...तो इस वजह से है भारत की NSG में दावेदारी पर चीन को आपत्ति
एनएसजी सदस्यता के लिए भारत जीतोड़ कोशिश कर रहा है। लेकिन चीन उसकी राह में रोड़ा अटका रहा है।
By Lalit RaiEdited By: Updated: Wed, 22 Jun 2016 01:45 PM (IST)
नई दिल्ली। एनएसजी में भारत की सदस्यता के मुद्दे पर चीन नापाक चाल चल रहा है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि सैद्धांतिक तौर एनएसजी में भारत को शामिल किए जाने पर आपत्ति नहीं है। लेकिन नियम-कानून को दरकिनार कैसे किया जा सकता है। एनएसजी में शामिल होने के लिए अगर एनपीटी पर हस्ताक्षर करना जरूरी है, तो भारत को छूट कैसे दी जा सकती है। अगर एनपीटी के बगैर भारत को एनएसजी में दाखिला मिलता है, तो पाकिस्तान के दावे को कैसे ठुकरा सकते हैं। इस बीच 24 जून को सियोल में होने वाली मीटिंग के लिए विदेश सचिव एस जयशंकर रवाना हो चुके हैं।
भारत के सामने क्या हैं रास्तेभारत की निगाह दो अहम बिंदुओं पर टिकी हुई है। चीन की इस चाल के बाद अमेरिका का रुख क्या होता है। इसके अलावा उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बैठक महत्वपूर्ण है। जानकारों का मानना है कि चीन के इस रवैये के बाद कई देश बीच के रास्ते का सुझाव दे रहे हैं। कुछ देशों को लगता है कि अगर किसी तरह की अड़चन आती है तो एनएसजी में भारत की सदस्यता का मामला कई वर्षों के लिए टल जाएगा। हालांकि इन सबके बीच भारत अपनी कानूनी प्रतिबद्धताओं, ऊर्जा की जरुरतों का हवाला देकर नए नियम कानून पर जोर दे सकता है। एनएसजी के सदस्यों में गैर एनपीटी सदस्यों को शामिल करने पर राय बंटी हुई है। बौखलाया पाक बोला, भारत की दक्षिण एशिया पर धाक जमाने की कोशिश
चीन-अमेरिका का तर्क चीन ने अपने तर्क में कहा है कि वो किसी राष्ट्र विशेष का विरोध नहीं कर रहे हैं। बल्कि एनएसजी में गैर एनपीटी सदस्यों को शामिल करने को समग्र तौर पर देख रहे हैं। चीन द्वारा पाकिस्तान के लिए लॉबिंग करने के बाद अमेरिकी कूटनीतिकों में भी हलचल है। अमेरिकी विशेषज्ञों का मानना है कि चीन दक्षिण एशिया के साथ-साथ एशिया पैसिफिक रीजन में अपने दखल को बढ़ाना चाहता है। अमेरिका ने इस बात का भरोसा दिलाया था कि परमाणु ऊर्जा की जरुरतों को पूरा करने के लिए 2008 में एनपीटी मामले में भारत को वर्ष 2008 में ही छूट हासिल थी। लेकिन चीन अब इस मुद्दे को उठा रहा है। पाकिस्तान का हवाला देकर चीन अब भारत के साथ-साथ अमेरिका को भी घेरने की कोशिश कर रहा है।
चीन की लामबंदीचीन की तरह तुर्की का कहना है कि वो भारत की दावेदारी का विरोध नहीं कर रहा है। लेकिन एक तराजू से भारत और पाकिस्तान दोनों को तौलने की जरुरत है। जानकारों का मानना है कि भारत किसी बीच के रास्ते से बचने की कोशिश कर रहा है। बीच के रास्ते का मतलब ये है कि भारत की दावेदीरी कई वर्षों के लिए लटक जाएगी। ऐसे में भारत अगर साफ तौर पर ना कर देता है। तो वो भारत के लिए बेहतर होगा। ताशकंद पर टिकी निगाहअमेरिका का रुख और कल ताशकंद में एससीओ की होने वाली बैठक के दौरान शीजिनपिंग और पीएम मोदी के बीच की बैठक महत्वपूर्ण है। हालांकि ये बताया जा रहा है कि चीन शायद ही अपने नजरिए में किसी तरह का बदलाव लाए। चीन के विरोध पर पीएम मोदी दोनों देशों के बीच रिश्ते पर होने वाले प्रभाव का जिक्र कर सकते हैं। एनएसजी में भारत की दावेदारी रोकने में पाकिस्तान ने सफल होने का किया दावा