पीएम की डिग्री मामले में सूचना आयोग ही सवालों के घेरे में
जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री को सार्वजनिक करने के लिए सीआईसी ने निर्देश दिए हैं उसके बाद खुद सीआईसी ही सवालों के घेरे में आ गए हैं।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री को लेकर उठाए गए सवाल पर सूचना आयोग ने निर्देश तो जारी कर दिए लेकिन खुद आयोग पर उंगली उठाई जाने लगी है। फिलहाल सार्वजनिक रूप से तो यह सवाल नहीं उठाया जा रहा है लेकिन वरिष्ठ सूत्रों का कहना है कि आयोग ने न सिर्फ अधिकारों का उल्लंघन किया है बल्कि नियमों की अनदेखी कर गैरकानूनी रूप से निर्देश दिया है।
दिल्ली विश्वविद्यालय से बीए और गुजरात विश्वविद्यालय से एम की प्रधानमंत्री की डिग्री तो सार्वजनिक हो गई है। वह एमए में प्रथम श्रेणी से बीए में थर्ड डिवीजन से पास हुए थे। लेकिन वरिष्ठ सूत्र का कहना है कि जिस तरह से सूचना आयोग ने कार्रवाई की वह नियमोचित नहीं था। एक वरिष्ठ अधिकारी का मानना है कि पूरी प्रक्रिया में आधा दर्जन से ज्यादा खामियां थीं। आरटीआइ एक्ट के सेक्शन 6(1) के तहत यह आवश्यक है कि आवेदन के साथ तय फी भी जमा कराए जाएं। गौरतलब है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने चिट्ठी लिखकर आयोग से पूछा था। सूत्र का कहना है कि न तो फी जमा कराई गई है और न ही आवेदन मुख्य सूचना अधिकारी को संबोधित है। सुनवाई में भेदभाव को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार नागेंद्र शर्मा ने इस बाबत पूछे गए सवाल के जवाब में कहा कि 'यह सवाल सीआइसी से पूछा जाना चाहिए।'
ये भी पढ़ें- CIC ने मोदी की डिग्री की जानकारी केजरीवाल को देने का दिया निर्देशतकनीकी आधार पर इस नजरिए से भी आयोग की कार्रवाई को अनुचित माना जा रहा है क्योंकि गुजरात विश्वविद्यालय सार्वजनिक संस्था है और राज्य के आरटीआइ एक्ट से बंधा है। मुख्य सूचना आयोग का अधिकार क्षेत्र केंद्र सरकार से जुड़ी संस्थाओं तक सीमित होता है। ऐसे में सीआइसी ने गुजरात विश्वविद्यालय को निर्देश जारी कर अधिकार का उल्लंघन किया है। वैसे भी सीआइसी में कार्यो के बंटवारे के अनुसार प्रधानमंत्री कार्यालय से जुड़े मुद्दों पर केवल मुख्य सूचना आयुक्त ही सुनवाई कर सकते हैं। उक्त मामले में सूचना आयुक्त ने सुनवाई की है और निर्देश जारी किया है। जाहिर तौर पर यह अधिकार क्षेत्र के बाहर की बात है और उस हिसाब से गैरकानूनी भी। यह भी सवाल उठाया जा रहा है कि आयोग ने इकतरफा फैसला किया है। जब कोई शिकायत आई थी दो दूसरे पक्ष का भी मत लिया जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ऐसे में सूचना आयुक्त ने न सिर्फ अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया है बल्कि तय मानकों से परे जाकर गैरकानूनी आदेश दिया है।
गौरतलब है कि 28 अप्रैल 2016 को सुनवाई के बाद सूचना आयुक्त एम श्रीधर आचार्युलू ने 29 अप्रैल को आदेश जारी कर प्रधानमंत्री कार्यालय से कहा था कि मोदी की डिग्री से संबंधित रोल नंबर व अन्य जरूरी सूचना दें ताकि दिल्ली और गुजरात विश्वविद्यालय को जानकारी निकालने में सुविधा हो। आयोग ने दिल्ली और गुजरात विश्वविद्यालय को निर्देश दिया था कि जल्द से जल्द जानकारी इकट्ठी कर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को उपलब्ध कराएं। हालांकि इसके लिए आयोग ने कोई समय सीमा तय नहीं की थी।