सिख दंगों का जिन्न कांग्रेस के कंधों पर अपना बोझ बढ़ाता जा रहा है। 1984 में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के प्रेस एडवाइजर रहे तरलोचन सिंह ने दंगों को होने देने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को जिम्मेदार ठहराकर इस मामले में कांग्रेस के लिए और पेचीदा कर दिया है। वहीं, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सिख दंगों में कुछ कांग्रेसियों के भी शामिल होने की स्वीकारोक्ति के बाद सिख संगठनों का गुस्सा पार्टी मुख्यालय के दफ्तर तक जा पहुंचा। सिख दंगों की जांच के लिए एसआइट
By Edited By: Updated: Fri, 31 Jan 2014 09:22 AM (IST)
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सिख दंगों का जिन्न कांग्रेस के कंधों पर अपना बोझ बढ़ाता जा रहा है। 1984 में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के प्रेस एडवाइजर रहे तरलोचन सिंह ने दंगों को होने देने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को जिम्मेदार ठहराकर इस मामले में कांग्रेस के लिए और पेचीदा कर दिया है। वहीं, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सिख दंगों में कुछ कांग्रेसियों के भी शामिल होने की स्वीकारोक्ति के बाद सिख संगठनों का गुस्सा पार्टी मुख्यालय के दफ्तर तक जा पहुंचा। सिख दंगों की जांच के लिए एसआइटी के गठन की संभावनाएं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पहले ही तलाशनी शुरू कर दी है। वहीं भाजपा और अकाली दल ने 1984 में सिखों के नरसंहार के मुद्दे पर दोषियों को सजा न होने का मुद्दा गरमा कर आम चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं।
पढ़ें: कांग्रेस के गले पड़ा 84 का दंगा तरलोचन सिंह ने दावा किया है कि जब पूरा देश दंगों की आग में जल रहा था तब राष्ट्रपति के कई बार फोन करने के बाद भी राजीव गांधी उपलब्ध नहीं हुए थे। भाजपा और अकाली दल के साथ-साथ इस मामले में आम आदमी पार्टी ने भी कांग्रेस पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। इसने कांग्रेस आलाकमान को बेहद चिंता में डाल दिया है। सबसे बड़ी दिक्कत है कि सिख दंगों की एसआइटी के साथ-साथ अब बटला हाउस कांड की भी जांच की मांग उठने लगी है। जिस ध्रुवीकरण की आशंका में कांग्रेस खुलकर गुजरात के दंगों को नहीं उठा रही थी, उसकी जगह 30 साल पुराना जिन्न सामने आने से पार्टी हैरत में है। समस्या यह है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के गुजरात और सिख दंगों की तुलना और कुछ कांग्रेसियों के इसमें शामिल होने की स्वीकारोक्ति पर पार्टी खुलकर कुछ बोल भी नहीं पा रही है। दिल्ली के साथ-साथ पंजाब व अन्य राज्यों में रह रहे सिखों के लिए यह काफी भावनात्मक मुद्दा है। इसलिए पार्टी के सभी प्रवक्ताओं को बेहद संयत रहने के आदेश दिए गए हैं। हाई कोर्ट ने सीबीआइ से मांगी जानकारी
1984 दंगों में पुलिस या सीबीआइ ने अब तक कुल कितने केस दर्ज किए हैं, कितने मामलों में अभियुक्तों को सजा हो चुकी है और कितने मामलों में आरोपी बरी हुए हैं? ऐसे कितने मामले हैं, जिनमें अभियोजन ने बरी हुए आरोपियों के खिलाफ अपील दायर की और कितने मामले अनट्रेस रहे हैं? यह जानकारी दिल्ली हाई कोर्ट ने दंगा मामले में उम्रकैद की सजा पाए पूर्व पार्षद बलवान खोखर की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सीबीआइ से मांगी है। वहीं अदालत ने बलवान खोखर की जमानत याचिका पर सुनवाई 12 मार्च तक के लिए टाल दी है।
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