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एक-दूसरे से लड़ेंगे, लेकिन मर्यादा में रहकर

गठबंधन टूटने के बाद शिवसेना-भाजपा एक दूसरे के विरुद्ध चुनाव जरूर लड़ेंगे, लेकिन प्रहार करते समय मर्यादा न टूटे, इस बात का खयाल रखा जाएगा। ताकि समय आने पर पुन: आंखें भी मिलाई जा सके और गले भी मिला जा सके। विधानसभा चुनाव में सीटों का समझौता न हो पाने के कारण दोनों दलों को अलग-अलग

By Edited By: Updated: Fri, 26 Sep 2014 12:35 PM (IST)
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मुंबई, [ओमप्रकाश तिवारी]। गठबंधन टूटने के बाद शिवसेना-भाजपा एक दूसरे के विरुद्ध चुनाव जरूर लड़ेंगे, लेकिन प्रहार करते समय मर्यादा न टूटे, इस बात का ख्याल रखा जाएगा। ताकि समय आने पर पुन: आंखें भी मिलाई जा सके और गले भी मिला जा सके।

विधानसभा चुनाव में सीटों का समझौता न हो पाने के कारण दोनों दलों को अलग-अलग लड़ना पड़ रहा है। लेकिन दूसरी ओर कई स्थानीय निकायों से लेकर केंद्रसरकार तक में दोनों दल मिलकर सत्ता चला रहे हैं। विधानसभा चुनाव के बाद समय आने पर दोनों दल पुन: एक साथ आ सकते हैं। यह बात दोनों दल समझ रहे हैं। इसीलिए गुरुवार को गठबंधन तोड़ने की घोषणा करते समय भी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र फड़नवीस ने साफ कर दिया था कि गठबंधन टूटने का अर्थ दुश्मन बन जाना कतई नहीं है। संभवत: ऐसी ही भावना शिवसेना की भी है। यही कारण है कि शिवसेना के निचले स्तर के कार्यकर्ताओं ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और राजीव प्रताप रूड़ी के विरुद्ध भले ही नारेबाजी की हो, लेकिन स्वयं उद्धव ठाकरे एवं उनके पुत्रआदित्य ठाकरे की ओर से बड़ी संयत प्रतिक्रियाएं आई हैं।

फिलहाल दोनों दल जहां-जहां साथ हैं, वहांतुरंत एक-दूसरे से अलग होने का भी उनका कोई इरादा नहीं है। मुंबई और ठाणे महानगरपालिकाओं सहित महाराष्ट्र के कई और स्थानीय निकायों में दोनों गठबंधन करके ही सत्ता में हैं। स्थानीय निकायों में चुनाव से पहले ही गठबंधन करनेवाले दलों को नगर विकास विभाग में हलफनामा देना पड़ता है कि वे अगले पांच साल तक साथ रहेंगे। इस कारण दोनों दलों का स्थानीय निकायों से अलग होना फिलहाल संभव नहीं है। केंद्रसरकार से भी संभवत: शिवसेना अलग नहीं होगी। शिवसेना सूत्रों के अनुसार चूंकि दोनों दल साथ मिलकर चुनाव लड़े हैं, इसलिए जनमत का सम्मान करते हुए पार्टी राजग गठबंधन का हिस्सा बनी रहेगी। यदि किसी कारणवश उसके एकमात्र मंत्री अनंत गीते से इस्तीफा दिलवाने की नौबत आई तो भी शिवसेना सरकार से अपना समर्थन वापस नहीं लेगी।

चुनाव प्रचार के दौरान भी दोनों दल अपना प्रहार राज्य की सत्तारूढ़ कांग्रेस-राकांपा पर सीमित रखेंगे। एक-दूसरे को निशाना बनाने से बचने की कोशिश की जाएगी। यह पहला अवसर नहीं है, जब सीट समझौता टूटने पर शिवसेना-भाजपा अलग हुई हों। 1992 के मुंबई महानगरपालिका चुनाव में भी दोनों अलग हो चुके हैं। तब भी प्रहार कीमर्यादाओं का खयाल रखने के कारण ही1995 के विधानसभा चुनाव में दोनों दल साथ आ सके थे। लेकिन इन सारी बातों के बीच यदि भाजपा ने राज ठाकरे के साथ पेंगे मारने की कोशिश की तो यह शिवसेना को बिल्कुल रास नहीं आएगा।

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