12 साल बाद फिर निकला बोफोर्स का जिन्न, जानें अब तक क्या-क्या हुआ
राजीव गांधी ने लोकसभा में बताया था कि बोफोर्स सौदे में किसी तरह की कोई घूस नहीं दी गई है और ना ही इसमें कोई बिचौलिया शामिल था।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। राजनीतिक तौर पर बेहद संवेदनशील और कांग्रेस पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी करनेवाला बोफोर्स का जिन्न एक बार फिर बाहर निकल आया है। केन्द्रीय जांच एजेंसी सीबीआई ने बोफोर्स केस को दोबारा खोलने के लिए सरकार से याचिका दायर करने की इजाजत मांगी है। बोफोर्स सौदा साल 1986 में हुआ था। लेकिन, इसमें घूसखोरी का मामला सामने आने के बाद ऐसा माना जाता है कि राजीव गांधी के नेतृत्ववाली राजीव गांधी की 1989 के लोकसभा चुनाव में इसके चलते भारी हार हुई थी।
आइये जानते है बोफोर्स केस में अब तक क्या-क्या हुआ
24 मार्च, 1986
भारत और स्वीडन के हथियार निर्माता एबी बोफोर्स के बीच 1437 करोड़ रुपये के हथियारों की डील हुई। इसमें 155 एमएम की 410 बोफोर्स तोप देने के लिए 24 मार्च 1986 को करार हुआ।
16 अप्रैल, 1987
स्वीडन रेडियो ने 16 अप्रैल 1987 को यह दावा किया कि बोफोर्स सौदे के लिए कंपनी ने भारतीय राजनेताओं और रक्षा से जुड़े अधिकारियों को घूस दी है।
20 अप्रैल, 1987
राजीव गांधी ने लोकसभा में बताया कि बोफोर्स सौदे में किसी तरह की कोई घूस नहीं दी गई है और ना ही इसमें कोई बिचौलिया शामिल था।
6 अगस्त, 1987
बोफोर्स सौदे में कथित घूसखोरी के आरोपों की जांच के लिए पूर्व केन्द्रीय मंत्री बी. शंकरानंद की अध्यक्षता में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया गया।
फरवरी 1988
भारतीय जांचकर्ताओं के दल ने बोफोर्स तोप सौदे की जांच के लिए स्वीडन का दौरा किया।
18 जुलाई 1989
संयुक्त संसदीय समिति ने संसद में बोफोर्स सौदे की जांच पर अपनी रिपोर्ट सौंपी।
नवंबर 1989
बोफोर्स तोप सौदे में कथित घूसखोरी के आरोपों के बीच हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली और राजीव गांधी को प्रधानमंत्री के पद से हटना पड़ा।
26 दिसंबर 1989
तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह की नेतृत्ववाली सरकार ने बोफोर्स कंपनी का भारत के साथ किसी भी तरह के करार पर बैन लगा दिया।
22 जनवरी, 1990
सीबीआई ने बोफोर्स केस में तत्कालीन एबी बोफोर्स के प्रेसिडेंट मार्टिन अर्ब्दो और बिचौलिए चड्ढा और हिन्दुजा ब्रदर्स के खिलाफ आपराधिक षडयंत्र रचने, ठगी, और फर्जीवाड़े को लेकर आईपीसी और भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज किया।
फरवरी 1990
भारत की तरफ से पहलीबार स्वीस सरकार को रोगेटरी लेटर भेजा गया।
फरवरी 1992
पत्रकार एंडरसन की बोफोर्स घोटाले पर रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिसके बाद काफी विवाद पैदा हो गया।
दिसंबर 1992
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को पलटने के लिए दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया।
जुलाई 1993
स्वीडेन की उच्चतम अदालत ने इस केस में ओतावियो क्वात्रोच्चि और अन्य अभियुक्त की अपील को खारिज कर दिया। बोफोर्स घूसकांड में इटली के व्यवसायी ओतावियो क्वात्रोच्चि की उसकी आपराधिक भूमिका के चलते भारत को साल 2009 से पहले तक तलाश थी।
फरवरी 1997
क्वात्रोच्चि के खिलाफ गैर जमानती वारंट और रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया गया।
मार्च-अगस्त 1998
क्वात्रोच्चि की तरफ से एक याचिका दायर की गई जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया क्योंकि उसने भारतीय अदालत के समक्ष पेश होने से इनकार कर दिया।
दूसरा रोगेटरी लेटर स्वीस सरकार को भेजकर गुइर्सने और ऑस्ट्रेलिया से स्वीटजरलैंड पैसे ट्रांसफर करने के बारे में जांच की मांग की।
22 अक्टूबर, 1999
इस केस में पहली चार्जशीट विन चड्ढा (जो उस वक्त एबी बोफोर्स का एजेंट था), रक्षा सचिव एस.के. भटनागर, मार्टिन कार्ल अर्ब्दो (तत्कालीन बोफोर्स कंपनी के अध्यक्ष) के खिलाफ फाइल की गई।
ट्रायल का सामने करने के लिए चड्ढा भारत आया और अपने इलाज के लिए दुबई जाने की इजाजत मांगी। लेकिन उसकी याचिका खारिज हो गई। अर्ब्दो के खिलाफ जुलाई में गैर जमानती वारंट जारी किया गया।
सितंबर-अक्टूबर 2000
हिन्दुजा ब्रदर्स की तरफ से लंदन में एक बयान जारी कर यह कहा गया कि उन्हें जो फंड जारी किया गया था उसका बोफोर्स सौदे से कोई संबंध नहीं है। हालांकि, एक पूरक आरोपपत्र (सप्लीमेंट्री चार्जशीट) हिन्दुजा ब्रदर्स और क्वात्रोच्चि के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया गया। दोनों की तरफ से अदालत में कहा गया कि उनकी गिरफ्तारी के आदेश रोका जाए लेकिन जब अदालत ने जांच के लिए सीबीआई के सामने पेश होने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया।
दिसंबर 2000
क्वात्रोच्चि को मलेशिया में गिरफ्तार किया गया लेकिन उसे इस शर्त पर जमानत दे दी गई कि वह देश छोड़कर नहीं जाएगा।
अगस्त 2001
भटनागर की कैंसर के चलते मौत हो गई।
दिसंबर 2002
भारत ने क्वात्रोच्चि के प्रत्यर्पण की मांग की लेकिन मलेशिया हाईकोर्ट ने भारत की अपील को खारिज कर दिया।
जुलाई 2003
भारत की तरफ से ब्रिटेन सरकार को रोगेटरी लेटर भेजकर क्वात्रोच्चि के बैंक अकाउंट्स को फ्रीज करने के लिए कहा गया।
फरवरी-मार्च 2004
अदालत ने स्व. राजीव गांधी और भटनागर को आरोपों से बरी कर दिया और आईपीसी की धारा 465 के तहत बोफोर्स कंपनी के खिलाफ आरोप तैयार करने के निर्देश दिए। मलेशिया की उच्चतम अदालत ने क्वात्रोच्चि को प्रत्यर्पण करने की भारत की मांग को खारिज कर दिया।
मई-अक्टूबर 2005
दिल्ली हाईकोर्ट ने हिन्दुजा ब्रदर्स और एबी बोफोर्स के खिलाफ आरोपों को खारिज कर दिया। उसके बाद सीबीआई की तरफ से हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ 90 दिनों के अंदर अपील नहीं करने पर सर्वोच्च अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के वकील अजय अग्रवाल को इस केस में हाईकोर्ट के खिलाफ याचिका दायर करने को कहा।
जनवरी 2006
सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र और सीबीआई क्वात्रोच्चि के बैंक अकाउंट्स फ्रीज करने को लेकर यथास्थिति बरकार करने को कहा। हालांकि, उसी दिन उसके अकाउंट्स से सारे पैसे निकाल लिए गए।
फरवरी-जून 2007
इंटरपोल ने क्वात्रोच्चि को अर्जेटिना के इगुआजु एयरपोर्ट पर गिरफ्तार किया। तीन महीने के बाद वहां के फेडरल कोर्ट ने पहली बार में ही भारत की तरफ से प्रत्यर्पण की अपील को खारिज कर दिया।
अप्रैल-नवंबर 2009
क्वात्रोच्चि के प्रत्यर्पण पर लाख कोशिशों के बावजूद सफलता नहीं मिलने के बाद सीबीआई ने क्वात्रोच्चि के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस को वापस ले लिया और सुप्रीम कोर्ट से उसके खिलाफ केस वापल लेने की इजाजम मांगी। बाद में अजय अग्रवाल ने एक आरटीआई आवेदन लगाकर क्वात्रोच्चि के लंदन के बैंक अकाउंट्स को डी-फ्रीज करने के बारे में कागजात की मांग की। लेकिन, सीबीआई ने इसका जवाब देने से मना कर दिया।
दिसंबर 2010
क्वात्रोच्चि को बरी करने की सीबीआई की अपील पर कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इनकम टैक्स ट्रिब्यूनल ने आयकर विभाग से क्वात्रोच्चि और चड्ढ़ा के बेटे के बकाया कर लेने के बारे में पूछा।
फरवरी-मार्च 2011
मुख्य सूचना आयुक्त ने सीबीआई के ऊपर सूचना को छुपाने का आरोप लगाया। एक महीने बाद, दिल्ली के स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने क्वात्रोच्चि को केस से बरी करते हुए कहा कि देश अपनी कड़ी मेहनत से की गई कमाई को उसके प्रत्यर्पण पर और वहन नहीं कर सकता है क्योंकि अब तक उस पर 250 करोड़ रुपये खर्च किया जा चुका है।
अप्रैल 2012
स्वीडन की पुलिस चीफ स्टेन लिंडस्ट्रोम ने माना कि उनके पास राजीव गांधी या फिर अमिताभ बच्चन (पूर्व प्रधानमंत्री के घनिष्ठ संबंध) के खिलाफ कोई सबूत नहीं है कि उन्होंने बोफोर्स घोटाले में पैसे लिए हैं। अमिताभ बच्चन का नाम पहली बार बोफोर्स घाटाले में एक पेपर में छपने आने के बाद आया और उनके खिलाफ केस दर्ज किया गया। लेकिन बाद में उन्हें निर्दोष करार दिया गया।
जुलाई 2013
क्वात्रोच्चि जो कि साल 1993 के जुलाई 29-30 को यहां से भागा था उसने भारत के किसी भी अदालत के सामने मुकदमे के लिए पेश नहीं हुआ। 13 जुलाई 2013 को उसकी मौत हो गई। उसके अलावा इस केस से जुड़े जिन लोगों की मौत हुई वो हैं- भटनागर, चड्ढा और अर्ब्दो।
1 दिसंबर 2016
12 अगस्त 2010 के बाद करीब छह वर्षों के लंबे अंतराल के बाद अग्रवाल की याचिका पर एक बार फिर से सुनवाई शुरु हुई।
14 जुलाई 2017
सीबीआई ने कहा कि वह बोफोर्स केस को दोबारा खोलने के लिए तैयार है अगर सुप्रीम कोर्ट इसकी इजाजत दे ।
19 अक्टूबर 2017
मिशेल मार्शमैन की तरफ से एक टेलीविज़न चैनल पर दिए गए इंटरव्यू के बाद सीबाआई ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि वह उन तथ्यों और परिस्थितियों की जांच करेंगे जिसका बोफोर्स केस के संबंध में खुलासा किया गया है। उसमें मिशेल हार्शमैन की तरफ से दि गई जानकारी भी शामिल होंगी। गौरतलब है कि मिशेल ने बोफोर्स केस में कई खुलासे करते हुए कुछ भारतीय राजनेताओं के नाम भी लिए हैं जिनका इस सौदे से सीधी संबंध था। मिशेल वह शख्स है जिसे सबसे पहले बोफोर्स के पेपर्स मिले थे और सीक्रेट इन्वेस्टिगेटर था। उसे भारत सरकार ने अपने लिए लगा रखा था।
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