Move to Jagran APP

मोदी कैबिनेट में बदलाव, इस तरह साधे गए संतुलन और समीकरण

मोदी कैबिनेट में बदलाव भले ही कामकाज को दुरुस्त करने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा हो। लेकिन इस बदलाव के कई राजनीतिक संदेश भी छिपे हैं।

By Lalit RaiEdited By: Updated: Wed, 06 Jul 2016 06:44 AM (IST)
Hero Image

आशुतोष झा, नई दिल्ली । दो साल का कार्यकाल पूरा करने के साथ ही अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सरकार में बड़ा बदलाव कर बड़े लक्ष्य हासिल करने की कोशिश में जुट गए है। तय सीमा से काफी कम मंत्रियों के साथ सरकार का दो साल पूरा करने के बाद अब काम का बंटवारा और जवाबदेही तय करने के लिहाज से कैबिनेट का लगभग पूरा विस्तार कर दिया है। वहीं मंत्रालयों में फेरबदल कर यह संदेश दे दिया है कि वह नतीजा चाहते हैं।

मंगलवार को 19 नए मंत्रियों को शपथ दिलाई गई। इसके साथ अब मोदी मंत्रिपरिषद में 78 मंत्री हो गए हैं। संप्रग दो में भी 78 मंत्री थे। अधिकतम सीमा 82 है। इस विस्तार के बाद विपक्ष हालांकि 'मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेस' के नारे पर सवाल खड़ा कर सकता है लेकिन सत्तापक्ष इसे कामकाज में और तेजी लाने के प्रयास के रूप में देख रहा है। पांच राज्यमंत्रियों से इस्तीफा भी लिया गया है जिसे उनके प्रदर्शन से जोड़ा जा रहा है और राजनीतिक समीकरण से भी।

इस विस्तार के दो पहलू देखे जा रहे हैं। एक साथ अनुभव और विशेषज्ञता लाकर विभागवार सरकार के कामकाज को और दुरुस्त करने की कोशिश है। दरअसल नए मंत्रियों के चुनाव में उनकी विशेषज्ञता का ध्यान रखा गया है। जाहिर तौर पर कोशिश होगी कि सरकार की प्राथमिकता वाले कामकाज को तेजी दी जाए। ध्यान रहे कि पिछले कुछ महीनों में प्रधानमंत्री योजनाओं के क्रियान्वयन की लगातार समीक्षा कर रहे हैं।

इस पूरे क्रम में सरकारी तंत्र का इस पर ध्यान रहा कि चुने हुए मंत्रियों की शैक्षणिक योग्यता और अलग-अलग क्षेत्र में कुशलता सार्वजनिक हो।जातीय संतुलन: इसे 2017 में होने वाले अहम राज्यों के चुनाव से भी जोड़ा जा रहा है। सामाजिक समीकरण भी साधा गया है और राज्यवार और क्षेत्रवार प्रतिनिधित्व का भी ध्यान रखा गया है। दस राज्यों को समाहित करते हुए पांच दलित, दो अनुसूचित जनजाति, दो अल्पंसख्यक और दो महिला को कैबिनेट में लाया गया है। ध्यान रहे कि हाल में संपन्न हुए राज्यसभा चुनाव में भी भाजपा यह जताने से नहीं चूकी थी कि केवल उसी ने दो अल्पसंख्यकों को टिकट दिया है।

पहली बार चुनकर आए कुछ सांसद भी मंत्री बनाए गए हैं तो ऐसे सांसदों को भी चुना गया है जो तीन से ज्यादा बार चुनकर संसद आते रहे हैं। साधे गए चुनावी राज्य:उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब और उत्तराखंड से दिए गए प्रतिनिधित्व को राजनीतिक नजरिए से अहम माना जा रहा है। बसपा के गढ़ पूर्वाचल से खुद प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हैं। रेल राज्यमंत्री भी पूर्वाचल से ही हैं। अब ओबीसी वर्ग से आने वाली अनुप्रिया पटेल के साथ महेंद्र पांडे के रूप में एक ब्राह्मण को भी मंत्रिपरिषद में जोड़ लिया गया है। जबकि शाहजहांपुर से सांसद कृष्णा राज दलित का प्रतिनिधित्व करेंगी। आगरा सांसद और केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री रमाशंकर कठेरिया को सरकार से हटाने की भरपाई भी कृष्णा राज करेंगी।

ध्यान रहे कि उत्तर प्रदेश में राजनीति जिस तरह तेजी से बदल रही है, उसमें कैबिनेट विस्तार को भी भाजपा का माइक्रो मैनेजमेंट माना जा रहा है।गुजरात से दो हटे, तीन आए:प्रधानमंत्री के गृहक्षेत्र गुजरात से आने वाले दो मंत्री हटाए गए हैं लेकिन उनकी जगह तीन को शामिल किया गया है जिसमें राजनीति में दखल रखने वाले लेहुआ पटेल, कड़वा पटेल और अनुसूचित जाति को स्थान मिला है।

प्रधानमंत्री ने यह भी ध्यान रखा है कि अलग-अलग कर गुजरात के अलग-अलग हिस्से को प्रतिनिधित्व मिले। पंजाब में समीकरण:पंजाब में भाजपा अकाली दल की छोटी सहयोगी है। लेकिन समीकरण साधने में कोई कसर नहीं है। कुछ माह पहले प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भेजे गए विजय सांपला का मंत्री पद बरकरार है। वह दलित वर्ग से आते हैं। एएस अहलूवालिया मोदी कैबिनेट में पहले सिख मंत्री के रूप में भी शामिल हो गए। इससे पहले अकाली दल कोटे से हरसिमरत कौर मंत्री बनाई गई थीं।

उत्तराखंड में भी संदेश:उत्तराखंड से भाजपा ने सभी पांच लोकसभा सीटें जीती थीं। उसे भी प्रतिनिधित्व मिल गया। अजय टम्टा के रूप में दलित नेता को मंत्री बनाया गया है। किसी दूसरे वरिष्ठ सांसद को नजरअंदाज कर यह संदेश देने की कोशिश भी है कि उत्तराखंड चुनाव में उन्हें अपनी भूमिका निभानी है। वैसे भी, उत्तराखंड की राजनीति जिस तरह ब्राह्मण और क्षत्रिय वर्गो के बीच बंटी है, उसमें टम्टा के जरिए भाजपा दलितों का एकमुश्त विश्वास जीतने की कोशिश कर सकती है।