चंद्रशेखर वेंकटरमन जयंती विशेष: विज्ञान की दुनिया में कायम है रमन इफेक्ट
नोबेल पुरस्कार विजेता चंद्रशेखर वेंकटरमन ने भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में दिया है अतुलनीय योगदान, दुनियाभर में भारत का लहराया परचम
नई दिल्ली (आइएसडब्लू)। कई दशक पहले की गई कोई वैज्ञानिक खोज, जिसे वर्षों पहले नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया हो और आज भी वह खोज उतनी ही प्रासंगिक हो तो उससे जुड़े वैज्ञानिकों को बार-बार याद करना जरूरी हो जाता है। चंद्रशेखर वेंकटरमन या सर सीवी रमन एक ऐसे ही प्रख्यात भारतीय भौतिक-विज्ञानी थे, जिन्हें उनकी जयंती सात नवंबर पर दुनिया भर में याद किया गया। उन्हें विज्ञान के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहला
एशियाई होने का गौरव प्राप्त है। प्रकाश के प्रकीर्णन (फैलाव) पर उत्कृष्ट कार्य के लिए सर सीवी रामन को वर्ष 1930 में नोबेल पुरस्कार दिया गया। उनका आविष्कार उनके नाम पर ही रमन इफेक्ट के नाम से जाना जाता है। रमन प्रभाव का उपयोग आज भी विविध वैज्ञानिक क्षेत्रों में किया जा रहा है। भारत से अंतरिक्ष मिशन चंद्रयान ने चांद पर पानी होने की घोषणा की तो इसके पीछे भी रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी का ही कमाल था। फोरेंसिक साइंस में तो रमन प्रभाव का खासा उपयोग हो रहा है और यह पता लगाना आसान हो गया है कि कौन-सी घटना कब और कैसे हुई थी। दरअसल, जब खास तरंगदैध्र्य वाली लेजर बीम किसी चीज पर पड़ती है तो ज्यादातर प्रकाश का
तरंगदैध्र्य एक ही होता है।
लेकिन हजार में से एक ही तरंगदैध्र्य मे परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन को स्कैनर की मदद से ग्राफ के रूप में रिकॉर्ड कर लिया जाता है। स्कैनर में विभिन्न वस्तुओं के ग्राफ का एक डाटाबेस होता है। हर वस्तु का अपना ग्राफ होता है, हम उसे उन वस्तुओं का फिंगर-प्रिंट भी कह सकते हैं। जब स्कैनर किसी वस्तु से लगाया जाता है तो उसका भी ग्राफ बन जाता है और फिर स्कैनर अपने डाटाबेस से उस ग्राफ की तुलना करता है और पता लगा लेता है कि वस्तु कौन-सी है। हर अणु की अपनी खासियत होती है और इसी वजह से रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी से खनिज पदार्थ, कार्बनिक चीजों, जैसे- प्रोटीन, डीएनए और अमीनो एसिड का पता लग सकता है।
सीवी रमन ने जब यह खोज की थी तो उस समय काफी बड़े और पुराने किस्म के यंत्र थे। आज रमन प्रभाव ने प्रौद्योगिकी को बदल दिया है। अब हर क्षेत्र के वैज्ञानिक रमन प्रभाव के सहारे कई तरह के प्रयोग कर रहे हैं। इसके चलते बैक्टीरिया, रासायनिक प्रदूषण और विस्फोटक चीजों का पता आसानी से चल जाता है। अब तो अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इसे सिलिकॉन पर भी इस्तेमाल करना आरंभ कर दिया है। ग्लास की अपेक्षा सिलिकॉन पर रमन प्रभाव दस हजार गुना ज्यादा तीव्रता से काम करता है। इससे आर्थिक लाभ तो होता ही है साथ में समय की भी काफी बचत हो सकती है।
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