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लिंग परीक्षण में चूके डॉक्टर की पिटाई

गर्भ में लिंग परीक्षण में चूक से गुस्साए लोगों ने अलीगढ़ में न सिर्फ क्लीनिक में तोड़-फोड़ की, बल्कि डॉक्टर को भी पीट डाला। आरोप है कि अल्ट्रासाउंड में उन्हें बेटी बताया गया था। घरवालों ने गर्भपात करा दिया। गर्भपात से खुलासा हुआ कि पेट में बेटी नहीं, बेटा पल रहा था। क्लीनिक में तोड़-फोड़ के वक्त पुलिस ने एक आरोपी को हि

By Edited By: Updated: Sun, 16 Mar 2014 02:33 PM (IST)
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लखनऊ। गर्भ में लिंग परीक्षण में चूक से गुस्साए लोगों ने अलीगढ़ में न सिर्फ क्लीनिक में तोड़-फोड़ की, बल्कि डॉक्टर को भी पीट डाला। आरोप है कि अल्ट्रासाउंड में उन्हें बेटी बताया गया था। घरवालों ने गर्भपात करा दिया। गर्भपात से खुलासा हुआ कि पेट में बेटी नहीं, बेटा पल रहा था। क्लीनिक में तोड़-फोड़ के वक्त पुलिस ने एक आरोपी को हिरासत में लिया, लेकिन बाद में छोड़ दिया गया। डॉक्टर ने अज्ञात लोगों के खिलाफ मारपीट की तहरीर दी है।

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अलीगढ़ के गांधीपार्क थाना क्षेत्र के पड़ाव दुबे इलाके में शनिवार की रात एक डॉक्टर के क्लीनिक पर जमकर हंगामा हुआ। डॉक्टर ने अल्ट्रासाउंड मशीन भी लगा रखी है। महेंद्रनगर की तीन माह की गर्भवती अल्ट्रासाउंड कराने पहुंची। आरोप है डॉक्टर ने गर्भ में बेटी का होना बताया। युवती दूसरी बेटी नहीं चाहती थी। सो, देहलीगेट क्षेत्र के एक हॉस्पिटल में गर्भपात करा दिया। यहां उसे बताया गया कि भ्रूण बेटी का नहीं, बेटे का था। युवती ने यह सूचना पिता को दी।

इस खबर पर युवती के मायके वाले डॉक्टर के क्लीनिक पहुंचे और तोड़-फोड़ कर दी। डॉक्टर को भी पीट दिया। पड़ोसी दुकानदारों ने तोड़-फोड़ करते एक युवक को पकड़ लिया। पुलिस ने उसे थाने से छोड़ दिया। वहीं, डॉक्टर का कहना है कि क्लीनिक पर लिंग की जांच का आरोप गलत है। मेरे साथ मारपीट करने वाले शुक्रवार रात 10 बजे क्लीनिक पर आए थे। घर आकर मरीज देखने का आग्रह किया। मैंने इन्कार कर दिया तो मारपीट कर दी।

पुलिस ने कहा कि कुछ लोगों ने क्लीनिक पर तोड़-फोड़ की है। तहरीर आई तो रिपोर्ट दर्ज करके कार्रवाई करेंगे। सीएमओ डॉ. सीएस सगरवाल ने कहा कि मुझे घटना की जानकारी नहीं है। इसकी तस्दीक कराऊंगा। अगर लिंग परीक्षण की पुष्टि हुई तो रिपोर्ट कराऊंगा।

पीसीपीएनडीटी दंडनीय अपराध:

पीसीपीएनडीटी एक्ट यानी गर्भ पूर्व व प्रसव पूर्व निदानात्मक तकनीक (लिंग चयन प्रतिबंध) अधिनियम में भ्रूण परीक्षण दंडनीय अपराध है। अधिनियम में परीक्षण कराने और करने वाले बराबर के दोषी हैं। आरोप सिद्ध होने पर तीन साल की सजा और एक लाख रुपये तक का जुर्माना लग सकता है।