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अब कांग्रेस ने योजना आयोग को घेरा

गरीबी पर योजना आयोग के आकलन और कांग्रेस व सरकार के नेताओं के बेतुके बयानों से हुई फजीहत के बाद अब पार्टी नुकसान की भरपाई में जुट गई हैं। खाद्य सुरक्षा विधेयक से पूरा सियासी माहौल पलटने की तैयारी कर रहे कांग्रेस नेतृत्व के अरमानों पर 'बब्बर' और 'मसूद थाली' ने जो पानी फेरा है, उसके बाद अब सरकार और पाट

By Edited By: Updated: Sun, 28 Jul 2013 05:44 AM (IST)
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नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। गरीबी पर योजना आयोग के आकलन और कांग्रेस व सरकार के नेताओं के बेतुके बयानों से हुई फजीहत के बाद अब पार्टी नुकसान की भरपाई में जुट गई हैं। खाद्य सुरक्षा विधेयक से पूरा सियासी माहौल पलटने की तैयारी कर रहे कांग्रेस नेतृत्व के अरमानों पर 'बब्बर' और 'मसूद थाली' ने जो पानी फेरा है, उसके बाद अब सरकार और पार्टी ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले योजना आयोग के खिलाफ ही जोरदार हल्ला बोल दिया है।

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केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल के बाद कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने योजना आयोग के गरीबी रेखा के निर्धारण पर ही गंभीर सवाल उठा दिए हैं।

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वहीं, योजना मंत्री राजीव शुक्ला ने तो गरीबी के इस पैमाने को सरकारी आंकड़ा मानने से ही इन्कार कर दिया।

योजना आयोग ने जिस तेंदुलकर कमेटी की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए गांवों में 27 और शहरों में 33 रुपये से ज्यादा रोज खर्च करने वाले को गरीबी रेखा से ऊपर माना है, उसके आधार को अब कांग्रेस और सरकार दोनों ही खारिज कर रहे हैं।

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वरना पहले तो कांग्रेस प्रवक्ता राज बब्बर ने मुंबई में 12 रुपये तो रशीद मसूद ने दिल्ली के जामा मस्जिद इलाके में 5 रुपये में भरपेट भोजन का बेतुका बयान दे दिया था। केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला ने और आगे निकलते हुए एक रुपये में खाना मिल जाने का तक का बयान दे दिया।

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गरीब और गरीबों के प्रति ऐसे असंवेदनशील मजाक पर पूरे देश में ऐसी प्रतिक्रिया हुई कि कांग्रेस को नुकसान की भरपाई में सामने आना पड़ा। रशीद मसूद और राज बब्बर के बयानों को कांग्रेस संपर्क विभाग के प्रमुख महासचिव अजय माकन पहले ही खारिज कर चुके हैं। साथ ही झिझकते हुए देर से ही सही पार्टी ने राज बब्बर से भी माफी मंगवा दी। मगर इससे भी बात नहीं बन रही है। दिक्कत यह है कि तेंदुलकर कमेटी की इस रिपोर्ट से गरीबों की संख्या आंकड़ों में सबसे तेजी से जिस राज्य बिहार में कम हुई, उसके मुख्यमंत्री ने भी इसे गरीबों के साथ क्रूर मजाक करार दिया। शरद पवार की पार्टी राकांपा भी इस आंकड़े को सिरे से खारिज कर चुकी है।

इस माहौल को देख अब सरकार के मंत्री और नेता भी खुलकर मैदान में उतर गए हैं। शुक्रवार को कोलकाता में केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने एक कार्यक्रम के दौरान योजना आयोग के गरीबी तय करने के मापदंड को चुनौती दी। सिब्बल ने कहा कि अगर योजना आयोग ने कहा है कि 5,000 रुपये से अधिक की आय पर गुजारा करने वाला पांच लोगों का परिवार गरीब नहीं है तो उसकी गरीबी की परिभाषा में जरूर कोई गलती है। 5000 रुपये में कैसे किसी पांच लोगों के परिवार का गुजारा हो सकता है।

इसके बाद शनिवार को दिग्विजय सिंह ने ट्विटर पर लिखा कि वह हमेशा योजना आयोग के गरीबी निर्धारित करने के मापदंडों को समझने में असफल रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह सभी इलाकों के लिए समान नहीं हो सकता। उन्होंने लिखा कि परिवार में कुपोषण और खून की कमी गरीबी की पहली निशानी है। इससे गरीबी आसानी से मापी जा सकती है। क्या इस आधार पर गरीबी का निर्धारण नहीं कर सकते? इन सवालों के बीच योजना मंत्री राजीव शुक्ला ने कहा कि तेंदुलकर कमेटी की रिपोर्ट सरकारी नहीं है। उससे सरकार ही संतुष्ट नहीं है, तभी तो रंगराजन कमेटी बनाई गई है।

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