संगठन में बडे़ बदलाव के लिए अच्छे दिनों के इंतजार में कांग्रेस
केंद्र की सत्ता गवांने के बाद कांग्रेस को अब संगठन की याद आई है। लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार और आगामी विधानसभा चुनावों के बीच राज्यों में उठी बगावत ने पार्टी को झकझोर कर रख दिया है। सत्ता के समय संगठन पर ध्यान न देने के आरोपों से घिरी पार्टी आमूल-चूल परिवर्तन के लिए तैयार है।
By Edited By: Updated: Sun, 17 Aug 2014 07:44 AM (IST)
नई दिल्ली [सीतेश द्विवेदी]। केंद्र की सत्ता गवांने के बाद कांग्रेस को अब संगठन की याद आई है। लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार और आगामी विधानसभा चुनावों के बीच राज्यों में उठी बगावत ने पार्टी को झकझोर कर रख दिया है। सत्ता के समय संगठन पर ध्यान न देने के आरोपों से घिरी पार्टी आमूल-चूल परिवर्तन के लिए तैयार है।
संगठन में बडे़ बदलाव के लिए अच्छे दिनों का इंतजार कर रही कांग्रेस होने वाले उपचुनावों और विधानसभा चुनावों के भरोसे है। पार्टी को उम्मीद है कि इन चुनावों में वह उत्तराखंड उपचुनावों जैसी सफलता दोहरा कर पराजय से पार पा लेगी। वहीं लोकसभा परिणामों के कारण पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की कार्यशैली को लेकर संगठन में उपजी नाराजगी भी कम हो जाएगी। ऐसे में कांग्रेस में विधानसभा चुनावों के पश्चात प्रस्तावित कांग्रेस चिंतन शिविर के तत्काल बाद पार्टी में बड़े पैमाने पर बदलाव होने तय हैं। सूत्रों के मुताबिक पार्टी में होने वाले बदलाव का खाका राहुल गांधी बना चुके हैं। बदलाव की यह प्रक्रिया सिर्फ उचित समय के इंतजार में रुकी हुई है। राहुल की मंशा पारंपरिक राजनीति करने वाली कांग्रेस का चेहरा बदलने की है। बदली कांग्रेस में महासचिव पद पर तमाम नए चेहरे देखने को मिलेंगे तो वरिष्ठ नेताओं की भूमिका पार्टी की सर्वोच्च इकाई मानी जाने वाली कार्यसमिति तक सीमित कर दी जाएगी। यही नहीं बदलाव के साथ पार्टी के सेवादल, युवा कांग्रेस, एनएसयूआइ जैसे अनुषांगिक संगठनों के अच्छे दिनों का इंतजार भी खत्म हो जाएगा। इन संगठनों को राहुल की कैडर आधारित पार्टी बनाने की योजना के तहत महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी जाएंगी। दरअसल, जयपुर अधिवेशन में राहुल ने कांग्रेस के कैडर आधारित पार्टी न होने की बात स्वीकार करते हुए आश्चर्य जताया था कि चुनाव से पहले पार्टी कैसे खड़ी होकर चुनाव जीत लेती है। लोकसभा चुनाव में मिली हार और विधानसभा के बाद पार्टी में मची भगदड़ ने राहुल के आश्चर्य को चिंता में बदल दिया है। सत्ता में रहते हुए संगठन पर पर्याप्त ध्यान न देने के कारण पार्टी का संगठन न सिर्फ कमजोर होता गया बल्कि इसमें नेतृत्व को लेकर नाराजगी भी बढ़ती गई। इसका खमियाजा सरकार को हार के रूप में चुकाना पड़ा। बदलाव के साथ ही राजनीति के मौसमी पंछियों के किनारा करते देख कांग्रेस को फिर 'कैडर' की याद आई है। ऐसे में कांग्रेस को कैडर आधारित पार्टी बनाने के लिए पार्टी उपाध्यक्ष को खुला हाथ मिलना तय है।