आरोप तय होते ही अयोग्य करार दिए जाएं नेता: विधि आयोग
उम्मीदवारों को चुनाव के अयोग्य ठहराने वाला मौजूदा कानून अपराधियों को चुनावी राजनीति से दूर रखने में सक्षम नहीं है। विधि आयोग ने संस्तुति की है कि जिन मामलों में पांच साल या उससे अधिक की सजा का प्रावधान हो उनमें आरोप तय होते ही नेताओं को चुनाव के अयोग्य करार दिया जाना चाहिए।
By Edited By: Updated: Tue, 22 Jul 2014 07:17 AM (IST)
नई दिल्ली। उम्मीदवारों को चुनाव के अयोग्य ठहराने वाला मौजूदा कानून अपराधियों को चुनावी राजनीति से दूर रखने में सक्षम नहीं है। विधि आयोग ने संस्तुति की है कि जिन मामलों में पांच साल या उससे अधिक की सजा का प्रावधान हो उनमें आरोप तय होते ही नेताओं को चुनाव के अयोग्य करार दिया जाना चाहिए।
चुनावी अयोग्यता से जुड़ी विधि आयोग की रिपोर्ट सोमवार को लोकसभा में पेश की गई। पहले यह रिपोर्ट तत्कालीन कानून मंत्री कपिल सिब्बल को भी सौंपी गई थी। इसमें यह भी कहा गया है कि जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत झूठा शपथ पत्र देने को भ्रष्ट प्रचलन करार दिया जाए और इस पर भी उसे निर्वाचन के अयोग्य ठहराया जाए। आयोग ने यह भी कहा है कि वर्तमान सांसदों या विधायकों के खिलाफ आरोप तय होने के बाद हर हाल में एक साल के अंदर मुकदमे की सुनवाई पूरी हो जानी चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो एक साल पूरा होने के बाद उस सांसद या विधायक को सदन में वोट डालने के अधिकार और वेतन-भत्ता आदि से वंचित रखा जाए। जटिल कानूनी मुद्दों पर सरकार को सलाह देने वाले आयोग ने इस साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट में एक रिपोर्ट पेश की थी। उस रिपोर्ट को मौजूदा कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में पेश किया। इसमें झूठे शपथ पत्र के लिए मौजूदा छह माह की सजा को कम से कम दो साल करने की संस्तुति की गई है। आयोग ने कहा है कि मुकदमा चलने और दोषी करार दिए जाने में बहुत अधिक समय लगता है। किसी उम्मीदवार पर आरोप तय होने के बाद अयोग्यता से प्रस्तावित बचाव के संदर्भ में आयोग ने कहा है कि केवल उन्हीं अपराधों को जिसमें अधिकतम पांच साल या उससे अधिक की सजा का प्रावधान है अयोग्यता के दायरे में रखा जाए। इसमें यह भी कहा गया है कि किसी चुनाव में नामांकन पत्रों की जांच होने के एक साल पहले तक तय हुए आरोप से किसी को अयोग्य करार नहीं दिया जाएगा। ऐसा इस वजह से कि संभव है कि चुनाव में बाधा डालने के लिए राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण शिकायत दर्ज कराई गई हो। पढ़ें: विवाह पंजीयन अनिवार्य करने पर नया विधेयक