निवेश के नाम पर कंजूसी करती हैं अरबों कमा रही टेलीकॉम कंपनियां
टेलीकॉम कंपनियों के पास एक अरब ग्राहक होने के बाद भी वह कॉल ड्राप पर अंकुश लगाने और सेवाएं सुधारने के लिए इसमें निवेश नहीं कर रही हैं।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Thu, 21 Apr 2016 10:56 PM (IST)
नई दिल्ली (प्रेट्र)। चार से पांच टेलीकॉम कंपनियों का कार्टेल रोजाना ढाई सौ करोड़ रुपये कमाता है। इन कंपनियों के एक अरब ग्राहक हैं। लेकिन कॉल ड्रॉप पर अंकुश लगाने और सेवाएं सुधारने के लिए ये कंपनियां अपने नेटवर्क पर निवेश नहीं कर रही हैं। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने यह पक्ष रखा। मामले पर अगली सुनवाई 26 अप्रैल को होगी। कॉल ड्रॉप मामले में सुप्रीम कोर्ट टेलीकॉम कंपनियों की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रहा है।
दूरसंचार नियामक ट्राई की ओर से पेश हुए अटॉनी जनरल मुकुल रोहतगी ने कोर्ट को बताया कि ये कंपनियां जोरदार तरीके से बढ़ रही हैं। यह और बात है कि सेवाओं की गुणवत्ता सुधारने के लिए अपने नेटवर्क पर इनका निवेश न्यूनतम है। मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस कुरियन जोसेफ और आरएफ नरीमन की बेंच के समक्ष रोहतगी ने टेलीकॉम फर्मो पर नियामक की ओर से लगाई गई पेनाल्टी का भी बचाव किया।स्पेक्ट्रम खरीदने के लिए कर्ज बड़ी मुसीबत, NPA में दबे बैंक लोन देने से कर सकते हैं इन्कार उन्होंने बताया कि जुर्माने की रकम सेवा प्रदाताओं के हजारों करोड़ के दावे की बजाय करीब 280 करोड़ रुपये बैठेगी। 2009 से 2015 के बीच टेलीकॉम कंपनियों का सब्सक्राइबर बेस 61 फीसद की रफ्तार से बढ़ा। ज्यादा पैसा बनाने के लिए ये स्पेक्ट्रम के बड़े हिस्से को डाटा सेवाओं की तरफ घुमा रही हैं। डाटा सेवा की लागत कॉलों से ज्यादा आती है। ये कंपनियां हर चीज के लिए पैसे वसूलती हैं। इनमें से कोई यहां परोपकार के लिए नहीं है।
कैसे आया सुप्रीम कोर्ट में मामलाटेलीकॉम कंपनियों के संगठन सीओएआइ व वोडाफोन, भारती एयरटेल और रिलायंस सहित 21 टेलीकॉम ऑपरेटरों ने दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। निचली अदालत ने ट्राई के आदेश को कायम रखा था। दूरसंचार नियामक ने जनवरी से कॉल ड्रॉप के लिए ग्राहकों को हर्जाना देना अनिवार्य किया था। कंपनियों ने इसे मनमाना और सनक में लिया गया आदेश करार दिया था।
बहाने बना रही कंपनियां अटॉनी जनरल बोले कि कंपनियां अक्सर स्पेक्ट्रम की कमी का हवाला देती हैं। लेकिन हाल में 700 मेगाहर्ट्ज बैंड में नीलामी के दौरान यह पूरा नहीं बिक सका। बीते पांच साल के दौरान टेलीकॉम कंपनियों ने भारत में पांच अरब रुपये का निवेश किया। जबकि इसी अवधि में उन्होंने चीन में 50 अरब रुपये लगाए।सरकारें चुनावों से जीती जाती है धन बल और सत्ता बल से नही: कांग्रेसउत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन हटाने के फैसले को केंद्र सुप्रीम कोर्ट में देगा चुनौती
गलत कहती हैं कंपनियां टेलीकॉम कंपनियों का यह आरोप भी गलत है कि उन्हें बिल्डिंगों पर सेल टावर लगाने की अनुमति नहीं दी जाती है। यह भी कॉल ड्रॉप की समस्या का कारण है। जबकि न्यूयॉर्क और आइसलैंड में कोई मोबाइल टावर नहीं हैं, लेकिन वहां टेक्नोलॉजी में निवेश के कारण सेलुलर सेवाओं की स्तरीय गुणवत्ता है।
कंपनियों का पक्ष 31 मार्च को सीओएआइ ने शीर्ष न्यायालय से कहा था कि नियमों के जरिये ट्राई जुर्माना नहीं लगा सकता है। वजह यह है कि कॉल ड्रॉप को लेकर नियामक ने दो फीसद की जो सीमा तय की है, कंपनियां कभी उसके ऊपर नहीं गई। बीते साल 22 दिसंबर को ट्राई ने कहा था कि वह छह जनवरी तक टेलीकॉम फर्मो के खिलाफ कोई जबरन कार्रवाई नहीं करेगा।संसदीय समिति पहुंचा दो लाख से अधिक की ज्वैलरी खरीद पर पैन अनिवार्यता का मामलाशाह के घर पर बनी रणनीति, हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लेने की होगी कोशिश सरकार से मध्यस्थता को हार्दिक ने बनाए दो नए मध्यस्थ, विट्ठल को हटाया चुनाव आयोग को जूता मारने की बात कहने पर TMC नेता गिरफ्तारमातृभाषा में हो हाईस्कूल तक पढ़ाई: वेंकैया नायडूमाल्या ने अपनी विदेशी संपत्तियों की जानकारी बैंक को देने से किया इंकार