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सियासी दलों को आरटीआइ के दायरे से बाहर रखने का फैसला

नई दिल्ली। सरकार ने सियासी दलों को सूचना का अधिकार [आरटीआइ] कानून के दायरे से बाहर रखने का फैसला कर लिया है। इसके लिए वह आरटीआइ अधिनियम 2005 में संशोधन करने जा रही है। गुरुवार को कैबिनेट की बैठक में अधिनियम के संशोधित मसौदे को मंजूरी के लिए पेश किया जाएगा।

By Edited By: Updated: Tue, 30 Jul 2013 09:48 PM (IST)

नई दिल्ली। सरकार ने सियासी दलों को सूचना का अधिकार [आरटीआइ] कानून के दायरे से बाहर रखने का फैसला कर लिया है। इसके लिए वह आरटीआइ अधिनियम 2005 में संशोधन करने जा रही है। गुरुवार को कैबिनेट की बैठक में अधिनियम के संशोधित मसौदे को मंजूरी के लिए पेश किया जाएगा।

आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग [डीओपीटी] ने आरटीआइ अधिनियम का संशोधित मसौदा तैयार कर लिया है। मंजूरी के लिए उसे कैबिनेट के समक्ष पेश किया जाएगा। ध्यान रहे कि सरकार को यह कदम इसलिए उठाना पड़ा क्योंकि 3 जून के अपने आदेश में केंद्रीय सूचना आयोग [सीआइसी] ने देश के छह मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को आरटीआइ के दायरे में शामिल कर लिया था। इतना ही नहीं आयोग ने कांग्रेस, भाजपा, बसपा, भाकपा, माकपा और राकांपा से छह सप्ताह के भीतर सूचना अधिकारी नियुक्त करने के लिए भी कहा था। सीआइसी ने चंदे के बारे में मांगी गई सूचना को भी इन दलों से सार्वजनिक करने के लिए कहा था। आयोग के इस आदेश का भाकपा को छोड़ कर सभी दलों ने पुरजोर विरोध किया। इस मुद्दे पर कांग्रेस, भाजपा और अन्य दलों पूरी तरह से एकजुट हो गए थे।

सूत्रों के अनुसार राजनीतिक दलों को राहत देने के लिए सरकार आरटीआइ अधिनियम की धारा-2 में संशोधन कर लोक सेवक शब्द की परिभाषा फिर से तय करेगी। सूत्रों के मुताबिक, अधिनियम के संशोधित मसौदे को कैबिनेट की मंजूरी के बाद 5 अगस्त से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में पेश किया जाएगा। केंद्रीय सूचना आयोग के 3 जून के उस आदेश से बचने के लिए उठाना पड़ा, जिसके तहत सीआइसी ने देश के छह मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को आरटीआइ के दायरे में शामिल

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