UNGA में सुषमा ने दिखाया पाक को आइना, अब्बासी से पूछे कुछ अहम सवाल
संयुक्त राष्ट्र महासभा में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान पर कई सवाल दागे। संबोधन के अंत में सभी ने खड़े होकर ताली बजाकर भारत की बातों का समर्थन भी किया।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने शनिवार रात को पाकिस्तान को करारा जवाब दिया।उन्होंने इस मंच से पाकिस्तान पर कई सवाल दागे। यह संबोधन दो दिन पूर्व दिए गए पाकिस्तान के पीएम शाहिद खक्कान अब्बासी के भारत पर लगाए आरोपों का जवाब भी था। पाकिस्तान को एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय मंच पर आइना दिखाने के लिए उनका वहां पर ताली बजाकर जोरदार तरीके से स्वागत भी किया गया। इसके अलावा संबोधन के अंत में भी सभी ने वहां पर खड़े होकर ताली बजाकर भारत की बातों का समर्थन भी किया। उन्होंने जो सवाल इस मंच से उठाए उनका जवाब शायद ही पाकिस्तान कभी दे सके।
पाकिस्तान पर वारउन्होंने कहा कि हम तो गरीबी से लड़ रहे हैं किन्तु हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान हमसे लड़ रहा है। उन्होंने कहा कि दो दिन पहले जब पाक पीएम शाहिद खक्कान अब्बासी भारत पर आरोप लगा रहे थे तो सुनने वाले कह रहे थे–Look, who is talking। जो मुल्क हैवानियत की हदें पार करके दहशतगर्दी के जरिये सैकड़ों बेगुनाहों को मौत के घाट उतरवाता है, वो यहाँ खड़े होकर हमें इंसानियत का सबक सिखा रहा था और मानवाधिकार का पाठ पढ़ा रहा था?
पीएम मोदी की दोस्ती की नीयत
सुषमा ने अब्बासी के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने शांति और दोस्ती की नीयत दिखाई थी और हर तरह की रुकावटों को पार करते हुए दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया था। लेकिन इस दोस्ती को बदरंग कर दिया गया इसका जवाब पाक पीएम को देना है हमें नहीं।
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लाहौर और शिमला समझौते का जिक्र
विदेश मंत्री ने कहा कि अब्बासी यहां खड़े होकर संयुक्त राष्ट्र के पुराने प्रस्तावों की बात भी कर रहे थे। लेकिन वह भूल गए कि शिमला समझौते और लाहौर डिक्लेयरेशन में दोनों देशों ने अपने मसलों को आपस में बैठकर ही तय करने का फैसला किया था। लेकिन पाकिस्तान अपनी सुविधा के लिए वो जब चाहें तब उसे भूल जाने का नाटक करता है।
हार्ट ऑफ एशिया का जिक्र
सुषमा ने कहा कि 9 दिसम्बर, 2015 को हार्ट ऑफ एशिया के सम्मेलन में नवाज शरीफ की मौजूदगी में नए सिरे से वार्ता शुरु करने का फैसला लिया गया था। इसमें Bilateral शब्द सोच समझकर डाला गया था कि कोई संदेह ना रहे कि बातचीत केवल दोनों देशों में होनी है और तीसरे देश की मदद नहीं लेनी है। यह सिलसिला आगे नहीं बढ़ा तो इसका जवाब पाक को देना होगा।
पाकिस्तान से बड़ा सवाल
सुषमा ने मंच से पाकिस्तान से पूछा कि भारत और पाकिस्तान साथ-साथ आजाद हुए थे। दुनिया में आज भारत की पहचान IT के superpower के रूप में है और पाकिस्तान की पहचान एक दहशतगर्द मुल्क के रूप में है, एक आतंकवादी देश के रूप में है। इसकी वजह क्या है?
उनका कहना था कि भारत ने पाकिस्तान द्वारा दी गई आतंकवादी चुनौतियों का मुकाबला करते हुए भी अपने घरेलू विकास को कभी थमने नहीं दिया। 70 वर्ष के दौरान भारत में बहुत सारे राजनैतिक दलों की सरकारें बनीं लेकिन सभी ने विकास की गति को जारी रखा। हमने विश्व प्रसिद्ध आईआईटी, आईआईएम और एम्स जैसे बड़े अस्पताल बनाए। लेकिन पाकिस्तान ने आतंकवादी ठिकाने और टैरर कैंप बनाए। हमने स्कॉलर, इंजीनियर और डॉक्टर बनाए तो पाकिस्तान ने लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, हिजबुल मुजाहिदीन और हक्कानी नेटवर्क बनाए। उन्होंने कहा कि डॉक्टर मरते हुए लोगों को बचाते हैं और आतंकवादी, जिन्दा लोगों को मारते हैं।
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केवल भारत ही नहीं पाक आतंकियों का शिकार
उन्होंने पाक को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि पाक के आतंकवादी संगठन केवल भारत के लोगों को ही नहीं मार रहे बल्कि दो और पड़ोसी देश अफ़गानिस्तान और बांग्लादेश के लोग भी उनकी गिरफ्त में हैं। उन्होंने कहा कि UNGA इतिहास में यह पहली बार हुआ कि किसी देश को Right to reply माँग कर एक साथ तीन-तीन देशों को जवाब देना पड़ा हो। क्या यह तथ्य पाकिस्तान की करतूतों को नहीं दर्शाता?
विकास में लगता पैसा तो होता कल्याण
उन्होंने कहा कि जो पैसा पाक आतंकवादियों की मदद के लिए खर्च करता है वही पैसा यदि अपने मुल्क के विकास के लिए खर्च करें, अपने अवाम की भलाई के लिए खर्च करें तो एक तो दुनिया को राहत मिल जाएगी और दूसरा पाकिस्तान के लोगों का कल्याण भी हो पाएगा।
आतंकवाद सबसे बड़ा मुद्दा
अपने संबोधन में सुषमा ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र आज जिन समस्याओं का समाधान ढूंढ रहा है, उसमें से सबसे प्रमुख हैं- आतंकवाद। भारत आतंकवाद का सबसे पुराना शिकार है। जिस समय हम आतंकवाद शब्द का प्रयोग करते थे तो विश्व के बड़े-बड़े देश इसे कानून और व्यवस्था का विषय बता कर खारिज कर देते थे। किन्तु आज जब आतंकवाद ने चारों ओर अपने पैर पसार लिए तो सभी देश इसकी चिंता कर रहे हैं।
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अपने अंदर झांकने की जरूरतसुषमा का कहना था कि उन्हें लगता है कि इस विषय पर हमें अन्तर्मुखी होकर सोचने की जरूरत है । हम सभी देश द्विपक्षीय वार्ताओं में, बहुपक्षीय वार्ताओं में जो भी संयुक्त वक्तव्य जारी करते हैं, सभी में आतंकवाद की भर्त्सना करते हैं और उससे लड़ने की एकजुटता का संकल्प भी लेते हैं। किन्तु सच्चाई यह है कि यह एक रस्म बन गई है, जिसे हम निभा तो देते हैं, किन्तु जब वास्तव में उस संकल्प को पूरा करने का समय आता है तो कुछ देश अपने-अपने हितों को सामने रखकर निर्णय करते हैं।
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उन्होंने कहा कि 1996 में भारत द्वारा प्रस्तावित CCIT पर अभी तक संयुक्त राष्ट्र निर्णय नहीं ले सका। CCIT की सभी धाराओं पर सहमति बन गई है सिवाय एक धारा के और वह है आतंकवाद की परिभाषा। यदि परिभाषा पर ही सहमति नहीं बनेगी तो हम एकजुट होकर कैसे लड़ेंगे। यदि मेरे और तेरे आतंकवादी को हम अलग दृष्टि से देखेंगे तो एकजुट होकर कैसे लड़ेंगे। यदि सुरक्षा परिषद् जैसी प्रमुख संस्था में आतंकवादियों की सूची पर मतभेद उभरकर आएंगे तो हम एकजुट होकर कैसे लड़ेंगे।
आतंकवाद पर सभी देशों का नजरिया हो एक
उन्होंने कहा कि जरूरी है कि अलग-अलग नज़रिये से आतंकवाद को देखना बन्द किया जाए। इसके प्रति समदृष्टि बनायें और स्वीकार करें कि आतंकवाद, समूची मानवता के लिए खतरा है। कोई भी कारण कितना भी बड़ा क्यों ना हो, हिंसा का औचित्य नहीं बन सकता। इसलिए एकजुटता से लड़ने का संकल्प लें, तो उसे मानें भी और मानेंतो उसे अमली जामा भी पहनायेंऔर इस वर्ष CCIT की परिभाषा पर सहमति बना कर उसे पारित कर दें।
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