सस्ती बिजली और मुफ्त पानी का चुनावी वादा सूबे के खस्ताहाल सरकारी खजाने की सेहत को चौपट कर सकता है। चालू वित्त वर्ष में राजस्व में तीन हजार करोड़ रुपये की भारी गिरावट से खजाने की हालत पहले से ही खराब है।
By anand rajEdited By: Updated: Sat, 21 Feb 2015 09:05 AM (IST)
नई दिल्ली (अजय पांडेय)। सस्ती बिजली और मुफ्त पानी का चुनावी वादा सूबे के खस्ताहाल सरकारी खजाने की सेहत को चौपट कर सकता है। चालू वित्त वर्ष में राजस्व में तीन हजार करोड़ रुपये की भारी गिरावट से खजाने की हालत पहले से ही खराब है। ऐसे में शहर के करीब पौने दो करोड़ आबादी को आधी कीमत पर बिजली और मुफ्त पानी की आपूर्ति करने संबंधी चुनावी वादे को पूरा करने की सूरत में सरकार पर 1600 से 2000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ने की संभावना है। इसके बावजूद सरकार अपने वादे को निभाने को तैयार है और दिल्ली विधानसभा के आगामी सोमवार से शुरू हो रहे सत्र में बिजली-पानी को लेकर महत्वपूर्ण घोषणा संभावित है।
सूत्रों ने बताया कि सस्ती बिजली के संभावित झटके से सतर्क सरकार ने सब्सिडी पर खर्च होने वाली रकम की भरपाई के तौर-तरीकों की खोजबीन में जुट गई है। दूसरी ओर दिल्ली जल बोर्ड से भी कह दिया गया है कि वह आप के चुनावी वादे के अनुरूप शहर में मुफ्त पानी की आपूर्ति की व्यवस्था करे। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार को दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग (डीईआरसी) के पूर्व अध्यक्ष बिरजेंद्र सिंह को बुलाकर अपने सचिवालय में करीब एक घंटे तक बातचीत की।
समझा जा रहा है कि इस मुलाकात में मुख्यमंत्री ने उनसे बिजली सब्सिडी के मुद्दे पर बातचीत की है। केजरीवाल की पिछली 49 दिन की सरकार में भी सिंह ने उन्हें बिजली के मुद्दे पर सलाह दी थी। बता दें कि वर्ष 2010 में डीईआरसी के अध्यक्ष रहते हुए बिरजेंद्र सिंह ने बिजली की कीमतों में भारी कमी करने का आदेश तैयार कर लिया था और यदि तत्कालीन शीला दीक्षित सरकार ने उन्हें पत्र लिखकर अपना आदेश रोकने की हिदायत नहीं दी होती तो शायद वह आदेश लागू भी हो गया होता। सिंह का यह मानना था कि निजी बिजली कंपनियां भारी मुनाफा कमा रही हैं, लिहाजा बिजली की कीमतों में करीब 23 फीसद की कमी की जानी चाहिए।सीएम ने पहले ही ले ली थी जानकारी
बता दें कि बिजली और पानी के मामले में मुख्यमंत्री केजरीवाल ने बृहस्पतिवार को ही ऊर्जा विभाग और दिल्ली जल बोर्ड के अधिकारियों से पूरी जानकारी हासिल कर ली। बताते हैं कि ऊर्जा विभाग के अधिकारियों ने मुख्यमंत्री को बताया कि यदि वर्तमान दरों पर 400 यूनिट तक बिजली की खपत करने वाले उपभोक्ताओं को 50 फीसद तक की सब्सिडी दी जाती है तो सरकार पर प्रतिवर्ष करीब 1400 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा जबकि यदि डीईआरसी ने निजी बिजली कंपनियों की मांग के मुताबिक कीमतों में वृद्धि का आदेश दिया तो यह राशि 2000 करोड़ रुपये तक भी हो सकती है। दूसरी ओर दिल्ली जल बोर्ड के अधिकारियों ने केजरीवाल को बताया कि पिछली बार जब आम आदमी पार्टी की सरकार ने 668 लीटर प्रति परिवार प्रतिदिन पानी मुफ्त देने का फैसला किया था तो यह आंका गया था कि करीब साढ़े आठ लाख उपभोक्ताओं को यह सुविधा देने पर लगभग 165 करोड़ रुपये खर्च होगे। अब उपभोक्ताओं की संख्या भी बढ़ गई है और पिछले साल पानी की कीमत में भी 10 फीसद का इजाफा किया जा चुका है। ऐसे में यह राशि 200 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष से अधिक हो सकती है।नई सरकार के लिए बड़ी चुनौती
जानकारों की मानें तो दिल्ली सरकार के समक्ष बड़ा सवाल यह है कि वह प्रतिवर्ष 2000 करोड़ रुपये की सब्सिडी की यह राशि कहां से जुटाए। राष्ट्रपति शासन के दौरान दिल्ली सरकार के राजस्व वसूली के लक्ष्य को घटा दिए जाने के बाद सरकार को इस मोर्चे पर तीन हजार करोड़ रुपये की चपत पहले ही लग चुकी है। अब बजट में सब्सिडी के लिए इस दो हजार करोड़ रुपये की राशि का प्रावधान निश्चित रूप से नई सरकार के लिए बड़ी चुनौती है।
अधिकारियों को रखा गया है अलग सूत्रों की मानें तो आम आदमी पार्टी से जुड़े विशेषज्ञों का एक बड़ा पैनल सस्ती बिजली और मुफ्त पानी के गणित को आसान करने में लगातार जुटा हुआ है। सरकार के अधिकारियों तक को इस कवायद से अलग रखा गया है। उनसे तमाम आंकड़े लेकर इन विशेषज्ञों को दे दिए गए हैं। अब देखना यह है कि किस प्रकार सरकार चुनावी वादा भी पूरा कर लेती है और खजाने की सेहत भी नहीं बिगड़ने पाती है।
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