जांच एजेंसियां बनी केस की कातिल, आरुषि के हत्यारे का नाम नहीं आ पायेगा सामने
आरुषि हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा काट रहे तलवार दंपती को इलाहाबाद हाइकोर्ट ने बरी कर दिया है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । 9 साल पहले 2008 का वो साल और यूपी के विकसित शहरों में से एक नोएडा एकाएक सुर्खियों में आ गया। दरअसल मामला कुछ खास लोगों से जुड़ा हुआ था। शहर के नामचीन डेंटिस्ट में से एक राजेश तलवार की बेटी आरुषि तलवार की हत्या हो चुकी थी। डीपीएस नोएडा में पढ़ने वाली आरुषि की हत्या सामान्य हत्याकांड नहीं थी। समय समय पर आरोपियों की शक्ल और सूरत बदल जाया करती थी। यूपी पुलिस ने अपनी जांच में ये माना कि ये आरुषि की हत्या ऑनर किलिंग की हो सकती है और यूपी पुलिस ने आरुषि के पिता राजेश तलवार को ही आरोपी करार दिया।
2008 से 2013 तक तमाम हिचकोलों के साथ ये मामला आगे बढ़ता रहा लेकिन सीबीआइ की विशेष अदालत ने ये माना कि आरुषि के गुनहगार उसके अपने ही मां-बाप थे। ये बात अलग है कि तलवार दंपती कहता रहा है कि कोई अपने ही हाथों से अपनी बेटी का कत्ल कैसे कर सकता है। इस मामले में आज इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया। साक्ष्यों के अभाव में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलवार दंपती को सबूतों के अभाव में बरी करने का फैसला सुनाया। अदालत के फैसले के बाद एक बात तो साफ है कि आरुषि को उसके मम्मी-पापा ने नहीं मारा। साक्ष्यों और नियमों के दायरे में तलवार दंपती बेदाग हो गए। लेकिन एक सवाल शायद आरुषि अपने मां-बाप से पूछ रही होगी कि उसके गुनहगारों को सजा आखिर कब मिलेगी।
2008 में वारदात से लेकर बरी होने तक की कहानी
- 16 मई 2008 को नोएडा के पॉश इलाकों में से एक जलवायु विहार में सनसनीखेज हत्या का केस सामने आया। शहर के मशहूर डेंटिस्ट राजेश तलवार औप नूपुर तलवार की बेटी आरुषि का गला कटा शव उनके घर में मिला। इस मामले में सबसे पहले 45 साल के घरेलू नौकर हेमराज पर गया। लेकिन 17 मई को हेमराज का शव तलवार के अपार्टमेंट से बरामद हुआ।
- इस हाइप्रोफाइल केस में यूपी पुलिस को राजेश तलवार पर ही शक हुआ। पुलिस का ये मानना था कि राजेश तलवार ने आरुषि और नौकर हेमराज को आपत्तिजनक हालत में देखा और वो अपना आपा खो बैठे थे। राजेश तलवार ने गुस्से में अपनी बेटी की हत्या की। लेकिन तलवार दंपति और उनके दोस्तों की दलील थी कि बिना किसी साक्ष्य या फॉरेंसिक जांच के यूपी पुलिस उन्हें क्यों दोषी मान रही है। उनका कहना था कि पुलिस अपनी नाकामी छिपाने के लिए राजेश तलवार को बलि का बकरा बना रही है।
- 16 मई 2008 को आरुषि की हत्या के एक हफ्ते बाद राजेश तलवार को यूपी पुलिस ने गिरफ्तार किया। जमानत मिलने से पहले 60 दिन तलवार को जेल में गुजारने पड़े। यूपी पुलिस का जांच प्रक्रिया पर सवाल उठने के बाद तत्कालीन सीएम मायावती ने पूरे मामले को सीबीआइ को सौंप दिया।
-सीबीआइ जांच में हर मोड़ पर सनसनीखेज जानकारियां सामने आती रहीं। दिलचस्प बात ये थी कि एक ही तरह के साक्ष्य पर सीबीआइ के दो जांचकर्ताओं के निष्कर्ष अलग थे। अरुण कुमार की अगुवाई में पहली टीम ने पर्दाफाश करने का दावा किया और इस संबंध में तलवार के कंपाउंडर कृष्णा और दो घरेलू नौकर राजकुमार और विजय मंडल को गिरफ्तार किया। लेकिन चार्जशीट दाखिल करने में नाकाम रहने पर तीनों आरोपी कानून के फंदे से बच निकले।
-2009 में सीबीआइ ने इस केस को दूसरी टीम को सौंपा। दूसरी टीम ने जांच प्रक्रिया में खामियों को दिखाते हुए मामले को बंद करने की सिफारिश की। परिस्थितजन्य साक्ष्य के आधार पर दूसरी टीम ने राजेश तलवार को मुख्य संदिग्ध माना लेकिन साक्ष्यों के ही कमी का हवाला देकर आरोपित करने से मना कर दिया।
- सीबीआइ की विशेष अदालत ने जांचकर्ताओं की दलील को ठुकरा दिया। अदालत ने उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर तलवार दंपती पर मुकदमा चलाने का निर्देश दिया।
- चार साल की कानूनी प्रक्रिया के बाद गाजियाबाद की सीबीआइ की विशेष अदालत ने 26 नवंबर 2013 को तलवार दंपति को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। फिलहाल तलवार दंपति डासना जेल में अपनी सजा काट रहे हैं।
11 जनवरी 2017- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलवार की अपील पर फैसला सुरक्षित किया।
1 अगस्त 2017- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि तलवार की अपील दुबारा सुनेंगे क्योंकि सीबीआई के दावों में विरोधाभास हैं।
- दो सदस्यों वाली बेंच ने सात सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा और फैसला सुनाने के लिए 12 अक्टूबर 2017 की तारीख मुकर्रर की थी।
अब तक की कुछ खास मर्डर मिस्ट्री