झांसी की रानी के हुक्के पर लड़ाई
खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झांसी वाली रानी थी..।' हर भारतवासी के मन-मस्तिष्क को कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की ये ऐतिहासिक पंक्तियां आज भी उद्वेलित कर देती हैं। लेकिन एक कलाकार की कल्पनाओं ने इतिहास से अलग नया विवाद खड़ा कर दिया है। विवाद का कारण एक स्केच है, जिसमें रानी लक्ष्मीबाई को हुक्का पीते हु
By Edited By: Updated: Tue, 19 Nov 2013 04:01 AM (IST)
आगरा, जागरण संवाददाता। खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झांसी वाली रानी थी..।' हर भारतवासी के मन-मस्तिष्क को कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की ये ऐतिहासिक पंक्तियां आज भी उद्वेलित कर देती हैं। लेकिन एक कलाकार की कल्पनाओं ने इतिहास से अलग नया विवाद खड़ा कर दिया है। विवाद का कारण एक स्केच है, जिसमें रानी लक्ष्मीबाई को हुक्का पीते हुए दर्शाया गया है।
पढ़ें: ब्रिटेन के दुश्मनों की सूची में टीपू-लक्ष्मीबाई सन् 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम की नायिका झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की जयंती मंगलवार को है। पर, आगरा की भूमिका सिर्फ उनकी प्रतिमा और चित्रों पर माल्यार्पण करने तक सीमित नहीं है। रानी का पराक्रम और घटनाक्रम देखने वाली जुबां भले ही खामोश हो चुकी हैं, लेकिन इतिहास के पन्ने पलटते ही मुहब्बत की नगरी से वीरांगना के तार मजबूती से जुड़े दिखते हैं। ऐसे में एक ताजा घटनाक्रम ने आगरा के इतिहासविद् और प्रबुद्धजनों को थोड़ा बेचैन कर दिया है। मुंबई हाईकोर्ट में विवेक तांबे नाम के एक विधि छात्र ने कुछ माह पहले याचिका दायर की थी। खुद को झांसी की रानी के चचेरे भाई अनंत तांबे की पांचवीं पीढ़ी का बताने वाले विवेक ने याचिका में रानी लक्ष्मीबाई के कुलनाम सहित कई बिंदुओं को याचिका में शामिल किया है, लेकिन बखेड़ा मचा है एक तस्वीर पर। विवेक ने एक किताब में छपे रानी लक्ष्मीबाई के स्केच पर आपत्ति जताई है। इसमें वीरांगना को हुक्का पीते हुए दिखाया गया है। याचिकाकर्ता का कहना है कि वह स्वतंत्रता संग्राम की तलवार उठाने वाली थीं, हुक्का-पान जैसे काल्पनिक चित्र रानी की छवि को खराब करने वाले हैं। यह उनके व्यक्तित्व से मेल नहीं खाते। हालांकि मुंबई हाईकोर्ट के जज वीएम कनाडे और जस्टिस केआर श्रीराम ने सुनवाई करते हुए कह दिया कि यह याचिका पीआइएल की तरह है और इसकी सुनवाई उपयुक्त बेंच में होनी चाहिए। इतिहासकारों के मुताबिक, पहले राजा-महाराजा अपने स्केच बनवाने के शौकीन हुआ करते थे। आगरा और मथुरा के कलाकार भी खास तौर पर उन्हीं के चित्र बनाते थे। लेकिन रानी झांसी के इस चित्र पर यहां के कलाकारों और लोगों को भी आपत्ति है।
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