जैसे एक मां बच्चे को जन्म देती है इसलिए बच्चे का फर्ज बनता है कि वह मां की सेवा करे, वैसे ही हमारा कर्तव्य है कि गंगा मैया की सेवा करें। मां अपने बच्चे को जितना प्यार करती है, वह उतना प्यार तो नहीं लौटा सकता है लेकिन सेवा जरूर कर सकता है। सौभाग्य की बात है कि हमारी संस्कृति में हमेशा मां को भगवान से ऊपर स्थान दिया गया है।
By Edited By: Updated: Wed, 02 Jul 2014 08:01 PM (IST)
गंगा हमारी मां है। जैसे एक मां बच्चे को जन्म देती है इसलिए बच्चे का फर्ज बनता है कि वह मां की सेवा करे, वैसे ही हमारा कर्तव्य है कि गंगा मैया की सेवा करें। मां अपने बच्चे को जितना प्यार करती है, वह उतना प्यार तो नहीं लौटा सकता है लेकिन सेवा जरूर कर सकता है। सौभाग्य की बात है कि हमारी संस्कृति में हमेशा मां को भगवान से ऊपर स्थान दिया गया है। आज हम यह देखकर हैरान हैं कि जो गंगा मैया सबका पालन पोषण कर रही है, उस पर सब अत्याचार कर रहे हैं। दुर्भाग्य की बात है कि करोड़ों लोगों को जीवनदान देने वाली गंगा मैया आज खुद अपना जीवन बचाने के लिए संघर्ष कर रही है। बड़े दुर्भाग्य की बात है कि गंगा आज पीड़ा में है लेकिन हमें उसके आंसू भी नहीं दिखायी देते। उसकी आवाज हम तक नहीं पहुंचती। इससे अधिक दुर्भाग्य और कुछ नहीं हो सकता।
राजकपूर ने एक फिल्म बनायी थी जिसका नाम था- 'जिस देश में गंगा बहती है'। आज स्थिति यह है कि अगर उनके पोते गंगा पर फिल्म बनायें तो उसका शीर्षक होगा- 'जिस देश में गंगा बहती थी'।
गंगा को बचाना मतलब खुद को बचाना है। अगर हम गंगा को नहीं बचा पाये तो आने वाले दिनों में हमारा कोई भविष्य नहीं होगा। हमें हर संभव कोशिश कर गंगा को बचाना होगा। मैं जब केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्री था तो हमने सरकारी प्रयासों के जरिये गंगा को बचाने की कोशिश की थी लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। पैसे पानी में बह गये। इससे पहले भी गंगा एक्शन प्लान के रूप में कोशिश हुई थी। उसका भी कोई परिणाम नहीं निकला। बीते 30 साल में हमने कई बार सरकारी स्तर से गंगा को साफ करने की कोशिश की है लेकिन अब तक ये सभी प्रयास सिर्फ पैसे पानी में बहाने वाले साबित हुए हैं क्योंकि गंगा की स्थिति पहले से सुधरने के बजाय और बदतर हुई है। इसलिए अब हमें गंगा को बचाने के लिए नये सिरे से सोचना होगा। बिल्कुल नयी रणनीति बनाकर विगत में हुई गलतियों से सीख लेनी होगी।
सबसे पहली बात यह है कि हमें गंगा की सफाई के काम से जन सामान्य को जोड़ना होगा। इस पूरे कार्यक्रम को एक जन अभियान का रूप देना होगा। इसके प्रति जनता में जागरूकता लानी होगी। दूसरी बात यह है कि गंगा के किनारे जितने भी शहरों की गंदगी इसमें फेंकी जा रही है, उसे तत्काल रोकना होगा। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में एक भी ऐसा शहरी निकाय नहीं होना चाहिए जिसकी गंदगी गंगा में गिरे। इसके लिए भले ही केंद्र सरकार को सीधे शहरी स्थानीय निकायों को अनुदान देना पड़े तो वह भी दिया जाये। जो भी गंदगी शहरों से निकल रही है, उसे उठाने और ट्रीट करने की सुविधा होनी चाहिए। ट्रीट करने के बाद इस गंदगी को गंगा में डालने के बजाय एक छोटी नहर के माध्यम से उस शहर के आसपास बसे किसानों को मुफ्त पानी दिया जाये ताकि उनके खेतों में सिंचाई हो सके और गंगा में दूषित पानी भी गिरने से रोका जा सके। इसके अलावा गंगा के किनारे जो भी उद्योग लगे हैं, किसी भी सूरत में उनका दूषित पानी गंगा में नहीं गिरना चाहिए।
तीसरी बात यह है कि गंगाजल की गुणवत्ता परखने के लिए हर 10 से 15 किमी की दूरी पर जल परीक्षण केंद्र बनाये जायें जहां से नमूने लेकर नियमित रूप से गंगाजल की गुणवत्ता परखी जाये। इन तकनीकी बातों के साथ-साथ हमें गंगा की सफाई से आम लोगों खासकर युवाओं को जोड़ना होगा। इसका सबसे अच्छा तरीका यह है कि एक गंगा रक्षक दल बनाया जाये। यह स्वयंसेवियों का दल होगा जिसे सरकार पहचान पत्र जारी करेगी। ये स्वयंसेवी पूरे देश में जाकर गंगा के बारे में जागरूकता फैलायें तथा गंगा को प्रदूषित होने से बचायेंगे। हमारे देश की रक्षा करने के लिए तो सेना है लेकिन जिस नदी के कारण देश बचा है उसकी रक्षा के लिए हमने कोई दल नहीं बनाया है। इसलिए गंगा रक्षक दल बनाना बेहद जरूरी है। इस तरह सरकार की ठोस कार्ययोजना और जन भागीदारी के जरिये हम फिर से गंगा को निर्मल बना सकेंगे। (सुरेश प्रभु-पूर्व केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री)