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उप चुनाव में तय होगा राजद-जदयू गठबंधन का भविष्य

लोकसभा चुनाव में ध्वस्त हुए राजद और जदयू ने वर्षो पुरानी राजनीतिक शत्रुता को त्यागकर हाथ तो थाम लिया, लेकिन आगामी उपचुनाव में ही इसका भविष्य तय हो जाएगा। पार्टी के नेताओं को अभी से यह आशंका है कि गठबंधन की जीत हो या हार, फाइनल लड़ाई से पहले आपसी लड़ाई को निपटाना आसान नहीं होगा। दरअसल, अगले साल होने वाल

By Edited By: Updated: Wed, 23 Jul 2014 08:23 AM (IST)
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नई दिल्ली [आशुतोष झा]। लोकसभा चुनाव में ध्वस्त हुए राजद और जदयू ने वर्षो पुरानी राजनीतिक शत्रुता को त्यागकर हाथ तो थाम लिया, लेकिन आगामी उपचुनाव में ही इसका भविष्य तय हो जाएगा। पार्टी के नेताओं को अभी से यह आशंका है कि गठबंधन की जीत हो या हार, फाइनल लड़ाई से पहले आपसी लड़ाई को निपटाना आसान नहीं होगा। दरअसल, अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में राजद और जदयू दोनों के लिए अपना आधार और कार्यकर्ता बचाए रखने की चुनौती होगी लेकिन आपसी खींचतान भी चरम पर हो सकती है।

अगले माह बिहार की 10 सीटों पर उप चुनाव होने हैं। बताते हैं कि राजद और जदयू के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर बातचीत शुरू हो गई है। सूत्रों के अनुसार जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह और राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के बीच मुलाकात हुई। लोकसभा की अभूतपूर्व जीत के बाद यह चुनाव भाजपा की लोकप्रियता के लिए तो कसौटी है ही, नए गठबंधन के लिए भी आसान नहीं है। आंकड़ों के लिहाज से भाजपा के लिए अपनी पुरानी सीटों में से कोई भी सीट गवांने का अर्थ नैतिक हार होगी। हालांकि बड़ा दांव जदयू और राजद गठबंधन का होगा। अगर उप चुनाव में जीत नहीं मिली तो पहले कदम पर ही इसे हार माना जाएगा। अगर जीत हुई तो अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में आपसी जंग तेज होगी। गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में राजद न सिर्फ जदयू से ज्यादा सीटें जीता था बल्कि उसके सिर्फ एक उम्मीदवार की जमानत जब्त हुई थी, जबकि जदयू के लगभग दो दर्जन उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी।

सूत्रों के अनुसार दोनों दलों के कुछ नेताओं को यह समीकरण परेशान कर रहा है। उन्हें आशंका है कि उप चुनाव के बाद फाइनल लड़ाई में हिस्सेदारी को लेकर जंग इतनी तेज होगी कि नुकसान भी हो सकता है। संभव है कि कार्यकर्ता बचाना भी दोनों दलों के लिए मुश्किल हो जाए। वैसे भी नए गठबंधन के बाद जदयू को सुशासन का नारा छोड़कर सांप्रदायिकता का मुद्दा उठाना होगा। अब लोकसभा में इसे नकारे जाने के बाद विधानसभा चुनाव में भी इसे न नकारा जाए, इसकी गारंटी नहीं है। लिहाजा अगले महीने होने वाले उप चुनाव में गठबंधन की सफलता- असफलता दोनों दलों का भविष्य तय करेगा।