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'दुनिया के रंगमंच पर हर कोई निभा रहा है अपना किरदार', जानें दादी जानकी से जुड़ी कुछ और बातें

दादी जानकी जीवन के उस सच को बखूबी जानती थीं जिन्‍हें हम हमेशा से नकारते रहते हैं। इसलिए वो कहती थी कि यहां हर कोई अपना किरदार निभाता है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Fri, 27 Mar 2020 02:55 PM (IST)
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'दुनिया के रंगमंच पर हर कोई निभा रहा है अपना किरदार', जानें दादी जानकी से जुड़ी कुछ और बातें
नई दिल्‍ली (जेएनएन)। ब्रह्माकुमारी संस्थान की मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी डॉ. जानकी भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी दी गई दीक्षा और उनका बताया मार्ग हमेशा लाखों लोगों को सही रास्‍ता दिखाता रहेगा। दादी जीवन के सच को जानती थीं और लोगों के दर्द को भी बखूबी समझती थीं। यही वजह थी कि वो खुद लोगों का दर्द और पीड़ा दूर करने को अपना हाथ आगे बढ़ाती थीं।

हर कोई निभा रहा अपना किरदार

दादी कहती थीं कि सब बाबा का कमाल है। सदा एक ही बात याद रखती हूं मैं कौन (एक आत्मा) और मेरा कौन (परमात्मा)। मन में हर पल एक ही संकल्प परमात्मा की याद का चलता है। बाबा देने के लिए बैठा है, दिया है दे रहा है। राजयोग मेडिटेशन तन एवं मन दोनों की दवा है। आज इसकी सभी को आवश्यकता है। परिवर्तन संसार का नियम है। जैसे कलियुग के बाद सतयुग आता है। वैसे ही रात-दिन का चक्र चलता है। यदि जीवन में नवीनता नहीं तो वह नीरस हो जाएगा। हर दिन, हर पल नया सोचें, नया करें और जीवन पथ पर आगे बढ़ते रहें। आने वाले समय में और समस्याएं बढ़ेंगी इसके लिए सभी को योगबल बढ़ाने की जरूरत है। सबका ड्रामा में अपना-अपना पार्ट है। सदा मन में एक ही संकल्प चलता है मैं कौन और मेरा कौन। परमात्मा की याद बगैर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाती हूं। हर संकल्प में उसकी याद समायी हुई रहती है। बाबा को याद नहीं करना पड़ता है बाबा स्वत: याद आता है। मन को मारो नहीं सुधारो। उसका भटकना बंद करो। एक शिव बाबा में सदा बुद्धि के तार लगे रहेंगे तो मन स्थिर हो जाएगा।

जिन्दगी में कभी भी झूठ नहीं बोला...

दादी ने चर्चा में कहा कि आज मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि 102 साल की उम्र में भी मुझे ईश्वर और लोगों की दुआओं ने इतना भरपूर किया है कि मैं आज भी पूरी दुनिया का चक्कर लगाकर लोगों के साथ मानवीय मूल्यों को बांटती हूं तथा उन्हें नए जीवन जीने की प्रेरणा के लिए प्रेरित करती हूं। आज एक ऐसा आध्यात्मिक राज्य है जिसमें कभी सूर्य अस्त नहीं होता। मैंने पूरे जिन्दगी में कभी भी झूठ नहीं बोला है। इसी कारण आज मैं स्वस्थ हंू। साथ ही लोगों को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने की प्रेरणा देती हूं। कई देशों के प्रतिनिधियों ने मुझे अपने देश की नागरिकता देने की कोशिश की। परन्तु मुझे अपना देश भारत प्यारा है। नागरिकता देने वाले प्रतिनिधियों को भी मैंने भारत में आकर यहां की संस्कृति में घुलने और मिलने के लिए आमंत्रित करती हूं। आज मुझे गर्व है कि लाखों लोगों की जिन्दगी में एक नई रोशनी भरने का जो ईश्वर ने मुझे कार्य दिया था उसे आज भी सफलतापूर्वक कर रही हूं। मुझे यह पूर्ण विश्वास है कि एक दिन पूरे भारत को ही नहीं बल्कि सारे संसार को बदल कर ही छोड़ेंगे।

जानकी फाउंडेशन की स्थापना

आध्यात्मिक एवं धार्मिक लोगों के एक संगठन कीपर्स ऑफ विजडम की दादी जानकी भी सदस्य थीं। विश्व स्तर पर मानव आवास एवं पर्यावरण की समस्याओं से संबंधित अनेक आध्यात्मिक रूप से द्विविधा ग्रस्त स्थितियों के समाधान के लिए यह संगठन कार्य करता है। दादीजी की इसमें महती भूमिका रहती है। दादी जी के सम्मान में वर्ष 1977 में लंदन में जानकी फाउंडेशन फॉर ग्लोबल हेल्थकेयर की स्थापना की गई।

दादीजी द्वारा लिखी गईं पुस्तकें-

  • 1999- विंग्स ऑफ सोल
  • 1999- पर्ल्‍स ऑफ विजडम
  • 1999- कम्पेनिंस ऑफ गॉड
  • 2003- इनसाइड आउट
दादी जी की जीवन यात्रा-

  • 2005 में अमेरिका की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी द्वारा दादीजी को करेज ऑफ कशेन्स अवार्ड से नवाजा गया।
  • जून 2005 में काशी ह्यूमेनेटेरियन अवार्ड से नवाजा गया।
  • 1996 में दुनिया के 60 से अधिक देशों में बच्चों को सिखलाई जा रही लिविंग वैल्यूज इन एजुकेशन इनिशियेटिव का शुभारंभ यूनिसेफ के साथ मिलकर किया।
  • 91 वर्ष की उम्र में नियुक्त की गईं थीं ब्रह्माकुमारी की मुखिया
  • 46 हजार ब्रह्माकुमारी बहनों की अलौकिक मां थीं दादी जानकी 
  • 140 देशों में स्थित संस्थान के 8500 सेवाकेंद्र का करतीं थी कुशल संचालन
  •  इतनी उम्र में भी अलसुबह ब्रह्यमुहूर्त में 4 बजे से हो जाती थीं ध्यान मग्न
  • उनके नाम विश्‍व की सबसे स्थिर मन की महिला का है वर्ल्‍ड रिकार्ड
  • पिछले साल इतनी उम्र के बाद भी की थी 50 हजार किमी की यात्रा
  • 12 घंटे विश्व सेवा में रहती थीं तत्पर
दादीजी का जीवन परिचय-

  • 1916 में हैदराबाद सिंध प्रांत में जन्म
  • 1970 में पहली बार विदेश सेवा पर आध्यात्म का संदेश लेकर निकलीं
  • 2007 में ब्रह्माकुमारी की मुख्य प्रशासिका के रूप में संभाली संस्थान की कमान
  • 100 देशों में अकेले पहुंचाया राजयोग मेडिटेशन और आध्यात्म का संदेश
  • 140 देशों में हैं ब्रह्माकुमारीज संस्थान के सेवाकेंद्र
  • 21 वर्ष की आयु में संस्थान से समर्पित रूप से जुड़ी
  • 12 लाख से अधिक भाई-बहन वर्तमान में संस्थान से जुड़े हैं जुड़े विद्यालय से
  • 14 वर्ष तक की थी गुप्त योग-साधना
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