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दोषी नेताओं को छूट वाला बिल अटकने का ठीकरा भाजपा पर

नई दिल्ली। अदालत द्वारा दोषी करार सांसदों-विधायकों को बचाने वाले विधेयक के राज्यसभा से पारित न होने देने का ठीकरा सरकार ने विपक्ष खासकर भाजपा पर फोड़ दिया है। सरकार ने गुरुवार को आरोप लगाया कि विपक्ष के लगातार बदलते रुख के चलते जनप्रतिनिधित्व (द्वितीय संशोधन) विधेयक 2013 राज्य सभा से पारित नहीं हो सका। किसी भी न्यायालय से दो

By Edited By: Updated: Fri, 13 Sep 2013 01:38 AM (IST)
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नई दिल्ली। अदालत द्वारा दोषी करार सांसदों-विधायकों को बचाने वाले विधेयक के राज्यसभा से पारित न होने देने का ठीकरा सरकार ने विपक्ष खासकर भाजपा पर फोड़ दिया है। सरकार ने गुरुवार को आरोप लगाया कि विपक्ष के लगातार बदलते रुख के चलते जनप्रतिनिधित्व (द्वितीय संशोधन) विधेयक 2013 राज्य सभा से पारित नहीं हो सका। किसी भी न्यायालय से दो वर्ष या उससे अधिक की सजा मिलते ही सांसद, विधायकों की सदस्यता फौरन खत्म करने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी करने के लिए सरकार ने यह विधेयक पेश किया था।

सूत्रों का कहना है कि बिल लटकने के कारण सुप्रीम कोर्ट का आदेश अभी प्रभावी रहेगा। फिलहाल सरकार इस समस्या से निजात पाने के लिए अध्यादेश लाने के मूड में नहीं है। वैसे अगर वह चाहे तो अध्यादेश ला सकती है। क्योंकि मानसून सत्र की समाप्ति के बाद संसद के दोनों सदनों का सत्रावसान हो चुका है।

सूत्रों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के गत 10 जुलाई के आदेश से उत्पन्न समस्या से निजात पाने के लिए सरकार शुरू में संविधान संशोधन विधेयक लाना चाहती थी। लेकिन विपक्ष खासकर भाजपा इसके लिए सहमत नहीं थी। इसके बाद सरकार ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा आठ की उपधारा में बदलाव के लिए राज्य सभा में संशोधन विधेयक पेश किया। इसके तहत प्रावधान किया गया कि फैसला सुनाए जाने के 90 दिन के अंदर अपील दायर कर दी जाती है और उच्च अदालत फैसले के अमल पर रोक लगा देती है तो सजायाफ्ता जनप्रतिनिधि की सदस्यता समाप्त नहीं होगी। हालांकि इस दौरान वह वेतन भत्तो की सुविधाओं सहित वोट देने के अधिकार से वंचित रहेगा। लेकिन भाजपा ने बिल को पारित करने की बजाय इसे कानूनी मामलों की स्थायी संसदीय समिति के हवाले करने की मांग कर दी। वैसे सरकार को पता नहीं कि राज्य सभा के सभापति ने इसे समिति को भेजा है अथवा नहीं।

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