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बदरीनाथ में भी पड़ने लगे निवाले के लाले

देहरादून,जागरण संवाददाता। तीन हजार यात्री और पांच हजार ग्रामीण सभी आपदा में घिरे हैं, लेकिन ग्रामीणों की प्राथमिकता है कि पहले यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकालेंगे, फिर खुद के बारे में सोचा जाएगा। पर, संकट यह है कि बदरीनाथ व पांडुकेश्वर में राशन धीरे-धीरे समाप्ति की ओर है। स्थानीय लोग बीज का अनाज तक पहले ही

By Edited By: Updated: Thu, 27 Jun 2013 09:02 PM (IST)

देहरादून, जागरण संवाददाता। तीन हजार यात्री और पांच हजार ग्रामीण सभी आपदा में घिरे हैं, लेकिन ग्रामीणों की प्राथमिकता है कि पहले यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकालेंगे, फिर खुद के बारे में सोचा जाएगा। पर, संकट यह है कि बदरीनाथ व पांडुकेश्वर में राशन धीरे-धीरे समाप्ति की ओर है। स्थानीय लोग बीज का अनाज तक पहले ही यात्रियों की सेवा-सुश्रुषा में झोंक चुके हैं। इसके बावजूद सरकार को तो जैसे इधर झांकने की फुर्सत ही नहीं। हफ्ताभर यही हाल रहा तो यहां निवाले के लाले पड़ जाएंगे।

आपदा में बदरीनाथ राजमार्ग का कई किलोमीटर पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया है। नतीजा 17 जून से क्षेत्र का संपर्क पूरी तरह कटा हुआ है। सेना व आइटीबीपी की मदद से अब तक हजारों यात्रियों को जैसे-तैसे बदरीनाथ धाम से बाहर निकाला जा चुका है, लेकिन अनुकूल स्थितियां न होने के कारण अब भी तीन हजार से अधिक लोग वहां फंसे हुए हैं। हालांकि, स्थानीय लोग उनके खाने-रहने का पूरा ख्याल रख रहे हैं, लेकिन कितने दिन तक..।

आपदा के पहले दिन से बदरीनाथ व पांडुकेश्वर में मंदिर समिति व आश्रमों के सहयोग से दिन-रात नि:शुल्क लंगर चल रहे हैं। आश्रम के संचालक पुरुषोत्तम दास महाराज व हरिचरण दास बताते हैं कि ग्रामीणों ने बीज के लिए रखा अन्न तक भंडारे के लिए दे दिया। अब खुद उनके लिए अन्न का दाना तक नहीं बचा। क्षेत्र के एक दर्जन से अधिक गांवों में दीये तक नहीं जल रहे, फिर भी गांव वाले घरों से रोटियां लाकर यात्रियों को खिला रहे हैं। लेकिन, सरकार तो दूर स्थानीय प्रशासन के किसी नुमाइंदे ने इधर झांकने की कोशिश नहीं की। पुरुषोत्तम दास महाराज के अनुसार यात्रियों को जैसे-तैसे हम सुरक्षित निकाल ही लेंगे, पर उन ग्रामीणों का क्या होगा, जिनके सामने चूल्हा जलाने का भी संकट खड़ा हो गया है। प्रशासन के आपदा राहत दल ने कुछ दिन पहले बदरीनाथ में दो-दो बोरे गेहूं व चावल के गिराए थे, पर यह नाकाफी है।

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