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भर्राए गले से चीफ जस्टिस बोले, जजों की संख्या बढ़ा दीजिए

मुख्य न्यायाधीश व मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर बढ़ते काम के बोझ व जजों की संख्या न बढ़ाए जाने पर भावुक हो गए।

By Lalit RaiEdited By: Updated: Mon, 25 Apr 2016 08:40 AM (IST)
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जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। काम के बढ़ते बोझ के बीच जजों की संख्या नहीं बढ़ाए जाने को लेकर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस टीएस ठाकुर भावुक हो गए। उन्होंने प्रधानमंत्री से जजों की संख्या बढ़ाने की अपील करते हुए कहा कि लंबित मुकदमों के ढेर के लिए अकेले न्यायपालिका को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए।

सिर्फ आलोचना करना ठीक नहीं है। सारा दारोमदार न्यायपालिका पर नहीं डाला जा सकता। रविवार को मुख्य न्यायाधीशों और मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में जस्टिस ठाकुर अदालतों में लंबित लाखों मुकदमों को लेकर भावुक हो गए। जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की बढ़ती संख्या और वाणिज्यक विवादों के निपटारे के लिए कारपोरेट जगत की उम्मीदों की चर्चा करते हुए जस्टिस ठाकुर का गला भर आया।

उन्होंने न्यायपालिका के समक्ष काम की तुलना में न्यायाधीशों की उपलब्धता का 60 साल का आंकड़ा पेश किया। मंच पर मौजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जजों की मौजूदा संख्या 21 हजार से बढ़ाकर 40 हजार किए जाने की अपील की। उन्होंने कहा कि अगर अन्य देशों से भारतीय न्यायाधीशों के काम का आकलन किया जाए तो हम आगे ही दिखेंगे। अमेरिका का पूरा सुप्रीम कोर्ट मिल कर साल भर में 81 मुकदमे निपटाता है। जबकि भारत में एक जज एक साल में 2600 मुकदमे निपटाता है। सम्मेलन में तय हुआ कि निचली अदालतों में जजों की नियुक्ति होगी। इसके अलावा हर साल 10 फीसद नियुक्तियां होंगी और क्षमता तय की जाएगी।

1987 से लंबित है सिफारिश

विधि आयोग ने 1987 में दस लाख की जनसंख्या पर 50 जजों की सिफारिश की थी। 1987 में 40 हजार जजों की जरूरत थी। जनसंख्या 25 करोड़ बढ़ गई है। संसदीय समिति की रिपोर्ट में भी 2002 में जजों की संख्या कम होने की बात मानी थी। जब सरकार ने कुछ नहीं किया, तब 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया। लेकिन कुछ नहीं हुआ।

प्रगति के लिए जरूरी सक्षमता

जस्टिस ठाकुर ने कहा कि हम दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थ व्यवस्था का हिस्सा हैं। विदेशी निवेशकों को देश में निवेश करने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। लोग मेक इन इंडिया के लिए यहां आएंगे तो निवेश के बाद उत्पन्न होने वाले विवादों को निबटने की न्यायपालिका की क्षमता को लेकर भी तो चिंतित होंगे। न्यायपालिका की सक्षमता सीधे तौर पर देश के विकास से जुड़ी है।

मोदी ने दिया मदद का भरोसा

सम्मेलन में प्रधानमंत्री को नहीं बोलना था, लेकिन मुख्य न्यायाधीश की अपील के जवाब में मोदी ने कहा कि वह उनकी पीड़ा समझ सकते हैं। उन्होंने कहा कि लोगों की न्यायपालिका पर अगाध आस्था है और इसे बनाए रखना सरकार की भी जिम्मेदारी है। सरकार इसमें हर तरह की मदद करेगी। 1987 की सिफारिश नहीं लागू होने पर मोदी ने कहा कि जरूर कुछ मजबूरियां रही होंगी। लेकिन जब जागे तब सवेरा। प्रधानमंत्री ने साझा प्रयासों का भरोसा दिलाते हुए कहा कि मिल बैठकर कंधे से कंधा मिलाकर समाधान निकाला जाएगा। प्रधानमंत्री ने इस सम्मेलन में मुख्यमंत्री के तौर पर अपना संस्मरण याद करते हुए अदालतों में काम के घंटे बढ़ाए जाने और छुट्टियां कम करने की चर्चा भी की। जिसमें बताया कि उस समय उनकी ओर से दिये गये इस सुझाव पर काफी प्रतिक्रिया हुई थी।

काम का भारी बोझ

25- सुप्रीम कोर्ट में मौजूद जज

593- सभी हाई कोर्टो में मौजूद जज

3 करोड़- देशभर की अदालतों में लंबित मामले

61,300- सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले (एक मार्च, 2015)

22.57 लाख-10 साल से अधिक समय से लंबित मामले

1/73,000- जज और लोगों का अनुपात

1,350- औसत लंबित मामले प्रति जज

पहले भी हुए हैं भावुक

-मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद ऐसा तीन-चार बार हुआ है, जब जस्टिस ठाकुर सार्वजनिक मंच पर भावुक हो उठे। उनकी आंखें छलक पड़ीं।

-न्यायमूर्ति ठाकुर मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद पहली बार 27 फरवरी को गृह नगर जम्मू पहुंचे, तो साथियों के बीच भावुक हो उठे। आंसू पोछते हुए कहा कि आज मैं जो कुछ भी हूं, बार एसोसिएशन के सहयोग से ही हूं।
-दो अप्रैल को जम्मू विश्वविद्यालय के दीक्षा समारोह में पहुंचे मुख्य न्यायाधीश के आंसू छलक पड़े। इस दौरान उन्होंने एक शेर भी पढ़ा था। उम्र-ए-दराज मांग कर लाए थे चार दिन। दो आरजू में कट गए, दो इंतजार में।

क्या कहा मुख्य न्यायाधीश ने

'पांचवीं-छठी कक्षा में सवाल आता था कि अगर एक सड़क पांच आदमी 10 दिन में बनाते हैं, तो एक दिन में उसी सड़क को बनाने के लिए कितने आदमी चाहिए? जवाब होगा 50 आदमी। फिर 38 लाख केस निपटाने के लिए कितने जज चाहिए, यह बात हम क्यों नहीं समझते?'

-मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर

न्यायाधीश सम्मलेन बिंदुवार आंकड़े

- सम्मेलन में तय हुआ कि निचली अदालतों मेंं जजों की नियुक्ति होगी।
- हर साल दस फीसद नियुक्तियां होंगी और क्षमता तय की जाएगी।
- हाईकोर्ट में 470 रिक्तियां हैैं
- हाईकोर्ट में 145 जजों की नियुक्ति हुई है
- हाईकोर्ट में कुल 38 लाख मामले लंबित हैैं
- सरकार के पास लंबित हैैं नियुक्ति के 169 प्रस्ताव

- अदालतों में कुल लगभग 3 करोड़ मामले लंबित हैैं

चीफ जस्टिस ने कहा
- आइबी वैरिफिकेशन में इतना वक्त नहीं लगना चाहिए
- पीएमओ कह सकता है कि महीने भर में रिपोर्ट दें
- एमओपी के नाम पर जजों की नियुक्ति में देरी नहीं होनी चाहिए
- पिछले चार महीने में अदालतों ने 17 हजार मामले निपटाए
- इस हिसाब से अगर तीन सप्ताह की छुटि्टयों में भी काम कर लिया जाए तो ज्यादा से ज्यादा 3000 मामले और निपटा लेंगें जबकि लंबित मामले 3 करोड़ हैैं

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नई पीठ पर सीजेआइ ने कहा
हाईकोर्ट की नई पीठों के गठन और उससे मुकदमें के निपटारे में तेजी आने के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में सीजेआई ने कहा शायद आप मेरठ की बात कर रहे हैैं लेकिन उससे क्या होगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट में कुल 165 जजों के पद हैैं, जिसमें लगभग 85 खाली पड़ें हैैं। नई बेंच बनाने के बाद नये पद स्रजित किये जाएं और उन्हें भरा जाए तभी कोई मदद हो सकती है।

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