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अध्यादेश के सहारे जमीन की खोज में कांग्रेस

भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव के लिए लाए गए अध्यादेश को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मंजूरी दे दी है। दूसरी तरफ, केंद्र और कई राज्यों की सत्ता से बाहर होने के बाद कांग्रेस अब इस अध्यादेश के सहारे राजनीतिक जमीन तलाशने की कोशिश में है। पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी के

By manoj yadavEdited By: Updated: Wed, 31 Dec 2014 09:34 PM (IST)
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नई दिल्ली [सीतेश द्विवेदी]। भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव के लिए लाए गए अध्यादेश को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मंजूरी दे दी है। दूसरी तरफ, केंद्र और कई राज्यों की सत्ता से बाहर होने के बाद कांग्रेस अब इस अध्यादेश के सहारे राजनीतिक जमीन तलाशने की कोशिश में है। पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी के सपनों के कानून को मोदी सरकार ने लगभग बदल दिया है।

ऐसे में लंबे समय से अपने नेता को जमीन से जोड़ने में नाकाम रही कांग्रेस एक बार फिर पदयात्रा व आंदोलन के रास्ते पर है। इस मुद्दे पर आक्रामक रणनीति के साथ पार्टी लंबी लड़ाई को तैयार है। हालांकि, नए साल पर विदेश गए राहुल के लौटने के बाद ही इस पर अंतिम मुहर लगेगी। इस बीच इस मुद्दे पर विपक्ष को अपने पाले में खड़ा करने के पार्टी प्रयासों को झटका लग गया है। अध्यादेश को लेकर आंदोलित तृणमूल कांग्रेस व अन्य विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे पर अपनी लड़ाई खुद लड़ना चाह रही है।

छवि बदलने का मौका

रणनीति और राजनीतिक निर्णयों के स्तर पर खराब रणनीति के चलते संगठन के निशाने पर आए राहुल चाहते हुए भी पार्टी में बदलाव लाने में नाकाम रहे हैं। इस मुद्दे पर आक्रामक अभियान चला कर वे अपनी छवि में बदलाव कर सकते हैं। टीम राहुल का मानना है कि मामले के पार्टी उपाध्यक्ष से जुड़ा होने के कारण जहां पूरी कांग्रेस उनके पीछे आसानी से लामबंद हो जाएगी।

दरअसल मई के आसपास होने वाले पार्टी अधिवेशन में संगठन के संभावित मुखिया होने वाले राहुल के लिए राजनीतिक उपलब्धि के तौर पर कोई बड़ी उपलब्धि नही है। ऐसे में कांग्रेस खासकर टीम राहुल के यह मुद्दा कितना बड़ा है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सप्ताह भर की छुट्टी पर बाहर गए राहुल अपनी यात्रा में कटौती कर जल्द वापस लौटने वाले हैं। जबकि, इस मुद्दे पर टीम राहुल ने रणनीति बनानी शुरू कर दी है।

पार्टी के सामने दो लक्ष्य

1. कांग्रेस पिछले छह महीने में सरकार को घेरने में नाकाम रही है। तमाम मुद्दों पर उसे क्षेत्रीय पार्टियों के पीछे खड़े होने को मजबूर होना पड़ा है। ऐसे में पार्टी को लगता है कि अध्यादेश पर संघर्ष से पार्टी के पक्ष में महौल बन सकेगा।
2. लगातार चुनावी पराजय के कारण अपनों के निशाने पर आए राहुल के लिए भी यह मुद्दा बढ़त लेने वाला साबित हो सकता है। राहुल की मंशा पार्टी में बड़े बदलाव कर कांग्रेस के शीर्ष पदों को अपनी टीम के जरिये भरने की है।

पार्टी में ही विरोधी सुर

भूमि अधिग्रहण कानून में अध्यादेश के जरिये बदलाव को लेकर कांग्रेस में ही विरोधी सुर सामने आ रहे हैं। कांग्रेस शासित राज्य पहले ही राहुल गांधी के प्रिय कानून में सुधार की गुहार लगा चुके हैं। नई सरकार के गठन के बाद कई राज्यों ने सुधार को लेकर सहमति दे दी थी।

इन राज्यों का कहना है कि इस कानून से निवेशकों पर बुरा असर पड़ा था, जो कि विकास के लिए ठीक नहीं था। वहीं केंद्र में भी पार्टी के एक शीर्ष नेता संशोधनों के पक्ष में हैं। संप्रग सरकार में इस बिल के कर्णधार रहे जयराम रमेश को एक बार फिर विरोध से लेकर विपक्ष को साधने तक की जिम्मेदारी देने की तैयारी है।

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