कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भले ही खुद को रणनीतिक सलाहकार बताते हों, लेकिन उनकी छवि को लेकर परेशान पार्टी फिर 'ब्रांड राहुल' को चमकाने की तैयारी में है। लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस में उठ रहे नेतृत्व विरोधी सुरों के बीच पार्टी का प्रयास विरासत और असमंजस के भंवर में खड़े रा
By Edited By: Updated: Mon, 11 Aug 2014 07:22 AM (IST)
नई दिल्ली, [सीतेश द्विवेदी]। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भले ही खुद को रणनीतिक सलाहकार बताते हों, लेकिन उनकी छवि को लेकर परेशान पार्टी फिर 'ब्रांड राहुल' को चमकाने की तैयारी में है। लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस में उठ रहे नेतृत्व विरोधी सुरों के बीच पार्टी का प्रयास विरासत और असमंजस के भंवर में खड़े राहुल को निर्णायक नेता की छवि देने का है। जिम्मेदारियों से लगातार भागने वाली राहुल की छवि को बदल पाना हालांकि पार्टी रणनीतिकारों के लिए बड़ी चुनौती है।
प्रियंका को पार्टी की कमान देने की बढ़ती मांग के बीच कांग्रेस आलाकमान फिर राहुल को नेता के तौर पर स्थापित करने में जुट गया है। बीते बुधवार को संसद में राहुल का आक्रामक बर्ताव और शुक्रवार को प्रियंका गांधी वाड्रा द्वारा पद की राजनीति से फिलहाल दूर रहने की घोषणा महज संयोग भर नहीं बल्कि एक रणनीतिक कदम है। राज्यसभा में सत्तापक्ष को चुनौती देने की सीख देने वाले राहुल भी अब इंतजार करने के बजाय आगे बढ़कर नेतृत्व देने के लिए तैयार हैं।
राहुल की छवि को लेकर कई प्रयोग कर चुकी टीम अब उन्हें एक निर्णायक नेता बनाने के लिए नए प्रयासों में जुट गई है। इस टीम में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के करीबी रहे सैम पित्रोदा, राहुल के बेहद करीबी मोहन गोपाल, राहुल के भाषणों को लिखने वाले जयराम रमेश और कुछ युवा टेक्नोक्रेट शामिल हैं। टीम की कोशिश है कि आगामी विधानसभा चुनावों के बाद होने वाले संगठन के परिवर्तन तक राहुल की छवि निर्णायक और संघर्ष करने वाले नेता के रूप में स्थापित हो जाए। राहुल की बदली छवि की झलक संसद में सांप्रदायिकता पर संभावित बहस में उनके भाषण में मिल सकती है। सूत्रों के मुताबिक अपने घर से संचालित हो रहे पार्टी कार्यालय, अपनी टीम और खास सलाहकारों तक सीमित रहे राहुल जल्द ही पार्टी दफ्तर में ज्यादा समय देते नजर आएंगे। इसके जरिये वह वरिष्ठ नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक से फिर जुड़ने और जमीनी हालात समझने की कोशिश करेंगे। राहुल की छवि को गढ़ने में लगे नेताओं का मानना है कि राजनीति को गंभीरता से न लेने की उनकी छवि के पीछे संवाद की कमी है। संप्रग-दो में महत्वपूर्ण पद पर रहे और गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले एक रणनीतिकार का कहना है, 'राहुल बहुत सोच-विचार कर निर्णय लेने में विश्वास रखते हैं। कई बार इस प्रक्रिया में निर्णय लेने का समय निकल चुका होता है। ऐसे में राहुल को जल्द निर्णय लेने और उसके कारण सामने आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार रहना होगा।'
वहीं, कांग्रेस में प्रियंका के नाम पर आवाज उठ रही आवाजों पर पार्टी के एक वरिष्ठ महासचिव का कहना है, 'गांधी परिवार में भूमिकाओं को लेकर कोई गलतफहमी नहीं है। राहुल नैसर्गिक नेतृत्व हैं। कांग्रेस में परिवार के खिलाफ नाराजगी या विरोध का कोई मतलब नहीं, परिवार के बिना पार्टी बिखर जाएगी।' पार्टी में इस राय से इत्ताफाक न रखने वाले नेता भी हैं। पार्टी के पूर्व महासचिव व कार्यसमिति सदस्य रहे एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, 'राहुल को लेकर आलाकमान की जिद पार्टी को गहरे संकट की ओर ले जा रही है। पार्टी को पुर्नजीवित करने के लिए प्रियंका को संगठन में सही स्थान पर लाना समय की मांग है।'ब्रांड राहुल की नाकामी
लोकसभा चुनाव के दौरान ब्रांड राहुल किस कदर नाकाम रहा था इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि युवा नेता के रूप में राहुल का प्रदर्शन दस साल के सत्ता विरोधी रुझान का सामना कर रही कांग्रेस से भी पीछे रहा था। सीएमएस मीडिया लैब के सर्वे के मुताबिक पांच प्रमुख राष्ट्रीय चैनलों की टीवी कवरेज में केजरीवाल को करीब 28 फीसद, मोदी को 23 फीसद और कांग्रेस को 17 फीसद कवरेज मिला, जबकि राहुल को महज चार फीसद समय ही मिला था।पढ़ें:
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