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'गतिमान' ने बढ़ाई बाकी सेमी हाईस्पीड ट्रेनों पर काम की रफ्तार

उत्तर रेलवे की कामयाबी के बाद सेमी हाईस्पीड ट्रेनों के लिए पहचाने गए बाकी आठ कारीडोर से जुड़े रेलवे जोनों ने भी अपने यहां ट्रैक सुधार व बाड़ आदि लगाने की तकनीकी कसरत तेज कर दी है।

By Gunateet OjhaEdited By: Updated: Wed, 06 Apr 2016 11:53 PM (IST)
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संजय सिंह, नई दिल्ली। गतिमान एक्सप्रेस की कामयाबी के बाद रेलवे का हौसला बुलंद है। उत्तर रेलवे की कामयाबी के बाद सेमी हाईस्पीड ट्रेनों के लिए पहचाने गए बाकी आठ कारीडोर से जुड़े रेलवे जोनों ने भी अपने यहां ट्रैक सुधार व बाड़ आदि लगाने की तकनीकी कसरत तेज कर दी है।

रेलवे बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार दिल्ली-कानपुर, दिल्ली-चंडीगढ़, हैदराबाद-चेन्नई, नागपुर-बिलासपुर, गोवा-मुंबई, नागपुर-सिकंदराबाद तथा मुंबई-अहमदाबाद सेमी हाईस्पीड कारीडोर पर ट्रैक उच्चीकरण और बाड़ की जरूरत की पहचान कर ली गई है। चेन्नई-बंगलूर-मैसूर कारीडोर के उच्चीकरण से संबंधित अध्ययन चीन की कंपनी इरयुवान अपने खर्चे पर कर रही है। वह इसी महीने के अंत तक फाइनल रिपोर्ट पेश कर देगी। दूसरी ओर दिल्ली-चंडीगढ़ कारीडोर के लिए फ्रांस की कंपनी एसएनसीएफ की ओर से संभाव्यता अध्ययन इसी साल 19 जवनरी को शुरू हो चुका है। इसे अगले साल इसी तारीख को पूरा करने को कहा गया है।
ये सभी ए श्रेणी के वे ट्रैक हैं जिन पर सामान्यत: 160 किलोमीटर, जबकि थोड़े सुधार के साथ 200 किलोमीटर तक की रफ्तार से टे्रन चलाना संभव है। गतिमान को चलाने के लिए भी रेलवे को दिल्ली-आगरा ट्रैक में सुधार व कई जगहों पर बाड़ लगाने में लगभग 17 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े।

भारत में उन ट्रेनों को सेमी हाईस्पीड ट्रेन का दर्जा दिया जाता है जिनकी रफ्तार 160-200 किलोमीटर प्रति घंटा हो। गतिमान को 160 किलोमीटर पर चलाकर रेलवे ने अपनी काबिलियत साबित कर दी है। यह अलग बात है कि भविष्य में चलने वाली सेमी हाईस्पीड ट्रेने गतिमान जैसी नहीं होंगी। क्योंकि इनमें कपूरथला फैक्ट्री में निर्मित बोगियों के बजाय विदेशों से आयातित या निजी फैक्ट्री में निर्मित ट्रेन सेट्स का इस्तेमाल होगा। ट्रेन सेट्स की बोगियां ईएमयू जैसी होती है। खुद की मोटर के कारण इन्हें खींचने के लिए अलग से इंजन लगाने की जरूरत नहीं पड़ती।

रेलवे ने सेमी हाईस्पीड ट्रेनों के संचालन के लिए रेलवे ने 2500 करोड़ रुपये की लागत से 15 सेमी हाईस्पीड ट्रेन सेट्स (315 कोच) खरीदने की योजना बनाई है। इनमें से 40 का आयात होगा। जबकि शेष 275 कोच भारत में बनेंगे। ये दो तरह के होंगे। राजधानी टाइप और शताब्दी टाइप। पैंतीस साल के अनुबंध में आपूर्तिकर्ता कंपनी को सात साल तक रखरखाव की जिम्मेदारी भी उठानी होगी। इसके लिए गाजियाबाद में डिपो बनाने का प्रस्ताव है।
ट्रेन सेट्स की आपूर्ति के लिए निविदाएं आमंत्रित की जा चुकी हैं। लेकिन बोली लगाने वाली कंपनियां इतने छोटे आर्डर के लिए तैयार नहीं हैं। वे कम से कम 1000 ट्रेन सेट्स का आर्डर चाहती हैं। इनमें सीमेंस के अलावा बंबार्डियर व कैफ (अमेरिका), हिताची, अन्साल्डो व कावासाकी (जापान) तोशिबा (जापान) तथा बीएचईएल (भारत), एल्स्टॉम इंडिया व भारत अर्थमूवर्स (भारत) के कन्सोर्टियम शामिल हैं। स्पेन की कंपनी टैल्गो भी ट्रेन सेट्स की आपूर्ति की इच्छुक है।

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