Exclusive: शीला की जुबानी पूरी कहानी- मैं ओशो को मरने नहीं देना चाहती थी, लेकिन...!
भगवान रजनीश उर्फ ओशो दैनिक जागरण से कहा- मैं ओशो को मरने नहीं देना चाहती थी लेकिन वह मुझे ही दुश्मन मान बैठे...।
नई दिल्ली, अतुल पटैरिया। बीती सदी के उत्तराद्र्ध की यह कहानी, जिसने दुनिया को सम्मोहित किया, आज भी कई रहस्य समेटे है- ओशो और शीला की कहानी। ओशो नायक, तो शीला नायिका। दोनों अपनी-अपनी जगह और बिलकुल जुदा व्यक्तित्व, लेकिन दोनों ने मिलकर जो चमत्कार किया, दुनिया हैरत से भर नतमस्तक हो गई। विश्वशक्ति अमेरिका के खिलाफ उसी के घर में ‘अघोषित लड़ाई’ लड़ने वाली शीला कहती हैं कि उन्होंने फकीर ओशो को ‘किंग’ बनाया, तो ओशो ने कहा कि उन्होंने साधारण होटल परिचारिका को ‘क्वीन’ बनाया। सच यह भी कि इस जोड़ी के टूटते ही वह पूरा साम्राज्य तिनकों में बिखर गया।
‘बायो टेरर अटैक’
शीला पर एक डॉक्टर और अमेरिकी अटॉर्नी की हत्या की साजिश रचने, काउंटी इलेक्शन को प्रभावित करने और अमेरिकी इतिहास का इकलौता ‘बायो टेरर अटैक’ करने जैसे गंभीर आरोप लगे। किसी और ने नहीं, ओशो ने लगाए। शीला को साढ़े तीन साल की जेल हुई। मुकदमे अब भी लंबित हैं और शीला स्विटजरलैंड में हैं, जिसकी अमेरिका से प्रत्यर्पण संधि नहीं है। इधर, ओशो को भी 1986 में अमेरिका से खदेड़ दिया गया। 1990 में वह पुणे में चल बसे। कहा गया कि अमेरिका ने उन्हें जहर दिया था। वहीं, शीला कहती हैं कि अमेरिका ने नहीं, ओशो को ओशो ने ही मारा और वह ओशो को मरने देना नहीं चाहती थीं।
‘रिलेशनशिप’ पर मुझे ऐतराज था?
ओशो को किसने मारा? शीला ने कहा, उसी ने जिससे मैं उन्हें बचाना चाहती थी। डॉक्टर देवराज उर्फ अमृतो के साथ उनकी बढ़ती ‘रिलेशनशिप’ पर मुझे ऐतराज था...। कैसी रिलेशनशिप? थोड़ा ठिठक कर कहती हैं- जैसी ड्रग डीलर और ड्रग एडिक्ट के बीच होती है...। शीला आरोप लगाती हैं कि डॉ. देवराज ड्रग का अधिक डोज देकर ओशो को गुलाम बना चुका था। वह तिल-तिल कर मर रहे थे। मैं उन्हें इस तरह मरने देना नहीं चाहती थी। देवराज के पीछे कौन था? इस पर शीला कुछ बताते बताते रह गईं। हालांकि उनका इशारा कुछ लोगों की ओर था।
अमेरिकी सरकार नहीं चाहती थी हमारा वर्चस्व बढ़े
कहा- उन लोगों के प्रति मेरा विरोध ही ओशो और मेरे बीच के अलगाव का एकमात्र कारण बना। कहती हैं, ओरेगॉन, अमेरिका में 64 हजार हेक्टेयर में फैले रजनीशपुरम, जिसमें दुनियाभर के हजारों उच्चशिक्षित, पेशेवर और धनकुबेर ओशो के चरणों में पड़े रहते थे, मेरे छोड़ते ही तिलस्म खत्म हो गया। अमेरिकी सरकार की भूमिका पर शीला ने कहा, अमेरिका को ओशो ने ही इसका मौका दिया। अमेरिकी सरकार नहीं चाहती थी कि हमारा वर्चस्व और बढ़े। उसने लोगों को भड़काया। लेकिन मैंने उनका सामना किया।
जब ओशो मेरे घर आए
शीला ने ओशो और अपने रिश्ते के बारे में स्पष्ट किया कि वह रिश्ता न तो गुरु और शिष्या की तरह का था और ना ही उसमें कुछ भी गलत था। मेरे पिता ओशो के करीब थे। तब मैं 16 साल की थी, जब ओशो मेरे घर आए और मैं उनसे मिली। उनके सम्मोहन में मैं अमेरिका तक जा पहुंची। मैं उनके प्रेम में पागल हो चुकी थी। लेकिन प्रेम के रिश्ते की बुनियाद न तो अध्यात्म था और ना ही सेक्स। यह तो कुछ और ही था...। कहा- ओशो की महत्वाकांक्षाओं और सपनों को मैं यथार्थ में परिणत करती गई। वह अपना काम करते थे और मैं अपना। जब उन्होंने मुझे वहां से निकाला, तो जन्नत को वीरान होते समय नहीं लगा। दिलचस्प यह कि स्विटरजरलैंड के बेसल स्थित आवास की दीवारों पर शीला ने अब भी ओशो की तस्वीरें सजा रखी हैं।
भगवान रजनीश उर्फ ओशो का इतिहास अनसुलझी पहेली है। मानो रहस्य-रोमांच से भरी कोई अधूरी कहानी। कहानी में ओशो के साम्राज्य की ‘साम्राज्ञी’, उनकी सबसे करीबी और ‘सबसे विद्रोही’ शिष्या मां आनंद शीला की भूमिका उतनी ही अहम, जितनी खुद ओशो की। मानो एक सिक्के के दो पहलू। शीला को इस कहानी में से हटा दें, तो मानो कुछ नहीं। इसी रहस्य और रोमांच को फिल्म जगत पूरी तरह भुना लेने को आतुर है। शीला के जीवन पर फिल्म और सीरीज बनने जा रही हैं। शीला, और शीला के बहाने ओशो, दुनियाभर में चर्चा में हैं।
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