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सरकार सबक लेने के मूड में नहीं, जल्दबाजी से आ सकती है तबाही

केदार घाटी में जिस तरह की आपदा आई, शायद सरकार उससे भी सबक लेने के मूड में नहीं है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बयान के बाद केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा जिस तत्परता से केदारनाथ में जेसीबी पहुंचाकर मलबा हटाने की बात कह रहे हैं, उससे साफ है कि सरक

By Edited By: Updated: Sat, 29 Jun 2013 10:04 AM (IST)

सुभाष भट्ट, देहरादून। केदार घाटी में जिस तरह की आपदा आई, शायद सरकार उससे भी सबक लेने के मूड में नहीं है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बयान के बाद केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा जिस तत्परता से केदारनाथ में जेसीबी पहुंचाकर मलबा हटाने की बात कह रहे हैं, उससे साफ है कि सरकार ने इस बेहद संवेदनशील काम को हाथ में लेने से पहले भू-वैज्ञानिकों से राय-मशविरा तक करने की जहमत नहीं उठाई। भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि केदारनाथ में जमा हजारों टन ग्लेशियर मैटीरियल को बगैर भूगर्भीय अध्ययन से छेड़ना नई आपदाओं को न्यौता देने जैसा है।

जान बचाने के लिए खानी पड़ी घास

सरकार को शायद अंदाजा नहीं कि दैवीय आपदा से केदार घाटी में जमा हजारों टन मलबे में कितने बड़े खतरे छिपे हुए हैं। भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक डॉ. प्रमोद नवानी का कहना है कि आपदा के बाद केदार घाटी 'ग्लेशियर डिपॉजट मूवमेंट' व 'लैंडस्लाइड' के लिहाज से उच्च संवेदनशील क्षेत्र बन गई है। ग्लेशियर के इस मलबे को यदि मंदिर की ओर आने से रोकने के ठोस उपाय नहीं किए गए, तो तबाही फिर मुंह उठा सकती है। इसके लिए बाकायदा भूगर्भीय अध्ययन कर बेहतर डिजाइन वाली सुरक्षा दीवारों की सीरीज बनानी जरूरी हैं। बरसात के तीन महीने बाकी हैं। लिहाजा, सुरक्षा उपाय से पहले मलबे को छेड़ना ठीक नहीं।

मोक्ष को भी बारी का इंतजार

भू-वैज्ञानिक और कुमाऊं विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. आरके पांडे कहते हैं कि भूगर्भीय लिहाज से संवेदनशील केदारनाथ में बड़ी मशीनों से मलबा हटाना नए खतरे पैदा करने के बराबर है। इससे पारिस्थितिकीय संतुलन बिगड़ने की प्रबल आशंकाएं हैं। मलबे का निस्तारण कैसे व कहां किया जाएगा, यह भी बड़ा सवाल है। बगैर सोचे-समझे मलबा कहीं भी डंप करने से नए लैंडस्लाइड जोन बन जाएंगे।

सुरक्षित तो नैनिताल भी नहीं है

इस पूरे मामले में भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण (जीएसआइ) के निदेशक डॉ. एनसी शर्मा की राय कुछ जुदा है। उनका कहना है कि मलबे में काफी शव दबे हैं, जिसे देखते हुए जल्द मलबा हटाना जरूरी है और इसमें कोई जोखिम भी नहीं है। केदारनाथ के पुनर्निर्माण व ट्रीटमेंट का बेहतर व सुरक्षित तरीका क्या होगा, भूगर्भीय अध्ययन के बाद ही इस पर कुछ कहा जा सकता है। अलबत्ता जीएसआइ की एक टीम जल्द केदार घाटी पहुंचकर अध्ययन करेगी।

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