पांच राज्यों के चुनावी नतीजे तय करेंगे भाजपा नेताओं का भविष्य
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम भारतीय जनता पार्टी के लिए बेहद अहम है क्योंकि इसी के आधार पर पार्टी आगे की रणनीति तय करेगी।
नई दिल्ली [आशुतोष झा]। अगले तीन दिन में आने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे न सिर्फ उन प्रदेशों का भविष्य तय करेंगे बल्कि भाजपा के कई नेताओं की राह भी बनाएंगे या बिगाड़ेंगे। माना जा रहा है कि इन नतीजों को देखकर ही केंद्र सरकार और भाजपा के राष्ट्रीय संगठन में फेरबदल का आकार तय होगा। सामाजिक ताना बाना के साथ साथ सिद्ध योग्यता की कसौटी पर खरे उतरने वाले लोगों को ही स्थान मिलेगा। असर सिर्फ केंद्र तक सीमित न होकर पूरे देश की सांगठनिक इकाइयों में दिख सकता है। सोमवार को आखिरी चरण का मतदान है और देर शाम तक इन राज्यों के नतीजों का आकलन भी दिख सकता है।
यूं तो असम को छोड़कर भाजपा अन्य चार चुनावी राज्यों- पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पांडिचेरी में किसी भी स्थान पर सत्ता की लड़ाई नहीं लड़ रही थी। लेकिन भाजपा की भविष्य की रणनीति में केवल इतना भर नहीं है। दरअसल उन राज्यों में कौन सत्ता में आता है इसको देखकर भी आगे का रास्ता तय होगा। सूत्रों के अनुसार असम में भाजपा का सत्ता में आना संभव है और यह हुआ तो दिल्ली और बिहार की हार के बाद इससे बड़ा नैतिक बल मिलेगा। उत्तर पूर्व में फतह का अर्थ यह भी होगा कि भाजपा कांग्र्रेस मुक्त भारत की दिशा में सही मायनों में बढ़ गई है। अरुणाचल प्रदेश में वैसे भी फिलहाल भाजपा की ही सरकार है।
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लेकिन यह जीत भी भाजपा के रणनीतिकारों के लिए पर्याप्त नहीं है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार भाजपा के लिए सबसे सटीक राजनीतिक स्थिति यह होगी कि अन्य चार राज्यों मे भी कांग्रेस मुक्त सरकार बने। यानी भाजपा के लिए मनमाफिक माहौल तब होगा जब तमिलनाडु में जयललिता द्रमुक-कांग्रेस गठबंधन को हराए और पश्चिम बंगाल में ममता दोबारा सत्ता में लौटे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो भाजपा असम की जीत भर से पूरी तरह संतुष्ट नहीं होगी और संभव है कि केंद्र सरकार और संगठन में फेरबदल में इसका असर भी दिखे।
ध्यान रहे कि केंद्रीय कैबिनेट में लंबे समय से विस्तार प्रतीक्षित है और अमित शाह के दोबारा राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद से उनकी टीम बननी अभी बाकी है। यह माना जाता रहा है कि उनकी नई टीम में भी छोटे बदलाव होंगे लेकिन चुनावी नतीजे अच्छे नहीं आए तो फेरबदल का आकार कुछ बड़ा हो सकता है।
महासचिव जैसे पदों पर राज्यों से प्रभावी नेताओं को लाया जा सकता है। जबकि अब तक कामकाज में निष्क्रिय रहे नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। खासकर उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड को ध्यान में रखते हुए नए बदलाव तो होंगे ही, दक्षिण के राज्यों को लेकर पार्टी की सोच भी दिख सकती है। गौरतलब है कि शाह की 2019 की रणनीति में दक्षिण के राज्य अहम हैैं।