निवासी विपिन ने बताया कि गौरीकुंड से रामपुर, सीतापुर, बड़ासू तक लोग रोशनी को भी तरस गए हैं। इकट्ठा की हुई लकड़ियां लंगरों में स्वाहा हो गईं। केरोसिन आता नहीं और गैस की उम्मीद करना बेकार है। धारगांव निवासी मदनमोहन सेमवाल के अनुसार प्रभावित लोगों की सबसे बड़ी जरूरत आग है। आटा, दाल, चावल कितना ही पहुंच जाए, पकेगा तो आग में ही। सरकार की प्राथमिकताओं में आग होनी चाहिए थी। कम से कम बीमारियों से बचने के लिए पानी को गरम करके तो पीते।

इंडियन आयल कॉरपोरेशन के अधिकारियों का मानना है कि जब तक रास्ते पूरी तरह नहीं खुलते, प्रभावित क्षेत्र में रसोई गैस पहुंचाना संभव नहीं। अभी तो इन क्षेत्रों में भारी वाहन ले जाने की स्थिति ही नहीं है। सड़क संपर्क से पूरी तरह कट चुके क्षेत्र में वितरण प्वाइंट तक सिलेंडर पहुंचाने में महीनों लग सकते हैं।

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