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जब भारत से ‘बुद्धा इज स्‍माइलिंग’ को सुनकर बौखला गया था अमेरिका और …

इंदिरा गांधी के रूप में देश को पहली महिला प्रधानमंत्री मिली थीं। उनके हौसलों की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। उनके इस साहस ने तो अमेरिका को भी हैरत में डाल दिया था।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Tue, 31 Oct 2017 04:15 PM (IST)
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जब भारत से ‘बुद्धा इज स्‍माइलिंग’ को सुनकर बौखला गया था अमेरिका और …

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। इंदिरा गांधी की आज 33वीं बरसी है। इंदिरा भारत के लिहाज से ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के परिप्रेक्ष्य में भी बेहद अहम थीं। अहम सिर्फ इसलिए नहीं कि वह भारत की पहली ऐसी सशक्‍त महिला प्रधानमंत्री थीं, जिनके बुलंद हौसलों के आगे पूरी दुनिया ने घुटने टेक दिए थे। यह उनके बुलंद हौसले ही थे जिसकी बदौलत बांग्‍लादेश एक स्‍वतंत्र राष्‍ट्र के रूप में अस्तित्‍व में आया। भारत ने उनके ही राज में पहली बार अंतरिक्ष में अपना झंडा स्‍क्‍वाड्रन लीडर राकेश शर्मा के रूप में फहराया था।

इतना ही नहीं उन्‍होंने पंजाब में फैले उग्रवाद को उखाड़ फेंकने के लिए कड़ा फैसला लेते हुए स्‍वर्ण मंदिर में सेना तक भेजी। वह इंदिरा ही थीं, जिन्‍होंने भारत को परमाणु शक्ति संपन्‍न देश बनाने की ओर अग्रसर किया। राजनीतिक स्‍तर पर भले ही उनकी कई मुद्दों को लेकर आलोचना होती हो, लेकिन उनके प्रतिद्वंदी भी उनके कठोर निर्णय लेने की काबलियत को दरकिनार नहीं करते हैं। यही चीजें हैं जो उन्‍हें आयरन लेडी के तौर पर स्‍थापित करती हैं।

यहां पर एक बात और बता देनी जरूरी होगी कि जिस एनएसजी की सदस्‍यता के लिए आज भारत को मशक्‍कत करनी पड़ रही है, दरअसल, वो भारत की बदौलत ही अस्‍तित्‍व में आया था। इसके पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्‍प है। अमेरिका और दुनिया के बड़े देश 18 मई 1974 के उस दिन को कभी नहीं भूल सकते जब भारत ने राजस्‍थान के पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था। इस परीक्षण से दुनिया इतनी चकित रह गई थी कि किसी को यह समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्‍या किया जाए। लिहाजा आनन-फानन में कुछ देशों ने मिलकर एनएसजी की शुरुआत की। इसका मकसद परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना था। आज इसके सदस्‍य बढ़कर 48 तक हो गए हैं। 

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बहरहाल, भारत ने अपने पहले परमाणु परीक्षण के साथ यह साफ कर दिया था कि यह परीक्षण पूरी तरह से शांति के लिए था। यह परीक्षण भारत को परमाणु शक्ति संपन्‍न राष्‍ट्र बनाने की तरफ पहला कदम था। भारत ने जिस वक्‍त यह परीक्षण किया था, उस वक्‍त अमेरिका, वियतनाम युद्ध में उलझा हुआ था। लिहाजा भारत के परमाणु परीक्षण की तरफ उसका ध्‍यान उस वक्‍त गया, जब भारत ने खुद को परमाणु शक्ति संपन्‍न देश घोषित किया। अमेरिका के लिए इससे भी बड़ी चिंता की बात यह थी कि आखिर उसकी खुफिया एजेंसियों और सैटेलाइट को इसकी भनक कैसे नहीं लगी? वह वियतनाम युद्ध के बीच हुए इस परीक्षण को लेकर तिलमिलाया हुआ था। इस परीक्षण का नतीजा था कि अमेरिका ने भारत पर कई प्रतिबंध लगा दिए थे। लेकिन तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इन सभी को एक चुनौती के तौर पर स्‍वीकार किया था।

18 मई को जो परीक्षण पोखरण में हुआ, उसकी नींव इंदिरा गांधी ने सात वर्ष पूर्व रखी थी। भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के तत्‍कालीन अध्‍यक्ष राजा रमन्‍ना ने इस पूरे टेस्‍ट की कमान संभाली थी। उस वक्‍त उनके साथ भारत के मिसाइल प्रोग्राम के जनक डॉक्‍टर एपीजे अब्‍दुल कलाम भी थे। कलाम ने पोखरण-2 के समय पूरे मिशन की कमान संभाली थी। पहले परीक्षण के लिए के लिए जो कोड वर्ड तय किया गया था वो था ‘बुद्धा इज स्‍माइलिंग’। इस टॉप सीक्रेट प्रोजेक्ट पर लंबे समय से एक पूरी टीम काम कर रही थी। 75 वैज्ञानिक और इंजीनियरों की टीम ने 1967 से लेकर 1974 तक 7 साल जमकर मेहनत की। इस सफल टेस्‍ट के बाद इंदिरा गांधी उस जगह पर भी गईं, जहां यह टेस्‍ट किया गया था।

इसके बाद वर्ष 1972 में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर का दौरा करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वहां के वैज्ञानिकों को परमाणु परीक्षण के लिए संयंत्र बनाने की मौखिक इजाज़त दी थी। परीक्षण के दिन से पहले तक इस पूरे ऑपरेशन को गोपनीय रखा गया था। परीक्षण के चलते जब अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंध लगाए थे, तब हमारा साथ सोवियत रूस ने दिया था। जिस वक्‍त यह परीक्षण किया गया उस वक्‍त अमेरिका की कमान राष्‍ट्रपति निक्‍सन के हाथों में थी।

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इस परीक्षण के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा अभिलेखागार ने एक बयान में कहा कि 18 मई 1974 को भारत का शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट जब हुआ तो अमेरिका इससे चकित रह गया, क्योंकि अमेरिकी खुफिया समुदाय को कहीं से भी इस बात का गुमान नहीं था कि परमाणु परीक्षण की तैयारियां चल रही हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा अभिलेखागार एनएसए और परमाणु अप्रसार अंतरराष्ट्रीय इतिहास परियोजना द्वारा हाल में सार्वजनिक किए गए खुफिया समुदाय कार्यालय के दस्तावेजों के अनुसार, निक्सन प्रशासन के नीति निर्माताओं ने भारत के परमाणु कार्यक्रम को अपनी प्राथमिकता में काफी नीचे रखा था और इस बात का निर्धारण करने में उसे कोई जल्दबाजी नहीं थी कि नई दिल्ली परमाणु हथियार का परीक्षण कर सकता है। विश्लेषकों ने अपने निष्कर्ष में कहा है कि परीक्षण से 20 माह पहले इस विषय पर खुफिया विश्लेषण और रिपोर्ट मिलनी बंद हो गई थी।

एनएसए के अनुसार, हालांकि परीक्षण से दो साल पहले 1972 की शुरुआत में ब्यूरो ऑफ इंटेलीजेंस एंड रिसर्च के विदेश विभाग ने इस बात की भविष्यवाणी की थी कि भारत एक ऐसे भूमिगत परीक्षण की तैयारियां कर सकता है, जिसके बारे में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को भनक भी नहीं मिल पाएगी। पहली बार प्रकाशित हुई आईएनआर की रिपोर्ट में चेतावनी दी गयी थी कि अमेरिकी सरकार ने इस मुद्दे को ‘तुलनात्मक रूप से कम प्राथमिकता’ की सूची में रखा था, जिसका अर्थ है कि ऐसी तैयारियों को अगर भारत छिपाने का प्रयास करता तो वह इसमें आसानी से सफल हो सकता था।

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