परीक्षा की तरह है चुनाव
श्रीश्री रविशंकर भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जिसकी आबादी एक अरब से अधिक है। हमारे देश में अलग-अलग स्तर पर चुनाव होते हैं-ग्राम पंचायत, ब्लॉक, जिला स्तर, फिर राज्य स्तर और राष्ट्र के स्तर पर। दुर्भाग्य से बहुत से लोगों के लिए इन सभी चुनावों के लिए एक ही पैमाना होता है, लेकिन हर स्तर के चुनाव के लिए अलग-अलग मुद्दे होते ह
By Edited By: Updated: Tue, 25 Mar 2014 12:04 PM (IST)
श्रीश्री रविशंकर
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जिसकी आबादी एक अरब से अधिक है। हमारे देश में अलग-अलग स्तर पर चुनाव होते हैं-ग्राम पंचायत, ब्लॉक, जिला स्तर, फिर राज्य स्तर और राष्ट्र के स्तर पर। दुर्भाग्य से बहुत से लोगों के लिए इन सभी चुनावों के लिए एक ही पैमाना होता है, लेकिन हर स्तर के चुनाव के लिए अलग-अलग मुद्दे होते हैं। ऐसे में सभी चुनावों के लिए एक ही मापदंड नहीं रखा जा सकता। लोकतंत्र की यह ताकत है कि हर क्षेत्र के मुद्दों से स्वायत्त तरीके से निपटा जा सकता है, लेकिन जब विभिन्न स्तरों के चुनावों की प्राथमिकताओं का सम्मिश्रण होने लगता है, तो अराजकता होने लगती है। क्षेत्रीय दल जब राष्ट्रीय भूमिका निभाने की कोशिश करने लगते हैं तो कभी-कभी वे सुशासन के लिए बाधा बन जाते हैं और संकट पैदा कर देते हैं, क्योंकि उनकी दृष्टि सीमित रहती है। मेरा सुझाव है कि लोग विभिन्न स्तरों पर देश के समक्ष उपस्थित विभिन्न मुद्दों को देखें। गांव या पंचायत के स्तर पर मतदाताओं को पार्टी पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए, बल्कि उम्मीदवार की सामर्थ्य और लोगों के साथ उसके जुड़ाव को देखना चाहिए। राष्ट्रीय स्तर पर हमारी दृष्टि शीर्ष पर मजबूत नेतृत्व की ओर होनी चाहिए। राज्यस्तर के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इन सभी स्तरों पर व्यक्ति के चरित्र और आचरण की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। अगर राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय दल और अच्छे चरित्र के उम्मीदवार के बीच चुनाव करना हो तो पार्टी को अधिक वरीयता दी जानी चाहिए। मैं सभी दलों से अपील करता हूं कि वे आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को टिकट न दें। इस देश में लोग अंधी निष्ठा के नाम पर भी वोट देते हैं। वे कहते हैं कि मेरे दादा और पिता ने एक पार्टी विशेष के लिए वोट दिया है तो मैं भी उनको ही दूंगा। पार्टियों के प्रति अंधा विश्वास रखना छोड़ देना चाहिए। हमारा चयन देश की वर्तमान स्थिति के आधार पर होना चाहिए, न कि अतीत में परिवार के राजनीतिक जुड़ाव के आधार पर। वर्तमान में अर्थव्यवस्था और औद्योगिक विकास की दृष्टि से देश वेंटीलेटर पर टिका हुआ है। यह समय की मांग है कि केंद्र में एक मजबूत और स्थिर सरकार रहे, जोअर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सके। युवाओं में आवेगवश भावनाओं में बह जाने की प्रवृति रहती है। अक्सर अच्छी सोच के लोग आखिर में गलत निर्णय ले लेते हैं, क्योंकि उनकी दृष्टि भावनाओं से धूमिल हो जाती है। आज एक मतदाता की स्थिति अर्जुन के समान है। अर्जुन इतना भावुक हो गया था कि स्पष्ट रूप से देखने में असमर्थ था। भगवान कृष्ण ने उसे अपनी भावनाओं को किनारे रख जनकल्याण के लिए अपने धर्म का पालन करने को कहा। आगामी आम चुनाव में नागरिकों का धर्म है कि वे शीर्ष पर एक निर्णायक और अनुभवी नेतृत्व का चुनाव करें, जो देश को प्रगति और समृद्धि की ओर ले जाए। मैं सभी लोगों से आग्रह करता हूं कि वे जिम्मेदारी लेकर सुनिश्चित करें कि उनके सभी दोस्त और परिजन इस बार सूझ-बूझ से वोट डालने अवश्य जाएं। यह चुनाव हम सभी के लिए एक परीक्षा की तरह है। मुझे विश्वास है कि इस दौर से गुजरने के बाद हमारा देश फिर से सुनहरी चिड़िया कहलाएगा।
(लेखक आध्यात्मिक गुरु व आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणेता है)